महिमा सिंह, मुंबईः अब पुल खुद बताएगा कि अलर्ट हो जाओ, हादसा हो सकता है. नवी मुंबई के बेलापुर-किले जंक्शन रेलवे पुल पर 40 सेंसर लगाए गए हैं. ये सेंसर पुल की स्ट्रक्चरल आडिट का अपडेट लगातार देते रहेंगे.  आम जुबान में कहें तो इसका मतलब ये हुआ कि पुल में किसी तरह की कमजोरी आती है या रेलवे ट्रैक्स में दरार पड़ती है या और कोई ऐसी खराबी आती है जिससे पुल टूट सकता है तो वक्त रहते हि ये सेंसर प्रशासन को इत्तला कर देंगे. देश में पहली बार इस तरह का ये प्रयोग हो रहा है. इसे आईआईटी-रूड़की और सेंट्रल रेलवे ने मिलकर तैयार किया है. इसका फायदा ये होगा कि रेलवे पुल से होने वाले हादसों को कुछ हद्द तक कम किया जा सकेगा .


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देश में ऐसा पहला प्रयोग नवी मुंबई में पाम बीच रोड पर बेलापुर-किले जंक्शन रेल ओवरब्रिज पर हुआ है. ओवर ब्रिज के दो गर्डर्स पर 40 सेंसर लगाए गए हैं. ये सेंसर पुल गार्ड्स की अनुपस्थिति में भी रेल प्रशासन को सतर्क करेंगे और पुल की ताकत का सटीक रेटिंग प्रदान करेंगे. इसमें नगे सेंसर की खासियत ये है कि ये लगातार गर्डर्स पर पड़ने वाले दबाव और तापमान  संबंधित रीडिंग भेजते रहेंगे. यानी एक तरह से पुल का स्ट्रक्चरल आडिट लगातार होता रहेगा.



अगर पुल को किसी भी तरह का खतरा होगा तो तुरंत अलर्ट कर देगा.  भारतीय रेलवे में ऐसा पहला प्रयोग है. केंद्रीय रेलवे, मुंबई डिवीजन के डिवीजनल रेलवे इंजीनियर का कहना है कि, यह गर्डर्स पर वास्तविक रूप में थियोरेटिकल स्ट्रेस की तुलना में एक लंबा सफर तय करेगा.  



दीवाली से पहले ही एक तोहफे की तरह 48 करोड़ रुपये का यह पुल अब लोगो के लिए शुरू कर दिया गया है.  यह पुल मुंबई के उपनगर इलाके में ट्रेन की भीड़ को ध्यान में रखते हुए डिज़ाइन किया गया है. अगर हादसे का डर हो तो यह उसे उजागर करेंगे, जिन्हें तत्काल  सुधार दिया जाएगा. साल 2016 से ही इस पुल का निर्माण शूरु हुआ था जिसमे 1 करोड रुपए की आई  थी. सेंसर और ऑप्टिक फाइबर पर तकरीबन 40 लाख रुपये खर्च हुए है. सेंट्रल रेलवे का कहना है कि दो सालों तक इस पुल को प्रायोगिक तौर पर परखा जाएगा और सबकुछ ठीक रहा तो अन्य पुलों पर भी इस तकनीक का इस्तेमाल होगा.


अक्सर पुल के कमजोर होने से हादसे देखने को मिलते हैं
हाल ही में 3 जुलाई को गोखले पुल दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद दो लोगों की मौत हुई थी. तो ऐसे इस मॉडल के सफल  होने पर इस तरह के हादसों को रोका जा सकेगा. वैसे तो यह टेक्नोलॉजी कई डिवेलप देशों में पहले से ही आ चुकी है लेकिन भारत में इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल अभी किया जा रहा है.