Shivsena: महाराष्ट्र में विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर के फैसले के बाद महाराष्ट्र में सियासत गरमाई हुई है. राहुल नार्वेकर ने कहा कि असली शिवसेना एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला गुट ही है. जिसके बाद से विपक्ष केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर हमलावर है. शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी ने फैसले को मौकापरस्ती करार दिया है. इस निर्णय से जनता भी खुश नहीं है और समय आने पर सही-गलत का फैसला करेगी.


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ये मौकापरस्ती है..


राज्यसभा सांसद और शिवसेना नेता प्रियंका चुतर्वेदी ने कहा कि जिस चीज को सुप्रीम कोर्ट ने अवैध ठहराया था उसे सही ठहराने का काम हुआ है. ये बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. उन्होंने कहा कि शिदें गुट के नेताओं को गद्दार भी कहा. उन्होंने कहा कि 2014 से एक नई कहावत शुरू हुई है, 'वही होता है जो मंजूरे मोदी और अमित शाह होता है'. ये मौकापरस्ती है.. ये दुर्भाग्यपूर्ण है.. संविधान को दरकिनार किया गया है.


सुप्रीम कोर्ट का आदेश दरकिनार


प्रियंका ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश को दरकिनार किया गया है. स्पीकर, मुख्यमंत्री के घर जाते हैं और कई बार जाते हैं. इसके साथ ही उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को समझाने के लिए कहा कि ये वैसा ही जैसे आपके के घर में चोरी हो जाए. इसकी शिकायत करने आप थाने पहुंचें. और वहां आपसे यह कह दिया जाए कि ये चोरी का सामान चोरों का है.



असली शिवसेना कौन?


बता दें कि महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष राहुल नार्वेकर ने अपने फैसले में कहा कि 21 जून, 2022 को जब प्रतिद्वंद्वी समूहों का उदय हुआ तो शिवसेना का एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाला धड़ा ही ‘असली राजनीतिक दल’ (असली शिवसेना) था. शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाले प्रतिद्वंद्वी धड़े द्वारा एक-दूसरे के विधायकों के खिलाफ दायर अयोग्यता याचिकाओं पर अपना फैसला पढ़ते हुए नार्वेकर ने यह भी कहा कि शिवसेना (यूबीटी) के सुनील प्रभु 21 जून, 2022 से सचेतक नहीं रहे.


‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’ सर्वोच्च निकाय


विधानसभा अध्यक्ष ने यह भी कहा कि शिवसेना के ‘प्रमुख’ के पास किसी भी नेता को पार्टी से हटाने की शक्ति नहीं है. उन्होंने कहा कि निर्वाचन आयोग को सौंपा गया 1999 का पार्टी संविधान मुद्दों पर फैसला करने के लिए वैध संविधान था. उन्होंने कहा कि इस संविधान के अनुसार ‘राष्ट्रीय कार्यकारिणी’ सर्वोच्च निकाय है.


कब कैसे शुरू हुआ विवाद?


यह सब 21 जून 2022 को शुरू हुआ जब एकनाथ शिंदे और उनके वफादार विधायकों ने तत्कालीन सीएम उद्धव ठाकरे के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. उसी दिन उद्धव गुट ने शिंदे को विधायक दल के नेता पद से बर्खास्त करने का प्रस्ताव पारित किया. इस कदम का शिंदे गुट ने विरोध किया और समानांतर प्रस्ताव पारित किया. और कहा कि शिंदे पद पर बने रहेंगे. भरतशेत गोगावले को मुख्य सचेतक बनाया गया और इसे नार्वेकर ने 3 जुलाई 2022 को स्वीकार भी कर लिया. इसके बाद उद्धव गुट ने कई याचिकाओं में शिंदे गुट के 40 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग की.


क्या कहा था सुप्रीम कोर्ट ने?


इसके बाद शिंदे गुट ने उद्धव गुट के 14 विधायकों को अयोग्य ठहराने की मांग वाली याचिका दायर करते हुए पलटवार किया. इसके बाद उद्धव गुट सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया. मई 2023 में याचिकाएं दायर हुईं और सुप्रीम कोर्ट ने लगभग एक साल बाद अयोग्यता कार्यवाही पर निर्णय लेने का अधिकारी विधानसभा अध्यक्ष को दे दिया. सुप्रीम कोर्ट ने तब कहा था कि स्पीकर फैसला सुनाते वक्त अधिक संख्या के आधार से बचना चाहिए.