नई दिल्लीः ISRO हमारे देश की सबसे सम्मानित एजेंसियों में से एक है और हम सबको ISRO पर गर्व है. लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2005 में ISRO में भी एक बहुत बड़ा घोटाला हुआ था, जब विदेशी निवेशकों वाली Devas नाम की एक Fraud कम्पनी ने, ISRO की एक Commercial कम्पनी Antrix के साथ दो Satellites लीज़ पर लेने का Contract किया था. 6 साल बाद जब वर्ष 2011 में मीडिया ने इस घोटाले को एक्सपोज़ कर दिया तो UPA की सरकार को ये Contract Cancel करना पड़ा. और इसके बाद ये कम्पनी अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में गई और वहां भारत सरकार के ख़िलाफ़ मुकदमा जीत भी गई. UPA सरकार ने उस दौरान इन मुकदमों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने बहुत महत्वपूर्ण फैसले में Devas को एक फ्रॉड कम्पनी बताया है, जो भारत सरकार और ISRO के लिए एक बहुत बड़ी जीत है.


मामला आखिर है क्या?


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ये कहानी शुरु होती है अब से लगभग 17 वर्ष पहले. वर्ष 2005 में जब देश में UPA की सरकार थी और प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह थे, उस समय बेंगलूरु स्थित एक Start-Up कम्पनी Devas Multimedia और Antrix Corporation Limited के बीच एक डील हुई थी. Antrix भारत सरकार की अंतरिक्ष एजेंसी, ISRO की एक शाखा के रूप में पूरी दुनिया में अपने अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों को अंतरिक्ष उत्पाद और सेवाएं उपलब्ध कराती है. और उस समय भी Antrix के माध्यम से UPA सरकार ने एक डील की थी.


ISRO के साथ हुई थी ये डील


इस डील के तहत ISRO को दो Satellite का निर्माण करके उन्हें अंतरिक्ष में लॉन्च करना था. और इसके बाद ये दोनों Satellites, Devas Multimedia नाम की कम्पनी को 12 साल के लिए लीज़ पर दिए जाने थे. 12 साल के लिए इन दो Satellites का किराया 167 करोड़ रुपये तय हुआ था. और कुल मिला कर डील ये थी कि.. ये कम्पनी इन Satellites के ज़रिए Mobile Broadband सेवा उपलब्ध कराएगी. यानी भारत में संचार और इंटरनेट की सुविधा देगी.


डील के राष्ट्रीय सुरक्षा को नजरअंदाज किया गया


लेकिन आप हैरान रह जाएंगे कि डील के लिए तब देश की राष्ट्रीय सुरक्षा को भी नज़रअन्दाज़ कर दिया गया. इस देश में पहली बार ऐसा हुआ, जब किसी कम्पनी को S-Band Spectrum में अपनी सेवाएं देने की मंज़ूरी दी गई. तब इसका इस्तेमाल केवल देश की तीनों सेनाएं, अंतरिक्ष एजेंसियां, BSNL और MTNL के लिए आरक्षित था. लेकिन UPA की सरकार ने इसमें एक ऐसी कम्पनी का प्रवेश करा दिया, जिसके मालिकों और निवेशकों की भी पूरी जानकारी तत्कालीन सरकार के पास नहीं थी.


UPA की सरकार ने की लापरवाही


और राष्ट्रीय सुरक्षा को दांव पर लगा दिया गया. आप इसे समझिए कि संचार की सेवाओं के लिए अलग अलग Frequency होती हैं, जिन्हें Spectrum भी कहते हैं. सरकार कुछ Spectrum को निजी कम्पनियों के लिए खोल देती है. और कुछ को अपने नियंत्रण में रखती है, ताकि देश की एजेंसियों को संचार सेवाओं के लिए सुरक्षित और विश्वसनीय Frequency मिल सके. लेकिन UPA की सरकार ने इसका कोई ध्यान नहीं रखा.


2011 में डील रद्द कर दी गई


हालांकि बाद में जब इस पर विवाद हुआ और तत्कालीन सरकार 2 जी घोटाले में फंस गई, तो वर्ष 2011 में ये डील रद्द कर दी गई. उस समय UPA सरकार चाहती तो वो इस डील को रद्द करने के पीछे राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे को बड़ा कारण बता सकती थी. लेकिन ऐसा नहीं किया गया. और इससे Devas Multimedia नाम की ये कम्पनी ना सिर्फ़ भारत सरकार के ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में गई बल्कि भारत सरकार के ख़िलाफ़ उसने कई बड़े केस जीत लिए. अगर UPA की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता की होती तो शायद ऐसा होता ही नहीं.


कंपनियां भारत सरकार से चाहती थीं हर्जाना


उदाहरण के लिए, इस कम्पनी में जर्मनी और Mauritius के जो Foreign Investors थे, उन्होंने Permanent Court of Arbitration में भारत सरकार के ख़िलाफ़ केस जीत लिया. ये अदालत व्यापार से संबंधित अंतर्राष्ट्रीय मामलों का निपटारा करती है. इस अदालत ने कहा कि भारत सरकार की कम्पनी Antrix, हर्जाने के तौर पर German Telecom Company को 101 Million Dollar यानी लगभग 758 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी, जो Devas Multimedia में निवेशक है. Mauritius के तीन Investor को 111 Million Dollar यानी 832 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी. और Devas Multimedia को 1.2 Billion Dollar यानी 9 हज़ार करोड़ रुपये का हर्जाना भरेगी.


भारत के खिलाफ जीत लिया मुकदमा


इस कम्पनी और इसके Foreign Investors ने भारत सरकार के ख़िलाफ़ International Chamber of Commerce में भी मुकदमा जीत लिया. और इस मुकदमे को अमेरिका, कनाडा और फ्रांस की अदालतों ने भी अपनी सहमति दे दी है. कनाडा की अदालत ने अपने एक आदेश में कहा था कि एयर इंडिया भारत सरकार का उपक्रम है, इसलिए कनाडा में एयर इंडिया की जो सम्पत्ति और उसके 50 प्रतिशत Funds हैं, उन्हें ज़ब्त किया जा सकता है. और पेरिस की एक अदालत ने भारतीय दूतावास की एक बिल्डिंग को ज़ब्त करने के आदेश दिए हैं, जिसकी कीमत 3.8 Million Euro यानी 35 करोड़ रुपये बताई जाती है.


UPA सरकार ने गलतियों को दोहराया


कुल मिला कर UPA की सरकार ने कई जगह गलतियों को दोहराया. वो डील के दौरान, यही पता नहीं लगा पाई कि इस कम्पनी के मालिक कौन हैं, इसमें किसका पैसा लगा है. और क्या ये एक फ्रॉड कम्पनी हो सकती है. UPA ने डील के 6 वर्षों तक ये नहीं माना कि इस कम्पनी में सब कुछ सही नहीं है. जबकि उस समय सरकार को इस तरह के संकेत मिल चुके थे. जब डील रद्द हुई, तब भी कांग्रेस ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा नहीं बताया. और आखिर में जब उसे अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में भारत का प्रमुखता से पक्ष रखना था, तब भी उसने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन 2014 में जब मोदी सरकार आई तो उसके लिए ये मामला काफ़ी बड़ा था. मोदी सरकार.. Netherlands की अदालत में इस मामले को चुनौती दे चुकी है. और अभी फ्रांस में उसकी सम्पत्ति तब तक जब्त नहीं होगी, जब तक सरकार को Order Copy नहीं मिल जाती.


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