नई दिल्‍ली: सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्वामित्व विवाद पर सुनवाई शुरू हो गई है. सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्‍बल ने कहा कि इस मामले के दस्‍तावेज अधूरे हैं. इस पर यूपी सरकार की तरफ से पेश तुषार मेहता ने कहा कि ऐसा नहीं है. कपिल सिब्‍बल ने कहा कि इस फैसले का पूरे देश में असर हो सकता है. उन्‍होंने यह भी कहा कि चूंकि भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में अयोध्‍या में राम मंदिर बनाने की बात कही है, इसलिए जुलाई, 2019 तक इस केस में सुनवाई टाल देनी चाहिए. 


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सिर्फ इतना ही नहीं एडवोकेट कपिल सिब्‍बल, राजीव धवन और याचियों के वकीलों ने कहा कि इस मसले की सात जजों की बड़ी बेंच में सुनवाई होनी चाहिए. दोनों पक्ष की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने सुनवाई की अगली तारीख 8 फरवरी 2018 तक टाल दी. सुनवाई के बाद शिया वक्‍फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी ने कहा कि अच्‍छी बात यह है कि हमारे द्वारा सुझाए गए फॉर्मूले को सुप्रीम कोर्ट ने रिकॉर्ड पर ले लिया है. 



चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर की तीन सदस्यीय विशेष पीठ चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई कर रही है. कोर्ट ने इस मामले में पहले ही स्‍पष्‍ट कर दिया है कि वह इस मामले को दीवानी अपीलों से इतर कोई अन्य शक्ल लेने की अनुमति नहीं देगा और हाई कोर्ट द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया ही अपनायेगा.



इससे पहले शीर्ष अदालत ने 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश सरकार से कहा था कि 10 सप्ताह के भीतर हाई कोर्ट में मालिकाना हक संबंधी विवाद में दर्ज साक्ष्यों का अनुवाद पूरा किया जाये. शीर्ष अदालत के पहले के निर्देशों के अनुरूप उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने उन दस्तावेज की अंग्रेजी अनूदित प्रति पेश कर दी हैं जिन्हें वह अपनी दलीलों का आधार बना सकती है. ये दस्तावेज आठ विभिन्न भाषाओं में हैं.


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इलाहाबाद हाई कोर्ट का निर्णय 
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ के इस विवादित स्थल को इस विवाद के तीनों पक्षकार सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और भगवान राम लला के बीच बांटने का आदेश दिया था.


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शिया वक्‍फ बोर्ड
उत्तर प्रदेश के सेन्ट्रल शिया वक्फ बोर्ड ने इस विवाद के समाधान की पेशकश करते हुये न्यायालय से कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल से 'उचित दूरी' पर मुस्लिम बाहुल्‍य इलाके में मस्जिद का निर्माण किया जा सकता है. 


सुन्‍नी वक्‍फ बोर्ड 
शिया वक्फ बोर्ड के इस हस्तक्षेप का अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विरोध किया. इसका दावा है कि उनके दोनों समुदायों के बीच पहले ही 1946 में इसे मस्जिद घोषित करके इसका न्यायिक फैसला हो चुका है जिसे छह दिसंबर, 1992 को गिरा दिया गया था. यह सुन्नी समुदाय की है.एक अन्य मानवाधिकार समूह ने इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध करते हुये शीर्ष अदालत में एक अर्जी दायर की और इस मुद्दे पर विचार का अनुरोध करते हुये कहा कि यह महज संपत्ति का विवाद नहीं है बल्कि इसके कई अन्य पहलू भी है जिनके देश के धर्म निरपेक्ष ताने बाने पर दूरगामी असर पड़ेंगे. 


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भगवान राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के परासरण और सी एस वैद्यनाथन तथा अधिवक्ता सौरभ शमशेरी पेश हुए और उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. अखिल भारतीय सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाडे़ का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अनूप जार्ज चौधरी, राजीव धवन और सुशील जैन कर रहे हैं.