Supertech News: दिल्ली की एक अदालत ने धन शोधन के एक मामले में रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक समूह के अध्यक्ष और प्रवर्तक आर के. अरोड़ा की न्यायिक हिरासत सोमवार को दो सप्ताह के लिए बढ़ा दी. विशेष न्यायाधीश देवेंदर कुमार जंगला ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा दायर एक अर्जी पर आरोपियों की हिरासत सात अगस्त तक बढ़ा दी.


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आरोपी को उसकी हिरासत की पिछली अवधि समाप्त होने पर अदालत में पेश किया गया था और ईडी ने कहा कि उसकी रिहाई से जांच में बाधा आ सकती है. दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को इस मामले में आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी. अरोड़ा को तीन दौर की पूछताछ के बाद 27 जून को धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की आपराधिक धाराओं के तहत गिरफ्तार किया गया था.


ईडी के विशेष लोक अभियोजक एन के मट्टा के साथ अधिवक्ता मोहम्मद फैजान खान ने अदालत को बताया कि सुपरटेक समूह, उसके निदेशकों और प्रवर्तकों के खिलाफ धन शोधन का मामला दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पुलिस द्वारा दर्ज की गई कई प्राथमिकी पर आधारित है.


ईडी कथित आपराधिक साजिश, धोखाधड़ी, आपराधिक विश्वासघात और जालसाजी के लिए सुपरटेक लिमिटेड और समूह की कंपनियों के खिलाफ हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) द्वारा दर्ज 26 प्राथमिकी से संबंधित मामले की जांच कर रही है.


उन पर कम से कम 670 फ्लैट खरीदारों से 164 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया गया है. ईडी के अनुसार, कंपनी और उसके निदेशकों ने अपनी रियल एस्टेट परियोजनाओं में बुक किए गए फ्लैट के बदले संभावित खरीदारों से अग्रिम धनराशि एकत्र करके लोगों को धोखा देने की ‘‘आपराधिक साजिश’’ रची.


एजेंसी ने कहा कि कंपनी ने समय पर फ्लैट का कब्जा प्रदान करने के सहमत दायित्व का पालन नहीं किया और आम जनता को ‘‘धोखा’’ दिया. ईडी ने दावा किया कि उसकी जांच में पता चला कि सुपरटेक लिमिटेड और समूह की अन्य कंपनियों ने फ्लैट खरीदारों से रुपये लिये थे.


ईडी ने कहा कि कंपनी ने आवास परियोजनाओं के निर्माण के लिए बैंकों और वित्तीय संस्थानों से परियोजना-आधारित सावधि ऋण भी लिया. हालांकि, इस रकम का ‘‘दुरुपयोग अन्य समूह की कंपनियों के नाम पर जमीन खरीदने के लिए किया गया था, जिन्हें बैंकों और वित्तीय संस्थानों से धन उधार लेने के लिए गिरवी रखा गया था.’’ एजेंसी ने कहा कि सुपरटेक समूह ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों को भुगतान में भी चूक की और वर्तमान में ऐसे लगभग 1,500 करोड़ रुपये के ऋण गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) बन गए हैं.


(एजेंसी इनपुट के साथ)