Supreme Court Same Sex Marriage: SC ने कहा- संसद को कानून बनाने का अधिकार, हम देखेंगे कि कोर्ट के दखल की क्या सीमा हो
Narendra Modi Govt on Same Sex Marriage: संविधान पीठ की अगुआई कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ये टिप्पणी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील मेनका गुरुस्वामी की जिरह के दौरान की. मेनका गुरुस्वामी का कहना था कि सरकार ये दुहाई देकर याचिका सुने जाने का विरोध नहीं कर सकती कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है.
Same Sex Marriage: समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता दिए जाने की मांग पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद को शादी और तलाक से जुड़े मसलों पर कानून बनाने का अधिकार है. हमें ये देखना होगा कि हम किस हद तक दखल दे सकते हैं.
याचिकाकर्ताओं ने दी ये दलील
संविधान पीठ की अगुआई कर रहे चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने ये टिप्पणी याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील मेनका गुरुस्वामी की जिरह के दौरान की. मेनका गुरुस्वामी का कहना था कि सरकार ये दुहाई देकर याचिका सुने जाने का विरोध नहीं कर सकती कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है. जब किसी समुदाय के मूल अधिकारों का हनन हो रहा हो तो आर्टिकल 32 के तहत उन्हें कोर्ट आने का अधिकार बनता है.
'कोर्ट के हस्तक्षेप की क्या सीमा है: CJI
चीफ जस्टिस ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद ही नहीं कि संसद के पास इन याचिकाओं में उठाए गए विषयों में हस्तक्षेप करने की शक्तियां हैं. समवर्ती सूची की प्रविष्टि 5 विशेष रूप से विवाह और तलाक को कवर करती है. ऐसे में असली सवाल यह है कि कौन सी ऐसी कमियां बाकी हैं, जिनमें यह अदालत हस्तक्षेप कर सकती है. सवाल वास्तव में यह भी है कि अदालत के हस्तक्षेप की क्या सीमा हो सकती है.
'हमें नहीं लगता सरकार कानून लाएगी'
हालांकि बेंच के सदस्य जस्टिस रविंद्र भट्ट ने कहा कि जब हम विधायिका पर कानून बनाने के दायित्व की बात कर रहे हैं तो क्या आप पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि कानून बनेगा? उन्होंने कहा, हमें नहीं लगता कि सरकार इसे लेकर कानून लाएगी. मेनका गुरुस्वामी ने इस टिप्पणी से सहमति जताई.
स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव का असर पर्सनल लॉ पर भी
मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि हम कोई स्पेशल ट्रीटमेंट नहीं चाहते. हम सिर्फ इतना चाहते हैं कि कोर्ट स्पेशल मैरिज एक्ट की इस तरह व्याख्या कर दे, जहां समलैंगिक शादियों को भी कानूनी मान्यता मिल जाए. हालांकि चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस रविन्द्र भट्ट दोनों की इस बात को लेकर एक राय थी कि स्पेशल मैरिज एक्ट में बदलाव से पर्सनल लॉ भी प्रभावित होंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट धर्मनिरपेक्ष कानून है लेकिन एक्ट का सेक्शन 21 (A) कहता है कि शादी से जुड़े दूसरे मसले पर्सनल लॉ के तहत आएंगे. लिहाजा स्पेशल मैरिज एक्ट और पर्सनल लॉ के लिंक से इनकार नहीं किया जा सकता.
'क्या याचिकाकर्ताओं के साथ पूरा LGBT समुदाय है?'
सुनवाई के दौरान संविधान पीठ ने याचिकाकर्ताओं से ये भी सवाल किया कि क्या याचिकाकर्ता पूरी LGBT समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं? इस समुदाय के बहुत से लोग ऐसे भी तो होंगे, जो अपनी मौजूदा जीवन शैली को ही कायम रखना चाहते हों. इस पर मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि जो रिश्तों की नई परिभाषा ( समलैंगिक शादी को मान्यता) देने में अपनी हिस्सेदारी चाहते हैं, हम उनकी बात रख रहे हैं. LGBT समुदाय के कुछ लोग होंगे, जो ऐसा नहीं चाहते है. ये उनकी मर्जी है.
'समलैंगिक शादी को मान्यता न होने पर होगी लैवेंडर मैरिज'
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट सौरभ कृपाल ने कहा कि अगर समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता नहीं दी जाती तो ऐसी सूरत में मर्द- स्त्री के बीच लैवेंडर मैरिज को ही बढ़ावा मिलेगा, जिसमें दोनों से कोई एक पार्टनर या दोनों पार्टनर ही समलैंगिक हो सकते हैं. ऐसी शादियों के चलते दोनों जिंदगियां बर्बाद हो जाएंगी. इससे बुरा नहीं हो सकता कि एक गे पुरुष किसी महिला के साथ शादी कर उसे धोखा दे.
सौरभ कृपाल ने यह भी कहा कि समलैंगिक लोग देश छोड़कर जाने को मजबूर हैं क्योंकि उनकी शादी को यहां कानूनी मान्यता नहीं मिल पाती. जी 20 देशों में 12 देश समलैंगिक विवाहों को मान्यता दे चुके हैं, पर भारत हिचक रहा है.