नई दिल्ली: राजनीतिक दलों के चंदे के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट बुधवार को विस्तृत सुनवाई करेगा. पिछली सुनवाई में वकील प्रशांत भूषण ने इस व्यवस्था पर तुरंत रोक की मांग की थी, जिसपर कोर्ट ने कहा था कि आप तथ्य दें तभी रोक पर विचार होगा. दरअसल, याचिका में इससे भ्रष्टाचार की आशंका जताई गई है. सरकार ने दावा किया है कि इससे राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी और काले धन पर लगाम लगेगी. 


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उधर, चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखते हुए हलफनामा दाखिल कर यह साफ कर दिया है कि चुनावी बॉन्ड और कॉरपोरेट फंडिंग की सीमा हटाना राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करेगा. राजनीतिक पार्टियों को फंडिंग के लिए लाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड के खिलाफ दाखिल याचिका पर चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि इलेक्टोरल बॉन्ड के कारण राजनीतिक पार्टियों की फंडिंग की पारदर्शिता पर गंभीर असर पड़ने वाला है. चुनाव आयोग ने कोर्ट में दिए अपने हलफनामें में 2017 में कानून मंत्रालय को भेजी अपनी राय पर ही टिके रहने का फैसला किया है. 


स्कीम में डोनर की पहचान न होने और नॉन-प्रॉफिट कंपनियों को भी इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने की अनुमति पर आशंका जताई गई है. आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में असोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म की ओर से इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती दी गई है. जिसके तहत राजनीतिक पार्टियों को फंडिंग की जाती है. इस याचिका में कहा गया है कि इस बांड को बड़े पैमाने पर कॉरपोरेट ने खरीदा है और पार्टियों को दिया है, ये लोग इसके जरिये नीतिगत फैसले को प्रभावित कर सकते हैं.