नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने 28,000 दुर्गा पूजा समितियों को 28 करोड़ रुपये देने के पश्चिम बंगाल सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर राज्य सरकार को शुक्रवार को नोटिस जारी किया. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायामूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने हालांकि दुर्गा पूजा समितियों को धन देने के राज्य सरकार के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. 


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क्या है पूरा मामला
सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता सौरभ दत्ता की याचिका पर सुनवाई कर रहा था जिसमें दुर्गा पूजा के लिए राज्य भर में 28,000 पूजा समितियों को 28 करोड़ रुपये देने के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है. गौरतलब है कि 10 सितंबर को ममता बनर्जी ने राज्य भर में 28 हजार पूजा समितियों में से प्रत्येक को 10 हजार रुपये देने की घोषणा की थी. इनमें से तीन हजार समितियां कोलकाता शहर में और 25 हजार समितियां जिलों में हैं. इसपर सरकार को 28 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे.


टीएमसी के गढ़ में पूरे गणवेश में RSS ने निकाला मार्च
आपको बता दें कि दुर्गा पूजा की शुरुआत महालय से होती है और कोई भी बंगाल के प्रमुख पर्व को अपने हाथों से जाने नहीं देना चाहता. सोमवार की सुबह हुबली के चुंचुड़ा के कृष्णा बाजार से स्वयं सेवक पैदल और दो पहिया वाहन पर प्रभात फेरी के बाद निकले और हुगली मोड़ तक शांति पूर्व मार्च किया. पूरे गणवेश में ये कार्यकर्ता तृणमूल कांग्रेस के गढ़ कहे जाने वाले इलाकों से गुजरे. जानकारी के मुताबिक इस मार्च रैली में सभी उम्र के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. माना जा रहा है कि आने वाले लोकसभा चुनाव के पहले संघ अपनी गतिविधि बंगाल में बढ़ा रहा है.


लोकसभा चुनावों के लिए महत्वपूर्ण है पश्चिम बंगाल
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अब ममता बनर्जी के गढ़ पश्चिम बंगाल में भी अपने संगठन में बड़ा विस्तार करने में सफलता पाई है. पिछले एक साल के भीतर आरएसएस ने पश्चिम बंगाल में अपनी 250 शाखाओं की शुरुआत की है. जिनमें नियमित रूप से संघ की गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर संघ के इस विस्तार को आगामी लोकसभा चुनावों के लिहाज से बीजेपी के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण माना जा रहा है.


संघ अब कर रहा है ग्रामीण इलाकों पर फोकस
आंकड़ों की बात करें तो आरएसएस ने सबसे ज्यादा विस्तार पश्चिम बंगाल के हुगली और दुर्गापुर जिलों में किया है. इन जिलों में संघ 2016 तक करीब 1100 शाखाओं का संचालन करता था जिनकी संख्या अब 1350 के आंकड़े को भी पार कर चुकी है. ऐसे में संघ का नेतृत्व अब ग्रामीण इलाकों और उन क्षेत्रों में अपने संगठन विस्तार के लिए काम शुरू कर रहा है, जहां नागरिकों को शिक्षा समेत तमाम नागरिक सुविधाएं ठीक से नहीं मिल पा रही हैं