Mob Lynching Case: सुप्रीम कोर्ट ने भीड़ की हिंसा(mob lynching) के मामले पर सुनवाई करते हुए वकीलों से कहा कि वो इस मामले में सेलेक्टिव रुख न अख्तियार करें. कोर्ट ने कहा कि ये किसी एक धर्म या जाति विशेष से जुड़ा मामला भर नहीं है. कोर्ट के सामने सारे ऐसे केस रखें जाने चाहिए भले ही हिंसा किसी भी धर्म के मानने वाले के खिलाफ हो.


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सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान उदयपुर में कन्हैया नाम के एक दर्जी की हत्या का मामले का हवाला दिया. कन्हैया की पैगम्बर मोहम्मद को लेकर बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के सोशल मीडिया पोस्ट को शेयर करने के चलते 2022 में हत्या कर दी गई थी. कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील निजाम पाशा से पूछा कि क्या आपने याचिका में कन्हैया के मर्डर की घटना को भी शामिल किया है.


वकील निजाम पाशा के ये बताने पर कि उन्होंने इसे याचिका में शामिल नहीं किया गया है, कोर्ट ने कहा कि आपको सुनिश्चित करना चाहिए कि आप इस मामले में सेलेक्टिव न रहें. अगर सारे राज्य इस केस में पक्षकार हैं तो फिर सब तथ्य कोर्ट के सामने होने चाहिए. सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में देश के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा की घटनाओं का हवाला दिया गया है. 


वकील निजाम पाशा की ओर से कोर्ट को बताया गया कि भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए राज्यों ने तहसीन पूनावाला केस में SC की ओर से दी गई व्यवस्था का हनन हुआ है. निजाम पाशा ने छत्तीसगढ़ और हरियाणा में हुई घटना का हवाला दिया. कोर्ट ने कहा कि जिन राज्यों ने अभी तक जवाब दाखिल नहीं किया.. उन्हें हम 6 हफ्ते का वक़्त देते हैं. राज्य बताएं कि उन्होंने भीड़ की हिंसा को रोकने के लिए कदम उठाए हैं या नहीं. कोर्ट ने राज्य सरकारों से कथित गोरक्षकों और भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या किए जाने के मामलों पर की गई कार्रवाई के बारे में छह सप्ताह में उसे अवगत कराने को कहा.


याचिका में अनुरोध किया गया था कि राज्यों को कथित गोरक्षकों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ भीड़ हिंसा की घटनाओं से निपटने के लिए शीर्ष अदालत के 2018 के एक फैसले के अनुरूप तत्काल कार्रवाई करने का निर्देश दिया जाए. पीठ ने आदेश दिया, ‘हमने पाया है कि अधिकतर राज्यों ने ‘मॉब लिंचिंग’ के उदाहरण पेश करने वाली रिट याचिका पर अपने जवाबी हलफनामे दाखिल नहीं किए हैं. राज्यों से अपेक्षा थी कि वे कम से कम इस बात का जवाब दें कि ऐसे मामलों में क्या कार्रवाई की गयी है. हम उन राज्यों को छह सप्ताह का समय देते हैं जिन्होंने अपना जवाब दाखिल नहीं किया है.