Supreme Court order on Two Finger Test in Rape Case: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बलात्कार के मामलों में पीड़ित महिला का टू फिंगर टेस्ट (Two Finger Test in Rape Case) कराए जाने पर सख्त नाराजगी जाहिर की है. कोर्ट ने कहा कि ऐसे टेस्ट करवाने वालों पर अब मुकदमा चलाया जाएगा. रेप के दोषी को आरोपमुक्त किए जाने के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यह फैसला सुनाया. 


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'बैन होने के बावजूद किया जा रहा टू फिंगर टेस्ट'


जस्टिस चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने कहा कि साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट टू फिंगर टेस्ट पर बैन लगा चुका है. इसके बावजूद आज भी रेप के मामले की पुष्टि के लिए इस तरह के टेस्ट को किया जाता है. यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है. इस टेस्ट का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. असल में ये पीड़ित महिला को दोबारा यातना देना देने जैसा है.


'पीड़िता को फिर यातना देने जैसा है टू फिंगर टेस्ट'


सुप्रीम कोर्ट ने (Supreme Court) टू फिंगर टेस्ट (Two Finger Test in Rape Case) की निंदा करते हुए कहा कि इस टेस्ट के आधार पर रेप की पुष्टि होने या न होने का कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. यह महिलाओं के सम्मान को फिर से आघात पहुंचाता है. इसलिए रेप के मामलों में 2 अंगुलियों का परीक्षण नहीं किया जाना चाहिए. अदालत ने ऐसे टेस्ट करने वाले पुलिस और मेडिकल कर्मियों को सख्त चेतावनी जारी करते हुए कहा कि अगर ऐसा कोई टेस्ट संज्ञान में आया तो उनके खिलाफ मिस-कंडक्ट की कार्रवाई की जाएगी. 


'सेक्सुअली एक्टिव महिला भी हो सकती है रेप का शिकार'


बेंच ने(Supreme Court) कहा कि टू फिंगर टेस्ट असल में पितृसत्तात्मक सोच का परिचायक है. ये इस गलत अवधारणा पर आधारित है कि एक सेक्सुअली एक्टिव महिला रेप का शिकार नहीं हो सकती. रेप के मामले में पीड़िता की गवाही उसकी सेक्सुअल हिस्ट्री पर निर्भर नहीं करती. अगर एक महिला रेप का आरोप लगाती है तो सिर्फ इसलिए उस पर अविश्वास करने का कोई आधार नहीं बनता कि वो महिला सेक्सुअली एक्टिव है. ये गलत सोच है.


सरकार को बैन सुनिश्चित करने को कहा


सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने टू फिंगर टेस्ट (Two Finger Test in Rape Case) पर बैन के पुराने आदेश पर अमल को सुनिश्चित करने के लिए केंद्र और राज्यों को दिशानिर्देश जारी किए. कोर्ट ने  सरकार को निर्देश दिया कि टेस्ट को बैन करने वाली स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की गाइडलाइंस को फिर से सभी सरकारी- निजी अस्पतालों में भेजा जाए. रेप पीड़ितों के परीक्षण के सही तरीके के बारे में जागरूकता फैलाने के मकसद से वर्कशॉप आयोजित की जाए. मेडिकल स्कूलों के पाठ्यक्रम में जरूरी बदलाव किए जाएं ताकि छात्रों को इस टेस्ट के बैन के बारे में स्पष्टता रहे.



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