बुलडोजर एक्शन को लेकर आ गया फैसला, करने होंगे ये 6 काम; वरना चलेगा सुप्रीम कोर्ट का `डंडा`
Supreme court on bulldozer Action: CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, `बुलडोजर के जरिए न्याय का ऐसा वाकया कहीं और सामने नहीं आया. ये एक गंभीर खतरा है कि अगर राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा उच्चस्तरीय और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाएगी, तो नागरिकों की संपत्तियों का विध्वंस बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में होगा.`
Supreme Court on bulldozer Justice: यूपी सरकार के जिस बुलडोजर एक्शन को कई राज्यों की सरकारों ने फॉलो किया उस पर देश की सबसे बड़ी अदालत का आदेश आ गया है. सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा है कि भारत के नागरिकों की आवाज को उनकी संपत्ति नष्ट करने की धमकी देकर नहीं दबाया जा सकता है. एपेक्स कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा, 'कानून के शासन में ‘बुलडोजर न्याय’ पूरी तरह अस्वीकार्य है'. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि बुलडोजर के जरिए न्याय करना किसी भी न्याय व्यवस्था का हिस्सा नहीं हो सकता.
कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन हो: SC
CJI की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, 'बुलडोजर के जरिए न्याय का ऐसा वाकया कहीं और सामने नहीं आया. यह एक गंभीर खतरा है कि अगर राज्य के किसी भी विंग या अधिकारी द्वारा उच्चस्तरीय और गैरकानूनी व्यवहार की अनुमति दी जाएगी, तो नागरिकों की संपत्तियों का विध्वंस बाहरी कारणों से चुनिंदा प्रतिशोध के रूप में होगा.'
राज्य सरकारों को बुलडोजर चलाने से पहले करने होंगे ये 6 काम
कोर्ट ने कहा, राज्य सरकार द्वारा इस तरह की मनमानी और एकतरफा कार्रवाई को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. अगर इसकी अनुमति दी गई, तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता एक मृत पत्र में बदल जाएगी.
सीजेआई के रिटायरमेंट की पूर्व संध्या पर शनिवार को अपलोड किए गए एक विस्तृत आदेश में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए अनिवार्य सुरक्षा उपाय निर्धारित करते हुए, अदालत ने फैसला सुनाया है कि किसी भी विध्वंस से पहले उचित सर्वेक्षण, लिखित नोटिस और आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए. इन दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को अनुशासनात्मक कार्रवाई और आपराधिक आरोप दोनों का सामना करना पड़ेगा.
अदालत ने किसी भी संपत्ति को ढहाने से पहले छह आवश्यक कदम उठाने का आदेश दिया. पहला- अधिकारियों को सबसे पहले मौजूदा भूमि रिकॉर्ड और मानचित्रों को सत्यापित करना होगा. दूसरा- नंबर पर उन्हें वास्तविक अतिक्रमणों की पहचान करने के लिए उचित सर्वेक्षण करना होगा. तीसरा- कथित अतिक्रमणकारियों को तीन लिखित नोटिस जारी किए जाने चाहिए. चौथा- उनकी आपत्तियों पर विचार किया जाना चाहिए और उसके बाद एक्शन का स्पष्ट आदेश पारित किया जाना चाहिए. पांचवां- अतिक्रमणकारियों को स्वैच्छिक रूप से अपना अतिक्रमण हटाने के लिए उचित समय दिया जाना चाहिए और नंबर छह- अगर जरूरी हो तो अतिरिक्त भूमि कानूनी रूप से अधिग्रहित की जानी चाहिए. उसके बाद ही कोई अन्य बड़ा एक्शन लेना चाहिए.
बेंच ने कहा कि राज्य को अवैध अतिक्रमणों या गैरकानूनी रूप से निर्मित संरचनाओं को हटाने के लिए कार्रवाई करने से पहले कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करना चाहिए. कानून के शासन में बुलडोजर न्याय बिल्कुल अस्वीकार्य है. अगर इसकी अनुमति दी गई तो अनुच्छेद 300ए के तहत संपत्ति के अधिकार की संवैधानिक मान्यता समाप्त हो जाएगी.
क्या है 300 A?
300 A के प्रावधानों की बात करें तो संविधान के अनुच्छेद 300A में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को कानून के प्राधिकार के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा. टॉप कोर्ट ने 2019 में उत्तर प्रदेश के महाराजगंज जिले में एक मकान को ध्वस्त करने से संबंधित मामले में छह नवंबर को अपना फैसला सुनाया. बेंच ने यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार को अंतरिम उपाय के तौर पर याचिकाकर्ता को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश भी दिया. आपको बताते चलें कि याचिकाकर्ता का मकान एक सड़क परियोजना के लिए ढहा दिया गया था.