नई दिल्ली: देश में कोरोना महामारी के संकट के बीच मोरेटोरियम अवधि के दौरान टाली गई EMI पर ब्याज न लेने की मांग पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सरकार आरबीआई के पीछे नहीं छुप सकती. इसे बैंकों की मर्जी पर नहीं छोड़ा जा सकता. सरकार को अपना स्टैंड क्लियर करना होगा. 


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सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से एक हफ्ते में हलफनामा दायर करने को कहा. कोर्ट ने कहा कि सरकार लोगों की तकलीफ को दरकिनार कर सिर्फ व्यापारिक नजरिये से नहीं सोच सकती. कोर्ट ने सरकार से जल्द फैसला लेकर जवाब दाखिल करने को कहा. इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए एक सप्ताह का समय मांग, जिसे शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया. मेहता ने कहा, 'हम आरबीआई के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. ' पीठ ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वे आपदा प्रबंधन अधिनियम पर रुख स्पष्ट करें और यह बताएं कि क्या मौजूदा ब्याज पर अतिरिक्त ब्याज लिया जा सकता है.  पीठ में न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह भी शामिल हैं. मेहता ने तर्क दिया कि सभी समस्याओं का एक सामान्य समाधान नहीं हो सकता.


मामले की अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी. याचिकाकर्ता ने दलील दी कि केंद्र सरकार की तरफ से सुनवाई को बार बार सुनवाई टालने की मांग की जा रही है. अभी तक कोई भी हलफनामा नहीं दाखिल किया गया है. RBI की ओर से भी कोई हलफनामा दायर नहीं किया गया. 


जस्टिस अशोक भूषण ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि आपको अपना पक्ष एकदम साफ रखना चाहिए. जस्टिस भूषण ने कहा कि ऐसा इसलिए हो रहा है सरकार ने पूरे देश को लॉकडाउन किया था. जस्टिस भूषण ने कहा कि सरकार को हमें आपदा प्रबंधन अधिनियम पर अपना रुख बताना होगा और यह भी बताना होगा कि क्या ब्याज पर ब्याज का हिसाब किया जाएगा. बेंच के दूसरे जज जस्टिस एमआर शाह ने कहा कि  यह केवल व्यवसाय के बारे में सोचने का समय नहीं है.  


गौरतलब है कि रिजर्व बैंक ने लॉकडाउन के कारण रोजगार छिनने से लोन वालों को राहत देने के मकसद से ईएमआई वसूलने में नरमी दिखाई. रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों से कहा है कि वो अपने ग्राहकों को 31 अगस्त तक ईएमआई नहीं भरने का ऑफर दें. हालांकि, इस दौरान ग्राहकों से सामान्य दर से ब्याज वसूलने की भी अनुमति बैंकों को दी गई है. 


 


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