Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने 'बुलडोजर न्याय' पर बड़ा फैसला दिया. देश की सबसे बड़ी अदालत ने कहा कि अगर कार्यपालिका किसी व्यक्ति का मकान केवल इस आधार पर गिराती है कि वह आरोपी है, तो यह कानून के शासन का उल्लंघन है. फैसला सुनाते हुए, जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि 'एक घर होना एक ऐसी लालसा है जो कभी खत्म नहीं होती... हर परिवार का सपना होता है कि उसका अपना एक घर हो...' उन्होंने कहा कि 'महिलाओं और बच्चों को बेघर होते देखना सुखद दृश्य नहीं है.' SC ने विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा घर/दुकान व अन्य निजी संपत्तियां ध्वस्त किए जाने से जुड़े नियम तय किए.


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'अत्याचार करने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय हो'


अदालत ने सख्त लहजे में कहा कि कार्यपालिका, न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती. SC ने कहा, 'न्यायिक कार्य न्यायपालिका को सौंपे गए हैं. कार्यपालिका अपने मूल कार्य को करने में न्यायपालिका की जगह नहीं ले सकती.' अदालत ने कहा कि 'राज्य और उसके अधिकारी मनमाने और अत्यधिक उपाय नहीं कर सकते. जब राज्य द्वारा मनमानी आदि के कारण अभियुक्त/दोषी के अधिकारों का उल्लंघन किया जाता है... तो प्रतिपूर्ति होनी चाहिए.' जस्टिस गवई ने कहा कि 'जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेते हैं और इस तरह से अत्याचार करते हैं, उन्हें जवाबदेह बनाया जाना चाहिए.'


'बुलडोजर जस्टिस' पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें


- कार्यपालिका, न्यायपालिका नहीं बन सकती.


- बिना उचित प्रक्रिया के आरोपी के घर को ध्वस्त करना असंवैधानिक है.


- दोषी ठहराए जाने पर भी उसकी संपत्ति को नष्ट नहीं किया जा सकता.


- मुकदमे से पहले आरोपी को दंडित नहीं किया जा सकता.


- नगरपालिका कानूनों के लिए भी कानून का अनुपालन अनिवार्य है.


- लोगों को ध्वस्तीकरण नोटिस का जवाब देने और उसे चुनौती देने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए.


- अगर अधिकारी कुछ समय पहले उनकी मदद कर दें तो कोई आसमान नहीं टूट पड़ेगा.


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'केवल आरोप के आधार पर घर नहीं गिरा सकते'


SC ने अपने फैसले में कहा कि 'कार्यपालिका किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहरा सकती. अगर केवल आरोप के आधार पर वह उसका घर गिरा देती है, तो यह कानून के शासन के मूल सिद्धांत पर आघात होगा. कार्यपालिका न्यायाधीश बनकर किसी आरोपी की संपत्ति को गिराने का फैसला नहीं कर सकती.'


अदालत ने कहा कि 'कार्यपालिका के हाथों की ज्यादतियों से कानून के सख्त हाथ से निपटना होगा. हमारे संवैधानिक मूल्य सत्ता के ऐसे किसी भी दुरुपयोग की अनुमति नहीं देते... इसे न्यायालय द्वारा बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.' सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ऐसे मामलों में, कार्यपालिका कानून को अपने हाथ में लेने और कानून के शासन के सिद्धांतों को दरकिनार करने की दोषी होगी. अनुच्छेद 19 के अनुसार आश्रय के अधिकार को मौलिक अधिकार माना गया है.