DNA with Sudhir Chaudhary: कभी भारत में हुआ कंप्यूटर का विरोध, हर बदलाव के खिलाफ शुरुआत में उठते हैं बागी सुर
DNA with Sudhir Chaudhary: 1980 के दशक में जब भारत में Computer आया तो इसका भी विरोध हुआ था. उस समय विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ एकजुट हो गई थीं और पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों ने बहुत बड़ा आन्दोलन किया था. इससे समझा जा सकता है कि हर सुधार के शुरुआत में लोग विरोध करते ही हैं और बाद में इसकी जरूरत समझते हैं.
DNA with Sudhir Chaudhary: कर्नाटक में एक कार्यक्रम के दौरान आज प्रधानमंत्री मोदी ने पहली बार अग्निपथ योजना पर बयान दिया. उन्होंने कहा कि जो Reforms शुरुआत में गलत लगते हैं, भविष्य में उनका उतना ही लाभ होता है. आज हम आपको बताएंगे कि ये बताते हैं कि प्रधानमंत्री ऐसा क्यों कह रहे हैं. असल में इतिहास में जब भी पुरानी व्यवस्था को बदल कर नई व्यवस्था को लागू करने की कोशिश हुई है तो उसका हमेशा ऐसे ही विरोध हुआ है. अमेरिका में जब पहली बार आर्थिक सुधार हुए, भारत में जब पहली रेल चली या भारत में जब पहला Computer आया और दुनिया में जब औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत हुई, हर बार इन सारे बदलावों का विरोध हुआ था.
अमेरिका में हुआ था जबरदस्त विरोध
वर्ष 1932 में जब अमेरिका इतिहास की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी का सामना कर रहा था, जिसे The Great Depression भी कहते हैं, तब भी पुरानी व्यवस्था में किए गए सुधारों का जबरदस्त विरोध हुआ था. उस समय Franklin D. Roosevelt अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे और उन्होंने आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कई बड़े आर्थिक सुधार किए थे.
उन्होंने सामाजिक सुरक्षा के साथ पेंशन की सुविधा शुरू की थी. कर्मचारियों को यूनियन बनाने का अधिकार दिया था और कई Infrastructure Projects भी शुरू किए थे ताकि लोगों को इनकी मदद से रोजगार मिल सके. लेकिन इन सुधारों का उस समय कई बड़े संगठनों ने विरोध किया और ये मामला बाद में वहां की सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा, जिसके बाद कोर्ट ने इन पर रोक लगा दी थी. इससे खफा होकर तब Franklin D. Roosevelt ने अपने एक भाषण में कहा था कि अमेरिका की सरकार को तीन घोड़ों की एक टीम चलाती है. इनमें एक घोड़ा है, अमेरिका की संसद, दूसरा घोड़ा है अमेरिका की सरकार और तीसरा घोड़ा है वहां की अदालतें यानी न्यायपालिका.
उनका कहना था कि इनमें से दो घोड़े यानी संसद और सरकार तो एक ही दिशा में चल रहे हैं लेकिन जो तीसरा घोड़ा है यानी जो न्यायपालिका है वो अलग दिशा में भाग रही है. और वो आर्थिक सुधारों को सफल नहीं होने दे रही. बड़ी बात ये है कि उस समय Franklin D. Roosevelt ने जितने भी आर्थिक सुधार किए, उनका विरोध तो हुआ लेकिन बाद में अमेरिका के नीति निर्माताओं ने माना कि ये तमाम फैसले बिल्कुल सही थे.
इसी तरह 19वीं शताब्दी की शुरुआत में जब औद्योगिक क्रांति के तहत पश्चिमी यूरोप के देशों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो रहे थे और इन उद्योगों में मशीनों का इस्तेमाल हो रहा था तो मशीनों को इंसानों के दुश्मन के तौर पर देखा गया. उस समय ये कहा गया कि मशीनें इंसानों से उनका काम छीन लेंगी और इंसान बेरोजगार हो जाएंगे. उस समय मजदूर ऐसी फैक्ट्रियों में तोड़फोड़ करते थे, जहां मशीनों का इस्तेमाल होता था. उस समय की ये तस्वीरें आप देख सकते हैं.
ब्रिटेन के मशहूर आविष्कारक John Kay ने जब कपड़ा बनाने के लिए Flying Shuttle नाम से एक मशीन बनाई तो कुछ लोगों ने इंग्लैंड में उनका घर जला दिया था. ये बात वर्ष 1753 की है. उस समय तो इस मशीन का विरोध हुआ. लेकिन दो दशकों के बाद ये मशीन कपड़ा उद्योग में एक नई क्रान्ति ले आई थी.
इसी तरह जब अंग्रेज भारत में रेल लेकर आए तो इसका भी विरोध हुआ था. उस समय बड़ी संख्या में लोग इसके खिलाफ़ सड़कों पर उतर आए थे और इन लोगों का कहना था कि रेल में एक साथ सफर करने से भारत की जाति व्यवस्था और धार्मिक सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी. और इससे ऊंची जाति के लोगों को पिछड़ी जाति के लोगों के साथ एक ही रेल में सफर करना पड़ेगा. और विरोध करने वाले इन लोगों में तब महात्मा गांधी भी थे और महात्मा गांधी ने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में इसके पीछे तीन वजह बताई थीं. उनका मानना था कि भारत में रेल के आने से बुराई बढ़ जाएगी. क्योंकि जो बुरे लोग हैं, वो रेल से यात्रा करके एक जगह से दूसरी जगह आसानी से पहुंच सकेंगे और इससे बुराई आसानी से फैल सकेगी. दूसरा उनका ये भी कहना था कि इससे ज्यादा से ज्यादा लोग पवित्र स्थानों की यात्रा कर सकेंगे और इससे ये स्थान दूषित हो जाएंगे और तीसरा उन्हें ये भी डर था कि इससे Plague महामारी और ज्यादा फैल सकती है. इस विरोध की वजह से तब अंग्रेजों को भारत में रेल नेटवर्क बिछाने में काफी मुश्किल आई थी. हालांकि उन्होंने इस काम को रोका नहीं और आज अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क भारत में है. जो 67 हजार 956 किलोमीटर लम्बा है.
गांधी जी ने भी किया था ट्रेन का विरोध
यहां समझने वाली बात ये भी है कि, महात्मा गांधी ने भारत में रेल चलाने का विरोध किया. लेकिन कुछ वर्षों के बाद ही उन्हें समझ आ गया था कि रेल भारत के लिए कितनी जरूरी है और उन्होंने जितने भी आन्दोलन किए, उनमें वो रेल से ही सफर करते थे. आज भी अग्निपथ योजना का जो विरोध हो रहा है, उसमें ट्रेनों को ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया गया है. सोचिए, अगर इस विरोध की वजह से तब भारत में रेल नेटवर्क नहीं बिछाया जाता तो क्या होता और यहां बात सिर्फ ट्रेनों की नहीं है.
अक्सर होता आया है सुधारों का विरोध
1980 के दशक में जब भारत में Computer आया तो इसका भी विरोध हुआ था. उस समय विपक्षी पार्टियां इसके खिलाफ एकजुट हो गई थीं और पश्चिम बंगाल में लेफ्ट पार्टियों ने बहुत बड़ा आन्दोलन किया था. हालांकि इस विरोध के बावजूद भारत में Computer का इस्तेमाल शुरू हुआ और लोगों ने इसे अपनाया और वर्ष 2004 में पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने एक इंटरव्यू में कहा था कि Computer का विरोध करना उनकी बहुत बड़ी गलती थी. इससे ये पता चलता है कि जब-जब पुरानी व्यवस्था को बदल कर एक नई व्यवस्था लागू की जाती है और उसमें सुधार किए जाते हैं तो उसका तत्कालिक विरोध होता है लेकिन भविष्य में समझ आता है कि वो सुधार कितने जरूरी थी. जैसा कि हो सकता है कि आज जो लोग अग्निपथ योजना का विरोध कर रहे हैं, वही 10 साल के बाद ये कहें कि उन्होंने तब कितनी बड़ी गलती की थी.
500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान
हालांकि ये बात आपको जानकर आपको काफी दुख होगा कि 15 जून से 18 जून के बीच हुई हिंसा में भारतीय रेल को 500 करोड़ रुपये से ज्यादा का नुकसान हुआ है. इस हिंसा में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेनों की 100 बोगियों को आग लगाई है. हर बोगी की कीमत दो करोड़ रुपये होती है. यानी इस हिसाब से जो युवा सेना में भर्ती होना चाहते हैं, उन्होंने 200 करोड़ रुपये की तो सिर्फ बोगियां जला दीं. इसके अलावा इस हिंसा में 7 रेल इंजन को भी जलाया गया है. एक इंजन की कीमत 15 करोड़ रुपये होती है. यानी इस हिसाब से 105 करोड़ करोड़ के रेल इंजन जला दिए गए. सोचिए, ये युवा इन्हीं ट्रेनों में बैठकर सरकारी नौकरियों की परीक्षा देने के लिए जाते हैं और इन्होंने इन्हीं ट्रेनों को आग लगा दिया.
इस हिंसा में अब तक जितने भी लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें से कई युवा 25 से 30 साल के हैं. यानी ये वो युवा हैं, जो सेना में भर्ती हो नहीं सकते. क्योंकि सेना में 23 साल के बाद कोई युवा नहीं जा सकता. इसलिए आज हम आपको देश के असली अग्निवीरों से मिलवाना चाहते हैं, जो ट्रेनों को आग नहीं लगा रहे. बल्कि खेतों में दौड़ कर अपना पसीना बहा रहे हैं और सेना में अग्निवीर बनने की तैयारी कर रहे हैं.
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