Thiruvananthapuram airport: भगवान विष्णु के ‘स्नान’ के लिए पांच घंटे बंद रहा तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डा, इसके पीछे है सदियों पुरानी परंपरा
Kerala News: इस एयरपोर्ट के रनवे के पास अरट्टू मंडप है जहां मंदिर की प्रतिमाओं को जुलूस के दौरान एक रस्म के तौर पर कुछ देर के लिए रखा जाता है. मंदिर की परंपरा के अनुसार, मंदिर के देवताओं की प्रतिमाओं को साल में दो बार स्नान के लिए समुद्र में ले जाया जाता है जो हवाई अड्डे के पीछे है.
Thiruvananthapuram airport closed for five hours: तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर मंगलवार को ‘भगवान विष्णु को स्नान कराने’ के लिए उड़ान सेवाएं 5 घंटे के लिए बंद कर दी गईं. दरअसल, ऐसा हवाई अड्डे के रनवे से गुजरने वाले जुलूस ‘‘अरट्टू’’ के कारण किया गया. मालूम हो कि यह हवाई अड्डा मशहूर पद्मनाभ स्वामी मंदिर की सदियों पुरानी एक परंपरा के लिए हर साल दो बार अपनी उड़ानों कुछ घंटे के लिए रोकता है.
10 से अधिक उड़ाने रहीं रद्द
तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट के अधिकारियों ने बताया कि उड़ान सेवाएं शाम 4 बजे से रात 9 बजे तक 5 घंटे के लिए निलंबित रहीं. एयरपोर्ट के सूत्रों ने बताया कि इस जगह से इंडिगो, एयर इंडिया एक्सप्रेस और एयर अरबिया सहित प्रमुख विमान कंपनियों की कम से कम 10 उड़ानें रद्द की गईं. बताया गया है कि पद्मनाभ स्वामी मंदिर के ‘‘अरट्टू’’ जुलूस के साथ ही मंगलवार को अलपसी उत्सव संपन्न हुआ.
बहुत पुरानी है यह प्रथा
पद्मनाभ स्वामी मंदिर की सदियों पुरानी इस परंपरा के लिए हवाई अड्डे को बंद करने की यह प्रथा दशकों से चली आ रही है. पिछले साल अडाणी समूह ने इस हवाई अड्डे का मैनेजमेंट अपने हाथ में लिया था, लेकिन उसने भी इस पर कोई रोक नहीं लगाई. एयरपोर्ट मैनेजमेंट का कहना है कि, ‘श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर की सदियों पुरानी परंपरा के तहत अलपसी अरट्टू जुलूस के तिरुवनंतपुरम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के रनवे से गुजरने के लिए उड़ान सेवाएं एक नवंबर 2022 को शाम चार बजे से रात नौ बजे तक स्थगित रहीं.’
क्यों रोकी जाती है उड़ान
सूत्रों के मुताबिक, ‘रनवे के पास अरट्टू मंडप है जहां मंदिर की प्रतिमाओं को जुलूस के दौरान एक रस्म के तौर पर कुछ देर के लिए रखा जाता है. मंदिर की परंपरा के अनुसार, मंदिर के देवताओं की प्रतिमाओं को साल में दो बार स्नान के लिए समुद्र में ले जाया जाता है जो हवाई अड्डे के पीछे है. 1992 में हवाई अड्डे के बनने से पहले से ही यह जुलूस इसी मार्ग से गुजरता रहा है. यही वजह है कि अब भी यह परंपरा निभाई जा रही है.
(इनपुट : भाषा)
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