नई दिल्ली: इस भयंकर सर्दी में भी कोई एक चीज गरमाई हुई है तो वो है राजनीति. अगले महीने 5 राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं. इन चुनावों में हर उम्मीवार जीतने की इच्छा से पर्चा भरता है और चुनावी मैदान में हाथ आजमाता है. लेकिन वहीं एक शख्‍स ऐसे भी हैं जो चुनाव हारने की इच्छा से विधान सभा चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं. 75 वर्षीय हसनू राम अब तक 93 बार चुनाव लड़ चुके हैं. इनमें उन्होंने हर बार हार का सामना किया लेकिन फिर भी इनका हौसला कम नहीं हुआ. 


हसनूराम की हारने वाली हसरत


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दरअसल हसनू राम की हसरत है 100 चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना. 2022 के विधान सभा चुनावों से पहले भी उनका कहना है कि इस बार भी उन्हें चुनाव हारने से कोई नहीं रोक सकता है. हसनू राम का यह 94वां चुनाव है और उनका दावा है कि किसी में दम नहीं है जो उन्हें हारने से रोक सके. हसनू राम अब तक अलग-अलग 93 चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें अपनी हार पर खुशी महसूस होती है.  हसनू राम आगरा जिले में खेरागढ़ तहसील के नगला दूल्हा के रहने वाले हैं.


हसनू के साथ हुआ था धोखा


करीब 36 साल पहले बड़ी पार्टी ने चुनाव लड़ाने का आश्वासन देकर हसनू राम को टिकट नहीं दिया था. हसनू राम को यही बात खल गई. इसके बाद से वह हर चुनाव लगातार लड़ते आ रहे हैं.


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इस बात का बुरा मान बैठे हसनू राम


15 अगस्त 1947 को जन्मे हसनू राम अंबेडकरी पहले वामसेफ में भी सक्रिय रह चुके हैं. एक पार्टी से उन्होंने टिकट मांगा था, उस पार्टी के कुछ नेताओं ने कहा कि तुम्हें तुम्हारे पड़ोसी का भी वोट नहीं मिलेगा, ऐसे में चुनाव लड़ कर क्या करोगे? इसके बाद से हसनू राम ने हार को गले लगाने का संकल्प ले लिया.


 पहले चुनाव में मिले थे इतने वोट


सबसे पहले उन्होंने फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा और 17,111 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे. इसके बाद से हसनू राम प्रत्येक चुनाव लड़ते आ रहे हैं और 1985 से अब तक विधान सभा, लोक सभा, पंचायत समेत सभी चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में किस्मत आजमा चुके हैं.


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राष्‍ट्रपति चुनाव लड़ने की भी की थी कोशिश


हसनु राम अंबेडकरी ने तो राष्ट्रपति पद के लिए भी पर्चा दाखिल किया था. लेकिन वो कागजी कमी के चलते खारिज हो गया था. बता दें कि पेशे से मनरेगा मजदूर हसनु राम जो पैसे कमाते हैं, उसमें से आधी रकम वो समाजसेवा के काम में लगा देते हैं.


नागरिक अधिकार का कर रहे हैं इस्तेमाल 


हसनू का कहना है कि वह तो अपने नागरिक अधिकार का इस्तेमाल कर रहे हैं . वो साल 1974 से वामसेफ के जिला संयोजक थे, लेकिन जब उन्होंने साल 1985 में आगरा के BSP कन्वेनर से विधान सभा के चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगी, तब तत्कालीन कन्वेनर अर्जुन सिंह ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया.


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