Thug Bahram Crime history and Pattern: भारत में एक से बढ़कर एक डकैत हुए हैं, जिन्होंने अपने-अपने समय में भारत में खूब आतंक मचाया. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे डकैत के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका नाम ही दहशत का पर्याय था. उसके गिरोह में 200 लोग थे. वे चलते-फिरते तीर्थ यात्रियों के समूहों, व्यापारियों के काफिलों और बारातों को गायब कर देते. उसने एक-दो नहीं बल्कि 931 लोगों की बेरहमी से हत्या की और फिर उनका सामान लूट लिया. आखिर में 75 साल की उम्र में उसका जो अंजाम हुआ, उसके बारे में उस खूंखार डकैत ने भी नहीं सोचा था. 


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बहराम के गिरोह में 200 क्रूर हत्यारे


भारत का सबसे खूंखार डकैत कहा जाने वाला इस बदमाश का नाम बहराम (Thug Bahram) था. उसका जन्म वर्ष 1765 में मध्य प्रदेश के जबलपुर में हुआ था. बचपन में उसकी दोस्ती अपने से 25 साल बड़े कुख्यात ठग सैयद अमीर अली से हो गई. उसकी संगत में आते ही उसकी जिंदगी गलत राह पर मुड़ती चली गई. अमीर अली ने उसे ठगी, हत्या और लूट के गुर सिखाए. 


करीब 25 साल की उम्र में बहराम (Thug Bahram) ठगों की दुनिया का सरदार बन बैठा. उसके गिरोह में 200 क्रूर हत्यारे शामिल थे. करीब 10 साल में ही बहराम ने इतनी लूट और हत्याओं को अंजाम दे दिया कि लोग उसके नाम से ही कांपने लगे. उसके डर से लोगों ने दिल्ली से ग्वालियर तक आना-जाना बंद कर दिया. बहराम के निशाने पर व्यापारियों के काफिले, तीर्थ यात्रियों के समूह और शादी-समारोह की बारातें रहती थीं. 


काफिले में शामिल लोगों का कर देते मर्डर


योजना के तहत गिरोह के लोग भेष बदलकर व्यापारियों के काफिले, तीर्थयात्रियों के समूहों और बारातों में शामिल हो जाते. इसके बाद वे दोस्ती गांठकर उन्हें खाने को नशीली चीज देते. उस व्यक्ति के बेहोश होते ही वे सब कुछ लूटकर फरार हो जाते. अगर उन्हें नशीली चीज खिलाने का मौका नहीं मिल पाता था तो वे दूसरा तरीका अपनाते थे. वे काफिले के साथ-साथ चलते रहते थे. इसके बाद मौका मिलते ही काफिले में शामिल एक-एक व्यक्ति को मारकर गायब करने लगते थे. 


हत्या के बाद वे शवों को मिट्टी में दबाते चलते जाते थे, जिससे उनके शव कभी बरामद नहीं हो पाते थे. बहराम (Thug Bahram) के गैंग ने अपने जीवन में 931 लोगों को मौत के घाट उतारा. इनमें से 150 हत्याएं अकेले बहराम ने कीं. लोगों को मारने के लिए वह खास तरीका अपनाता था. वह हमेशा अपने पास एक पीला रुमाल रखता था, जिसमें एक रुपये का सिक्का होता था. वह शिकार के गले में रुमाल का फंदा लगाता और फिर उसमें मौजूद सिक्के से गला घोंटकर पीड़ित का मर्डर कर देता. 


वारदात के दौरान करते सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल


वारदात करने के दौरान बहराम (Thug Bahram) का गिरोह रामोस नाम की सांकेतिक भाषा का इस्तेमाल करता था. इस भाषा के जरिए बहराम अपने गिरोह के लोगों को बता देता था कि काफिले में किस व्यक्ति को टारगेट करना है और कब उसे मारकर पैसा लूटना है. गिरोह के लोग इतने बेरहम थे कि वे काफिले में शामिल सब लोगों को मारने में भी तनिक हिचक नहीं दिखाते थे.


जिस वक्त ये घटनाएं हो रही थीं, उस वक्त देश में अंग्रेजों का राज था. बड़ी संख्या में लोगों के गायब होने से परेशान अंग्रेजी सरकार ने ब्रिटेन से 5 अफसरों की टीम जांच के लिए भेजी. टीम ने भागदौड़ के बाद यह तो पता लगा लिया कि इन वारदातों के पीछे बहराम गिरोह का हाथ है लेकिन वह किसी को पकड़ नहीं पाई. 


75 साल की उम्र में पकड़ गया, मिली फांसी


बहराम गिरोह (Thug Bahram) की क्रूरता 1790 से लेकर 1840 तक जारी रही. दबाव में आई ब्रिटिश सरकार ने 1822 में कैप्टन विलियम हेनरी स्लीमैन को डीएम बनाकर भारत भेजा. हेनरी स्लीमैन ने बहराम को पकड़ने के लिए करीब 15 साल तक कई शहरों की खाक छानी. आखिरकार विलियम को स्लीमैन के उस्ताद सैयद अमीर अली के ठिकाने की जानकारी मिल गई. पुलिस उसके घर तक पहुंची लेकिन तब तक वह फरार हो चुका था. गुस्साए अंग्रेजों ने परिवार के बाकी लोगों को अरेस्ट कर लिया. अपने परिवार को बचाने के लिए अमीर अली ने आखिरकार बहराम के बारे में जानकारी दे दी. 


उसके बताए टिप पर काम करते हुए स्लीमैन ने 1838 में बहराम को गिरफ्तार कर लिया. उस समय उसकी उम्र 75 साल हो चुकी थी लेकिन लूट और हत्याओं के में वह अब भी उतना ही खूंखार था और पूरे गिरोह का संचालन कर रहा था. उसके पकड़े जाने के बाद गिरोह के बाकी लोग भी एक-एक करके पकड़े गए. सन् 1840 में बहराम ठग (Thug Bahram) के साथ उसके सभी कुख्यात साथियों को जबलपुर के एक पेड़ पर फांसी पर लटका दिया गया. इसके बाद ही देश में बहराम गिरोह का आतंक खत्म हो सका.


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