नई दिल्ली: भारत रत्न सर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया की आज 160वीं जयंती है. वे भारत के बेहतरीन इंजीनियर, विद्वान, राजनेता और मैसूर के दीवान थे. उन्हीं की याद में भारत में हर साल 15 सितंबर को अभियंता दिवस (Engineer's Day मनाया जाता है. विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में 15 सितंबर, 1861 को एक तेलुगु परिवार में हुआ था.


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जीवनभर शिक्षा की महत्ता पर दिया जोर
सर विश्वेश्वरैया शिक्षा की महत्ता को भलीभांति समझते थे. लोगों की गरीबी व कठिनाइयों का मुख्य कारण वह अशिक्षा को मानते थे. डॉ. मोक्षगुंडम के नाम कई उपलब्धियां रही हैं. इनमें कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, महारानी कॉलेज, बैंक ऑफ मैसूर का निर्माण, ये वो उपलब्धियां हैं जो लोगों की जुबान पर हैं. इन्होंने भारत की एक बड़ी चीनी मिल स्थापित करवाने के अलावा भी कई बड़े निर्माण कराए. 1912 में जब मैसूर के महाराज ने इन्हें अपना मुख्यमंत्री घोषित किया तो इन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में काम किया. इनके कार्यकाल में स्कूलों की संख्या 4500 से बढ़कर 10,500 तक पहुंची.


एचएएल है डॉक्टर विश्वेश्वरैया की देन
बेंगलुरू में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड और मुम्बई में प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्ट्री भी इनकी मेहनत का नतीजा थी. वह किसी भी कार्य को योजनाबद्ध तरीके से पूरा करने में विश्वास करते थे. यही कारण है कि उन्हें देश के एक महान इंजीनियर के तौर पर जाना जाता है.


दीर्घायु होने का राज
सर विश्वेश्वरैया ने 102 वर्षों का जीवन पाया. और अंत तक सक्रिय जीवन ही जीते रहे. उनसे जुड़ा एक किस्सा काफी मशहूर है कि एक बार एक व्यक्ति ने उनसे पूछा, 'आपके दीर्घायु का रहस्य क्या है?' तब डॉ. विश्वेश्वरैया ने उत्तर दिया, 'जब बुढ़ापा मेरा दरवाज़ा खटखटाता है तो मैं भीतर से जवाब देता हूं कि विश्वेश्वरैया घर पर नहीं है और वह निराश होकर लौट जाता है. बुढ़ापे से मेरी मुलाकात ही नहीं हो पाती तो वह मुझ पर हावी कैसे हो सकता है?'


...जब अंग्रेजों को दिखाया आईना
यह उस समय की बात है जब भारत में अंग्रेजों का शासन था. खचाखच भरी एक रेलगाड़ी चली जा रही थी. यात्रियों में अधिकतर अंग्रेज थे. एक डिब्बे में एक भारतीय मुसाफिर गंभीर मुद्रा में बैठा था. सांवले रंग और मंझले कद का वह यात्री साधारण वेशभूषा में था इसलिए वहां बैठे अंग्रेज उसे मूर्ख और अनपढ़ समझ रहे थे और उसका मजाक उड़ा रहे थे. पर वह व्यक्ति किसी की बात पर ध्यान नहीं दे रहा था. अचानक उस व्यक्ति ने उठकर ट्रेन की जंजीर खींच दी। तेज रफ्तार में दौड़ती ट्रेन तत्काल रुक गई. सभी यात्री उसे भला-बुरा कहने लगे. थोड़ी देर में गार्ड भी आ गया और पूछताछ करने पर बताया कि मेरा अनुमान है कि यहां से लगभग एक फर्लांग (220 गज) की दूरी पर रेल की पटरी उखड़ी हुई है.


अंग्रेजों ने मांगी माफी
गार्ड ने पूछा, 'आपको कैसे पता चला?' वह बोला, 'श्रीमान! मैंने अनुभव किया कि गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आ गया है. पटरी से गूंजने वाली आवाज की गति से मुझे खतरे का आभास हो रहा है.' गार्ड उस व्यक्ति को साथ लेकर जब कुछ दूरी पर पहुंचा तो यह देखकर दंग रह गया कि वास्तव में एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं और सब नट-बोल्ट अलग बिखरे पड़े हैं. तब तक दूसरे यात्री भी वहां आ पहुंचे. जब लोगों को पता चला कि उस व्यक्ति की सूझबूझ के कारण उनकी जान बच गई है तो वे उसकी प्रशंसा करने लगे. गार्ड ने पूछा, 'आप कौन हैं?' उस व्यक्ति ने कहा, 'मैं एक इंजीनियर हूं और मेरा नाम है डॉ. एम. विश्वेश्वरैया है.' यह नाम सुन ट्रेन में बैठे सारे अंग्रेज हैरान रह गए. और उन्होंने माफी मांगी.