Tungnath Temple Story: तुंगनाथ मंदिर की पौराणिक मान्यताओं के बारे में दुनिया जानती है. शिव के इस मंदिर को दुनिया में सबसे ऊंचाई पर स्थित मंदिरों में से एक माना जाता है. हमारी सनातनी परंपरा में जिन पंच केदार शिव मंदिरों की मान्यता है, उसमें तीसरे नंबर पर आता है तुंगनाथ मंदिर.


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सबसे ऊंचे शिवमंदिर को लेकर उदासीनता क्यों?


लेकिन आज पंच केदार मंदिरों में सबसे ज्यादा चिंता तुंगनाथ के इसी शिवमंदिर को लेकर बढ़ी हुई है. ये मंदिर लगातार उत्तर की तरफ झुक रहा है. इसे लेकर चिंता उत्तराखंड सरकार की तरफ से जताई जा चुकी है. ऐसे में जी न्यूज की टीम ने तुंगनाथ मंदिर जाकर ये जानने समझने की कोशिश की, कि एक हजार से ज्यादा साल पुराने मंदिर में ऐसा क्या हो रहा है. तुंगनाथ मंदिर को लेकर जानिए हमारी ये ग्राउंड रिपोर्ट.


समुद्र तल से 12 हजार फीट की ऊंचाई, 1000 साल का ज्ञात इतिहास और अब मंदिर के सामने वजूद का संकट. आखिर क्या संकेत दे रहा है तुंगनाथ मंदिर का उत्तर की दिशा में लगातार झुकना.


क्यों झुकता जा रहा है मंदिर?


तुंगनाथ मंदिर को लेकर उत्तराखंड के मंत्री सतपाल महाराज की इस चिंता ने हमें भी प्रेरित किया ये जानने के लिए, कि सदियों से तमाम कुदरती झंझावातों के बीच साबूत खड़े मंदिर में अब ऐसा क्या होने लगा है.


तुंगनाथ मंदिर का यही रहस्य जानने समझने के लिए जी न्यूज की टीम दिल्ली से रवाना हुई. दिल्ली से करीब 4 सौ किलोमीटर का सफर तो हाइवे और चौड़ी सड़कों के जरिए कुछ घंटों में सिमट गया. लेकिन रुद्रप्रयाग के बाद शुरू होता है असली इम्तिहान.


मंदिर के लिए चुनौतीपूर्ण यात्रा यहीं से शुरू होती है. रुद्रप्रयाग से 60 किलोमीटर दूर पड़ता है चौपता, जो तुंगनाथ मंदिर से पहले का आखिरी पड़ाव है. चौपता एक फॉरेस्ट रिजर्व है, जहां की कुदरती खूबसूरती देखने पूरे साल सैलानी आते हैं. यहीं के छोटे से बाजार से शुरू होती है तुंगनाथ की पैदल यात्रा.


5 किलोमीटर की है चढ़ाई


चौपता के छोटे बाजार से तुंगनाथ मंदिर तक का पांच किलोमीटर रास्ता है, तो मुश्किल, लेकिन पूरे रास्ते में श्रद्दालुओं और सैलानियों का रेला दिखाई देता है. बीच बीच मे ऐसी ऐसी घाटियां और बुग्याल यानी घास के मैदान है, जो बरबस ही मन मोह लेते हैं.


तुंगनाथ मंदिर के जाने वाले रास्ते के साथ ही एक ट्रैक चंद्रशिला की तरफ भी जाता है, जहां तीर्थयात्रा के साथ रोमांच पसंद करने वाले यात्री बड़े पैमाने पर पहुंचते हैं और शानदार ट्रैकिंग का लुत्फ उठाते हैं.


तुंगनाथ मंदिर की बदलती दशा दिशा से पहले ये सारे ब्योरे इसलिए, क्योंकि यही इस जगह की पहचान है. इस ट्रैक से गुजरते हुए जब हमारी टीम मंदिर सामने पहुंची, तो वहां का नजारा वैसा ही भव्य था, जैसा हमने आपको शुरू में बताया.


मंदिर के आगे खड़ा है संकट


करीब 3650 मीटर की ऊंचाई पर इस मंदिर का इतिहास, पुराण और 1000 साल से धार्मिक महत्व का पूरा ब्योरा हम आपको आगे बताएंगे, उससे पहले समझते हैं मंदिर के सामने खड़ा मौजूदा संकट.


मंदिर पहुंचने के बाद हमने जो देखा, उससे हम भी हैरान हुए. क्योंकि ये अचानक नहीं हुआ है. मंदिर में चारों तरफ दरारें दिख रही है. इन दरारों में कई जगह पत्थर और रोड़े भरे गए हैं. इसे लेकर हमने मंदिर के मुख्य पुजारी राम प्रसाद मैठाणी से बात की, तो उनकी बातों में सबसे पहली शिकायत अनदेखी की नजर आई.


मंदिर के मुख्य पुजारी भी दिखे खफा


तुंगनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी राम प्रसाद मैठाणी की बातों में नाराजगी झलक रही है, तो इसकी वजह भी साक्षात दिखती है. मंदिर में दरारे पड़ने और लगातार चौड़ी होने की वजह से मंदिर के सभा मंडप से लेकर गर्भ गृह तक पानी का रिसाव हो रहा है. हालत ये है, कि मंदिर में पूजा भी रेनकोट पहनकर करनी पड़ रही है.


मरम्मत का काम बहुत ढीला


लेकिन मंदिर की तरफ से बार बार गुजारिश करने के बाद भी इसकी मरम्मत का काम गति नहीं पकड़ पा रहा. तुंगनाथ मंदिर की बदहाली को लेकर उत्तराखंड सरकार ने चिंता तो जता दी, लेकिन मंदिर की ग्राउंड सिचुएशन जस की तस है. स्थानीय लोगों से लेकर यहां आने वाले श्रद्धालुओं में इस ढिलाई को लेकर गुस्सा है. मंदिर के पुजारी इस बात से नाराज हैं, कि अगर ऐसे ही चलता रहा, मंदिर में दरारें पड़ती रहीं, ये ऐसे ही उत्तर दिशा की तरफ झुकता रहा, तो फिर हजारों साल पुरानी आस्था की इस विरासत का क्या होगा?


पंच केदार के दूसरे मंदिरों की तरह तुंगनाथ का ये मंदिर भी कत्यूरी शैली में बनाया गया है. और सिर्फ बनावट क्यों, इस मंदिर की विरासत भी त्रेता और द्वापर युग से जुड़ी हुई हैं. स्कंदपुराण के मुताबिक, अपनी कैलाश यात्रा के दौरान लंकापति रावण ने भी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये यहां तपस्या की थी.


पांडवों ने कराया था निर्माण


मंदिर के निर्माण के बारे में माना जाता है कि इसे पांडवों ने अपनी स्वर्गयात्रा के दौरान बनाया था. इस जगह पर मंदिर बनाकर पांडवों ने महाभारत युद्ध के दौरान खुद से हुई ब्रह्म हत्या, गोत्र हत्या, पितृ हत्या और गुरुहत्या के पाप का प्रायश्चित किया था. देश के सभी पंच केदार मंदिर पांडवों की इसी प्रायश्चित से जुड़े हुए माने जाते हैं. 


मान्यता के मुताबिक, पहले केदार, केदारनाथ में युधिष्ठिर ने पूजा की थी. दूसरे केदार मदमहेश्वर में भीम ने पूजा की थी. तीसरे केदार तुंगनाथ में अर्जुन ने पूजा की थी. चौथे केदार रुद्रनाथ मंदिर में नकुल ने पूजा की थी. पांचवे केदार कल्पेश्वर मंदिर में सहदेव ने पूजा की थी.


जैसे हर केदार मंदिर का एक पालक होता है, वैसे ही तुंगनाथ में भी एक पालक की मान्यता है. केदारनाथ में भैरवनाथ को पालक माना जाता है, तो तुंगनाथ में भूतनाथ को क्षेत्र पालक माना जाता है. उनकी मर्जी के बिना कोई भी इस क्षेत्र में दाखिल नहीं हो सकता.


वैसे भी पांच किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई, सबके वश की बात नहीं. इसकी चुनौतियों को पार करते हुए जो लोग यहां आते हैं, उन्हें बड़ी श्रद्धा से देखा जाता है.


भगवान राम ने भी की थी पूजा


तुंगनाथ का ये पूरा इलाका ऐसी तमाम किवंदीतियों से भरा है. ऐसी ही एक मान्यता भगवान राम से भी जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि तुंगनाथ के 2 किलोमीटर ऊपर चंद्रशिला पर भगवान राम ने तपस्या की थी. यहां कोई मंदिर तो नहीं, बल्कि इस किस्से को साक्षात देखने के लिए हर साल हजारों सैलानी चंद्रशिला आते हैं.


ऐसी जितनी भी मान्यताएं हैं, आस्था और विश्वास की विरासत का जो केन्द्र है, वो तुंगनाथ मंदिर ही है.अगर ये मंदिर नहीं रहा, तो क्या होगा, इसे लेकर यहां आने वाले श्रद्धालु भी चिंतित नजर आते हैं.


तो सवाल ये है, कि इतनी सारी सामूहिक चिंताओं के बावजूद मंदिर की देखरेख में ढिलाई क्यों हो रही है? ये सवाल इसलिए, क्योंकि मंदिर को लेकर विशेषज्ञ भी चिंता जाहिर कर चुके हैं. जिन दीवारों में दरारें चौड़ी हो रही हैं, वहां क्रैकोमीटर लगाए गए हैं, ताकि इनके चौड़ी होने की रफ्तार पता चल सके.


धंस रहा फर्श, चौड़ी हो रही दरारें


लेकिन ये दरारें लगातार चौड़ी हो रही हैं, बुनियाद से लेकर फर्श तक नीचे धंसता दिख रहा है. तुगनाथ मंदिर को लेकर प्रशासन की ये उदासीनता तब है, जब पुरात्व विभाग से लेकर जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और सीबीआरआई रुड़की के विशेषज्ञ मंदिर की जांच कर चुका है. इन संस्थाओं ने फौरन जीर्णोद्धार की सिफारिश की है. तो फिर मामला कहां अटका हुआ है.


क्योंकि हजारों साल पुरानी विरासत हर दरार के साथ अपने वजूद के खतरे की तरफ बढ़ रही है. मंदिर की ये हालत देखकर ये सवाल हमारे मन में भी कौंधा. उम्मीद है कि तुंगनाथ मंदिर को लेकर ये ग्राउंड रिपोर्ट सिर्फ आपने ही नहीं बल्कि उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों ने भी देखी होगी. मुमकिन है आने वाले वक्त में जल्द ही इसे लेकर ठोस कदम उठाए जाएं.


(तुंगनाथ मंदिर से सुरेंद्र डसीला की ग्राउंड रिपोर्ट)