नई दिल्ली: यूक्रेन-रूस बॉर्डर (Ukraine-Russia Crisis) पर स्थिति इन दिनों नाजुक बनी हुई है. यूक्रेन को रूस के सवा लाख सैनिकों ने तीन ओर से घेरा हुआ है. इस समय वहां स्थिति इतनी नाज़ुक है कि NATO देशों और रशिया की सेना के बीच कभी भी युद्ध शुरू हो सकता है. 


समझें रूस-यूक्रेन संकट का कारण


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विवाद ये है कि यूक्रेन, North Atlantic Treaty Organization यानी NATO का सदस्य देश बनना चाहता है और Russia इसका विरोध कर रहा है. दरअसल NATO, अमेरिका और पश्चिमी देशों का एक Military Alliance यानी एक सैन्य गठबन्धन है. रूस ये नहीं चाहता कि उसका पड़ोसी देश यूक्रेन NATO का मित्र देश बन जाए. इस पूरे विवाद ने एक नए युद्ध की आशंका को जन्म दे दिया है, जिसमें एक से ज्यादा देश हिस्सा ले सकते हैं. 


युद्ध के लिए तैयार है रूस


इस समय Russia ने यूक्रेन के साथ लगने वाली लगभग 450 किलोमीटर लम्बी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर अपने एक लाख 25 हज़ार सैनिकों को तैनात कर दिया है. ये सैनिक, यूक्रेन की पूर्वी और उत्तर पूर्वी सीमा पर तैनात किए गए हैं.


इसके अलावा Black Sea में भी Russia ने अपने युद्धपोत तैनात किए हुए हैं, जो ख़तरनाक Missiles से लैस हैं. Black Sea, यूक्रेन की सीमा से लगता है. यहीं पर क्राइमिया नाम का क्षेत्र भी है, जो 2014 तक यूक्रेन के पास था. लेकिन बाद में Russia ने इस पर कब्जा कर लिया. इस समय भी इस क्षेत्र पर उसका नियंत्रण है.


Russia ने यूक्रेन की सीमा पर ऐसे Drones भी तैनात कर दिए हैं, जो पलक झपकते ही किसी सैन्य ठिकाने को तबाह कर सकते हैं. यानी कुल मिला कर इस समय Russia ने यूक्रेन को चारों तरफ़ से घेर लिया है.



यूक्रेन मुद्दे पर दो धड़ों में बंटी दुनिया


इस संघर्ष ने दुनिया को दो धड़ों में बांट दिया है. एक तरफ Russia है, जिसे चीन जैसे देशों ने अपना समर्थन दिया है. शुक्रवार को ही रशिया के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बीजिंग में एक अहम मुलाकात हुई है. दूसरी तरफ़ यूक्रेन है, जिसे अमेरिका, ब्रिटेन और NATO देशों का समर्थन मिल रहा है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन भी 1 फरवरी को यूक्रेन के दौरे पर आए थे.


अब सवाल है कि रशिया क्यों नहीं चाहता कि यूक्रेन, NATO देशों में शामिल हो?


NATO अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और फ्रांस जैसे 30 देशों का एक मिलिट्री ग्रुप है. रशिया के सामने चुनौती ये है कि उसके कुछ पड़ोसी देश, पहले ही NATO को Join कर चुके हैं. इनमें Estonia और Latvia जैसे देश भी हैं, जो पहले सोवियत संघ का हिस्सा हुआ करते थे. 


रूस को NATO से सुरक्षा का खतरा


अब अगर यूक्रेन भी NATO का मित्र देश बन गया तो रशिया चारों तरफ़ से अपने दुश्मन देशों से घिर जाएगा और उस पर अमेरिका जैसे देश हावी हो जाएंगे. अगर यूक्रेन NATO का सदस्य देश बन जाता है और भविष्य में रशिया उस पर हमला कर देता है तो समझौते के तहत इस ग्रुप के सभी 30 देश इसे अपने ख़िलाफ़ एक हमला मानेंगे और यूक्रेन की सैन्य मदद भी करेंगे.


रशिया की क्रान्ति के नायक, व्लादिमीर लेनिन ने एक बार कहा था कि रशिया के लिए यूक्रेन को गंवाना ठीक वैसा ही होगा, जैसे एक शरीर से उसका सिर अलग हो जाए. इसी वजह से रशिया, NATO में यूक्रेन के प्रवेश का विरोध कर रहा है.


एक और बात, यूक्रेन, Russia की पश्चिमी सीमा पर मौजूद है. जब वर्ष 1939 से 1945 तक चले दूसरे विश्व युद्ध के दौरान रशिया पर हमला हुआ था, तब यूक्रेन ही वो क्षेत्र था, जहां से रशिया ने अपनी सीमा की सुरक्षा की थी. अगर यूक्रेन NATO देशों के साथ चला गया, तो रशिया की राजधानी मॉस्को, पश्चिमी देशों के लिए सिर्फ़ 640 किलोमीटर दूर रह जाएगी. जबकि अभी ये दूरी लगभग 1600 किलोमीटर है.


यूक्रेन NATO के साथ क्यों जाना चाहता है?


इसे समझने के लिए आपको इतिहास में 100 साल पीछे जाना होगा. वर्ष 1917 से पहले तक रशिया और यूक्रेन.. Russian Empire यानी रूसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे. लेकिन 1917 में रशिया की क्रान्ति के बाद, ये साम्राज्य बिखर गया और यूक्रेन ने खुद को एक स्वतंत्र देश घोषित कर दिया. 


हालांकि यूक्रेन मुश्किल से तीन साल भी आज़ाद नहीं रहा और वर्ष 1920 में ये सोवियत संघ में शामिल हो गया. इसके बावजूद यूक्रेन के लोगों में एक स्वतंत्र राष्ट्र बनने की इच्छा हमेशा से जीवित रही.


वर्ष 1991 में जब सोवियत संघ का विघटन हुआ था, तब 15 नए देश बने थे, जिनमें यूक्रेन भी था. यानी असल मायनों में यूक्रेन को वर्ष 1991 में आज़ादी मिली. यूक्रेन शुरुआत से इस बात को समझता है कि वो कभी भी अपने दम पर रशिया का मुकाबला नहीं कर सकता और इसीलिए वो एक ऐसे सैन्य संगठन में शामिल होना चाहता है, जो उसकी स्वतंत्रता को हर स्थिति में सुनिश्चित करे. NATO से अच्छा विकल्प उसके लिए हो नहीं सकता.


रूस और यूक्रेन की सेना में काफी अंतर


ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि यूक्रेन के पास ना तो रशिया की तरह बड़ी सेना है और ना ही आधुनिक हथियार हैं. यूक्रेन के पास 11 लाख सैनिक हैं, जबकि Russia के पास 29 लाख सैनिक हैं. यूक्रेन के पास 98 लड़ाकू विमान हैं, Russia के पास लगभग 1500 लड़ाकू विमान हैं. अटैक हेलिकॉप्टर, टैंक और बख्तरबंद गाड़ियां भी रशिया के पास यूक्रेन से कहीं ज्यादा हैं.


सोवियत संघ के विघटन से पहले भी Russia और यूक्रेन काफ़ी मजबूत थे. तब क्षेत्रफल में Russia के बाद यूक्रेन सबसे बड़ा देश था और अर्थव्यवस्था के मामले में भी यूक्रेन के पास बड़ी ताकत थी. इसके अलावा आज भी पूरी दुनिया में गेहूं का 30 प्रतिशत उत्पादन इन्हीं दोनों देशों में होता हैं. और इसकी वजह से इन्हें Bread Basket भी कहा जाता है.


वर्ष 2014 यूक्रेन से छीन लिया था क्राइमिया


यूक्रेन भी जानता है कि अगर उसने रशिया के ख़िलाफ़ जाने की कोशिश की तो रशिया, उस पर हमला करके यूक्रेन को दुनिया के नक्शे से मिटा देगा और उस पर अपना कब्जा कर लेगा. जैसा वर्ष 2014 में उसने किया था. तब क्राइमिया, यूक्रेन के अधिकार क्षेत्र में आता था. उस समय यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति ने यूरोपीय यूनियन के साथ एक व्यापारिक समझौता किया था, जिससे नाराज़ होकर रशिया ने इस इलाक़े को अपने कब्जे में ले लिया था और उस समय दुनिया कुछ भी नहीं कर पाई थी.


इस पूरी कहानी में अमेरिका की भूमिका भी आपको समझनी चाहिए. अमेरिका ने अपने तीन हज़ार सैनिकों को यूक्रेन की मदद के लिए भेजा है और उसे भरोसा दिया गया है कि वो यूक्रेन की हर सम्भव मदद करेगा. लेकिन सच ये है कि अमेरिका के मौजूदा राष्ट्रपति जो बाइडेन केवल यूक्रेन का इस्तेमाल करके अपनी छवि को मजबूत कर रहे हैं. 


अपने छवि चमकाने की कोशिश में अमेरिका


पिछले वर्ष अफगानिस्तान से अमेरिका को अपनी सेना को वापस बुलाना पड़ा था. इसके अलावा ईरान में भी अमेरिका कुछ हासिल नहीं कर पाया और तमाम प्रतिबंधों के बावजूद नॉर्थ कोरिया भी लगातार मिसाइल परीक्षण कर रहा है. इन घटनाओं से अमेरिका की चैम्पियन वाली छवि को नुकसान पहुंचा है और इसीलिए जो बाइडेन, यूक्रेन-Russia विवाद से इसकी भरपाई करना चाहते है.


गैस के लिए रूस पर निर्भर हैं यूरोपीय देश


अमेरिका के अलावा ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने भी यूक्रेन का समर्थन किया है. लेकिन इन देशों का ये समर्थन कितने दिन तक रहेगा, ये एक बड़ा सवाल है. वो इसलिए क्योंकि यूरोपीय देश अपनी ज़रूरत की एक तिहाई गैस के लिए Russia पर निर्भर हैं. अब अगर Russia इस गैस सप्लाई को रोक देता है तो इन देशों में बिजली का भयानक बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा. हो सकता है कि ये संकट इन देशों की सरकारों को बर्खास्त भी करवा दे. 


दरअसल यूरोप के देशों में मौसम अधिकतर ठंडा रहता है और यहां पिछले कुछ दिनों में बिजली के दाम 600 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं. सोचिए, ऐसे में अगर रशिया ने गैस की सप्लाई ही रोक दी तो ये देश कैसे गुजारा करेंगे?


भारत के लिए रूस-यूक्रेन दोनों जरूरी


इस विवाद में भारत की स्थिति भी बहुत महत्वपूर्ण है. भारत के लिए रशिया भी ज़रूरी है, अमेरिका भी ज़रूरी है और यूक्रेन के साथ भी उसके अच्छे रिश्ते हैं. भारत आज भी 55 प्रतिशत हथियार रशिया से ख़रीदता है. जबकि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते पिछले 10 वर्षों में काफ़ी मजबूत हुए हैं. इसके अलावा यूक्रेन ने फरवरी 1993 में एशिया में सबसे पहले जिस देश में अपना दूतावास खोला था, वो भारत था. इसके बाद से लगातार भारत और यूक्रेन के बीच कारोबारी, सामरिक और राजनयिक संबंध मजबूत हुए हैं. यानी भारत चाहकर भी इनमें से किसी भी देश को नाराज़ नहीं कर सकता.


यहां एक और पाइंट ये है कि भारत-चीन सीमा विवाद पर रशिया ने अब तक निष्पक्ष रुख अपनाया है. अगर भारत यूक्रेन का समर्थन करता है तो इससे रशिया भी कूटनीतिक तौर पर चीन की टीम में चला जाएगा. शायद यही वजह है कि जब हाल ही में, अमेरिका समेत 10 देश, United Nations में यूक्रेन को लेकर एक प्रस्ताव लाए तो भारत ने इस पर किसी के पक्ष में वोट नहीं किया.


हमारे लिए चिंता की एक बात ये भी है कि यूक्रेन में इस समय लगभग 20 हज़ार भारतीय फंसे हुए हैं, जिनमें 18 हज़ार Medical Students हैं.


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अजीब है दोनों देशों के रिश्तों की गुत्थी


वैसे ऐसा कहा जाता है कि, यूक्रेन और रशिया के रिश्तों को समझना बहुत मुश्किल है. यूक्रेन के लोग स्वतंत्र तो रहना चाहते हैं, लेकिन इसके साथ ही पूर्वी यूक्रेन के लोगों में ये भावना भी काफ़ी मजबूत है कि यूक्रेन को रशिया का वफादार बन कर रहना चाहिए. इसके अलावा यूक्रेन की राजनीति में नेता दो धड़ों में बंटे हुए हैं. एक खुले तौर पर रशिया का साथ देते हैं और दूसरे पश्चिमी देशों का समर्थन करते हैं. और यही वजह है कि आज यूक्रेन दुनिया की बड़ी बड़ी ताकतों के बीच फंस कर रह गया है.