अब 24वें सप्ताह में भी गर्भपात करा सकेंगी महिलाएं, नए बिल को कैबिनेट की मंजूरी
6 महीने तक का गर्भ गिराना है तो उसमें 2 डॉक्टरों की अनुमति लेनी होगी. जिनमें से एक सरकारी डॉक्टर होगा.
नई दिल्ली: केंद्रीय कैबिनेट ने आज मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट (संशोधित) 1971 को मंजूरी दी, इसके अंतर्गत गर्भपात की उपरी सीमा 20 से बढ़ाकर 24 सप्ताह की जाएगी. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कैबिनेट मीटिंग की जानकारी देते हुए बताया, 'महिलाओं की मांग थी, डॉक्टर की सिफारिश थी, कोर्ट का आग्रह था. इसके कारण 2014 से सभी स्टेक होल्डर्स के साथ चर्चा शुरू हुई. इसके बाद गडकरी जी की अध्यक्षता में एक ग्रुप ऑफ मीनिस्टर्स बना और फिर ये बिल आज कैबिनेट ने पास किया जो अभी संसद में जाएगा....
.....पहले 20 सप्ताह तक के गर्भ को गिराने की अनुमित थी. अब यह 24 सप्ताह (6 महीने) कर दिया गया है. 6 महीने तक का गर्भ गिराना है तो उसमें 2 डॉक्टरों की अनुमति लेनी होगी. जिनमें से एक सरकारी डॉक्टर होगा. महिलाओं के स्वास्थ्य का ख्याल रखने के संदर्भ में यह एक महत्वपूर्ण कदम हैं. दुनिया में बहुत कम देशों में इस तरह का कानून है और आज भारत भी इस सूची में शामिल हो गया है.' इसके अलावा कैबिनेट ने आज एक और महत्वपूर्ण निर्णय को हरी झंडी दी है. केंद्रीय मंत्री ने बताया कि भारत के सभी पोर्ट पर 28,000 लोग काम करते हैं और इन सभी को बोनस के एवज में प्रॉड्क्टिविटी लिंक रिवार्ड मिलता था यह योजना 2017-18 में समाप्त हुई. पर इसे और आगे बढ़ाते हुए अब रिवार्ड जहाज के कुल नफा-नुकसान पर आधारित होगा, जिससे सभी कर्मचारियों को लाभ मिलेगा. भारत के सभी पोर्ट पर 28 हजार लोगों को बोनस बढ़ाया है जिनका वेतन 7 हजार तक है उनको 13 हजार का बोनस मिलेगा.
कैबिनेट के एक अन्य निर्णय के मुताबिक पूर्वोत्तर राज्य के बजट का 30% बजट का आवंटन उपेक्षित क्षेत्र,उपेक्षित वर्ग के लिए होगा, इस व्यवस्था से सरलीकरण होगा, काम की गति बढ़ेगी और विकास के अवसर बढ़ेगें. केंद्र सरकार पूर्वोत्तर राज्यों की काउंसिल को 90 फीसदी हिस्सा अभी तक देती है अब 30 प्रतिशत जो उपेक्षित पिछड़े इलाके है उनपर खर्च होगा. इसके अलावा आयुर्वेद, यूनानी और सिद्ध चिकित्सा प्रक्रिया के लिए कमीशन बनेगा.
दरअसल, पिछले साल गर्भपात कराने की अवधि को लेकर अदालत में जनहित याचिका दायर की गई थी. इस अर्जी पर सुनवाई के दौरान स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले वर्ष अगस्त में दिल्ली हाई कोर्ट को बताया था कि गर्भवती महिला की सेहत को ध्यान में रखते हुए उसके गर्भपात की समयसीमा 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते करने को लेकर उनकी तरफ से विचार-विमर्श शुरू कर दिया गया है. हलफनामे में कहा गया था कि संबंधित मंत्रालय और नीति आयोग की राय लेने के बाद गर्भपात संबंधी कानून में संशोधन के मसौदे को जल्द ही अंतिम रूप दे दिया जाएगा. इसके बाद उसे विधि मंत्रालय के पास भेज दिया जाएगा ताकि गर्भपात संबंधी कानून पर जरूरी संशोधन हो सके.
इसके साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय ने उच्च न्यायालय को यह भी बताया था कि उसने गर्भपात संबंधी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेन्सी कानून, 1971 में संशोधन को लेकर अपना मसौदा कानून मंत्रालय के पास भेज दिया है. विधि मंत्रालय ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कहा था कि अभी संसद के दोनों सदन अनिश्चितकाल के लिए स्थगित है. ऐसे में नई सरकार बनने के बाद इस मुद्दे पर गौर करेंगे.
मंत्रालय ने यह हलफनामा याचिकाकर्ता वकील एवं सामाजिक कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर जनहित याचिका के मामले में दाखिल किया था. अमित साहनी की ओर से अर्जी में कहा गया था कि महिला और उसके भ्रूण के स्वास्थ्य के खतरे को देखते हुए गर्भपात कराने की अवधि 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 से 26 हफ्ते कर दी जाए. इसके अलावा गैरशादीशुदा महिला और विधवाओं को भी कानूनी रूप से गर्भपात कराने की अनुमति दी जानी चाहिए.
याचिकाकर्ता वकील अमित साहनी ने अपनी इस जनहित याचिका में कई व्यावहारिक दिक्कतों का भी जिक्र किया था, जाकि समाज में गर्भधारण के बाद महिलाओं को झेलनी पड़ती है. याचिका में उनकी तरफ से यह भी कहा गया था कि जिस तरह से गर्भधारण का अधिकार महिला के पास है उसी तरह से गर्भपात कराने का भी अधिकार महिला के पास होना चाहिए.
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