UP Politics: यूपी में भाजपा और राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल उत्तर प्रदेश की नौ विधानसभा सीटों पर आगामी 13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव के लिए सीट बंटवारे को लेकर गहन पैरवी और दांव-पेच में लगे हैं. आगामी 25 अक्टूबर को नामांकन समाप्त होने में सिर्फ तीन दिन बचे हैं, सीट-बंटवारे को लेकर समझौते के अंतिम स्तर पर कई अटकलें हैं.


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सपा-कांग्रेस में टेंशन
दिलचस्प यह है कि नौ में से सात सीटों पर उम्मीदवारों के नाम घोषित करने के समाजवादी पार्टी के कदम के बावजूद कांग्रेस अब तक कम से कम अपनी "पांच सीटों" की मांग पर अड़ी हुई है. सपा ने फिलहाल कांग्रेस के लिए गाजियाबाद और अलीगढ़ की ख़ैर सीट छोड़ी है. उप्र कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा, ''गठबंधन समझौते के तहत हमने सपा से पांच सीटें मांगी थीं और हम अब भी उस पर कायम हैं.'' उन्होंने उन रिपोर्टों को अधिक तवज्जो नहीं दी, जिनमें कहा गया था कि कांग्रेस ने वरिष्ठ गठबंधन सहयोगी द्वारा नजरअंदाज किए जाने के विरोध में उप्र उपचुनाव से बाहर निकलने का फैसला किया है.


राय ने इस विषय पर आगे के प्रश्नों को स्पष्ट रूप से टालते हुए एक रहस्यमय प्रतिक्रिया में कहा, "सभी मामलों पर आलाकमान फैसला करेगा." समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने करहल में पत्रकारों से कहा, ''बातचीत चल रही है.''


सपा-कांग्रेस गठबंधन की राजनीतिक ताकत 2024 के लोकसभा चुनावों में स्पष्ट हुई जब उसने उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में 43 सीटें (37 सपा और छह कांग्रेस) जीतकर भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 36 सीटों पर सीमित कर दिया, लेकिन हरियाणा चुनाव में भाजपा ने 90 में 48 सीटें जीतकर बाजी पलट दी.


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बीजेपी की दिक्‍कत
उधर, सत्तारूढ़ भाजपा को भी निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल (निषाद) जैसे सहयोगियों के साथ दिक्कत हो रही है. राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मल्‍लाह समुदाय के समर्थन का दावा करने वाली क्षेत्रीय पार्टी ने अपनी "दो सीटों" की मांग के समर्थन में "वरीयता और गठबंधन धर्म" का हवाला दिया. निषाद पार्टी के प्रमुख और उप्र के मंत्री संजय निषाद वर्तमान में अपनी मांग के लिए समर्थन जुटाने के लिए दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं. निषाद पार्टी मिर्जापुर जिले की मझवा और अंबेडकर नगर की कटहरी विधानसभा सीटें मांग रही है, जहां उसने 2022 के उप्र विधानसभा चुनावों में अपने सिंबल पर चुनाव लड़ा था.


उपचुनाव इसलिए जरूरी हो गया क्योंकि 2024 के लोकसभा चुनाव में मझवा से निषाद पार्टी के विधायक विनोद बिंद (भाजपा के टिकट पर) सांसद बन गए. निषाद पार्टी के एक सूत्र ने तर्क दिया “हम जो चाह रहे हैं वह तार्किक है और पहले के प्रयोग पर आधारित है क्योंकि 2019 में संगम लाल गुप्ता, जो तब भाजपा के सहयोगी अपना दल (एस) के विधायक थे, भाजपा के सिंबल पर प्रतापगढ़ के सांसद बने.


उन्होंने कहा "गुप्ता के सांसद बनने के बाद हुए विधानसभा उपचुनाव के दौरान, यह अपना दल (एस) था जिसने भाजपा-अपना दल (एस) गठबंधन के हिस्से के रूप में सीट पर अपना उम्मीदवार खड़ा किया था.” उन्होंने कहा "कटहरी में भी 2022 के चुनावों में हारने के बावजूद, हमारे पास एक मामला है, जैसे 2022 के चुनावों में रामपुर की स्वार विधानसभा सीट से हारने के बावजूद, अपना दल (एस) के उम्मीदवार ने स्वार विधायक अब्दुल्ला आजम की अयोग्यता के कारण उपचुनाव के बाद अपना उम्मीदवार खड़ा किया था."


रालोद की नजर
भाजपा की अन्य सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) की नजर मीरापुर विधानसभा सीट पर इस आधार पर है कि उसने 2022 के उप्र चुनाव में यह सीट जीती थी. रालोद उम्मीदवार के लोकसभा चुनाव में बिजनौर से जीतने के कारण उपचुनाव की जरूरत पड़ी. रालोद के एक नेता ने कहा, ''हम खैर सीट भी चाहते हैं,'' जिससे यह स्पष्ट हो गया कि सहयोगी दल सीट पाने में लगे हुए हैं.


निर्वाचन आयोग के अनुसार उत्तर प्रदेश विधानसभा सीट करहल, कुंदरकी, कटेहरी, सीसामऊ, खैर, गाजियाबाद सदर, मीरापुर, मझवा और फूलपुर के लिए 13 नवंबर को मतदान होगा तथा 23 नवंबर का मतों की गिनती होगी. एक सीट अयोध्या जिले की मिल्कीपुर में अदालती मामला होने की वजह से चुनाव घोषित नहीं है.


2022 में क्‍या था नतीजा
उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उपरोक्त 10 सीट में से मझवा और कटेहरी को सहयोगी निषाद पार्टी के हिस्से में दे दिया था और बाकी सभी सीट पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. निषाद पार्टी ने मझवा में जीत हासिल की लेकिन कटेहरी में पराजित हो गयी. उधर, आठ सीट में से भाजपा ने सिर्फ खैर, गाजियाबाद सदर और फूलपुर सीट जीती थीं. वहीं, समाजवादी पार्टी (सपा) पांच और उस समय उसकी सहयोगी रही राष्‍ट्रीय लोकदल (रालोद) ने एक जीती थी. राष्‍ट्रीय लोकदल भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है.


(इनपुट: एजेंसी भाषा के साथ)