यूपी में 150 साल पुराने पेड़ का अंतिम संस्कार, मुजफ्फरनगर की शालू सैनी पेश की इंसानियत की मिसाल
Muzaffarnagar News: पितृ पक्ष का महीना चल रहा है. ऐसे में लोग अपने पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान कर रहे हैं. वहीं, मुजफ्फरनगर की शालू सैनी ने पहली बार पेड़ का अंतिम संस्कार किया है.
Muzaffarnagar News: यूपी के मुजफ्फरनगर में 150 साल पुराने पेड़ का अंतिम संस्कार करने का अनोखा मामला सामने आया है. गंगनहर पटरी पर पिछले 150 साल से खड़ा सेमल का एक विशालकाय पेड़ जब तेज हवाओं के साथ जमीन पर गिर गया तो मुजफ्फरनगर की एक महिला ने पेड़ का हिन्दू रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार करते हुए समाज को प्रकृति के वातावरण और मनुष्य के बीच अटूट रिश्ते का आईना दिखाया.
पेड़ का अंतिम संस्कार किया
अभी तक आपने इंसानों के साथ-साथ पालतू पशु-पक्षियों का अंतिम संस्कार करने के बारे में देखा और सुना होगा, लेकिन पहली बार देखा एक पेड़ का अंतिम संस्कार करने की अनोखी घटना सामने आई है. दरअसल, बुधवार को मुजफ्फरनगर में तेज हवाओं के साथ बारिश हुई. इस दौरान बेलड़ा गंगनहर पटरी पर 150 साल पुराना सेमल का पेड़ गिर गया. शुक्रवार को मुजफ्फरनगर की रहने वाली शालू सैनी ने पेड़ की कुछ लकड़ियां लेकर नई मंडी स्थित श्मशान घाट पहुंची और सेमल के पेड़ का विधि विधान से अंतिम संस्कार किया.
सम्मान के साथ पेड़ का तर्पण
शालू सैनी ने बताया कि पुराने पेड़ के गिरने से ऐसा लगा कि जैसे घर के किसी बुजुर्ग ने आखिरी सांस ली हो, तभी ठान लिया कि सम्मान के साथ धरोहर का तर्पण करना है. चार पीढ़ियों की बेशुमार यादें साथ लिए सेमल का 150 पुराना पेड़ दुनिया को छोड़कर चला गया. जमीन से सेमल की जड़ जरूर जुदा हुई, लेकिन जाते-जाते भी वह समाज के लिए समर्पण, संस्कार और इंसानियत का नया बीज बो गया है.
2 अक्टूबर को हवन-यज्ञ का आयोजन
लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाली शालू सैनी ने सेमल के पेड़ का तर्पण करने का बीड़ा उठाया. बेलड़ा से पेड़ की लकड़ियां लाकर हिंदू रीति रिवाज से नई मंडी श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार किया. अब पितृ विसर्जनी अमावस्या यानी दो अक्तूबर को अन्य आत्माओं के साथ विधि-विधान से पेड़ के मोक्ष के लिए हवन में आहुति करेंगी.
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में नाम दर्ज
बता दे कि शालू सैनी किसी परिचय की मोहताज नहीं हैं. कोरोना काल से लेकर अभी तक हजारों की संख्या में लावारिस शवों की वारिस बन शालू सैनी अंतिम संस्कार कर चुकी हैं. उनके इस कार्य के लिए उन्हें लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड और अन्य कई पुरुस्कारों से सम्मानित किया जा चूका है. शालू सैनी श्मसान घाट और कब्रिस्तान में बिना भेदभाव किए हिन्दू मुस्लमान लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं.
देखें वीडियो : Video: 150 साल पुराने पेड़ का अंतिम संस्कार, ना कभी देखा ना सुना महिला ने पहली बार ऐसा कर दिया
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