सपा नेता और पूर्व विधायक को 3 साल 11 महीने की सजा, MP MLA कोर्ट ने सुनाई सजा
Bulandshahr News: पूर्व विधायक और सपा नेता बंशी सिंह पहाड़िया एक बार फिर चुनाव आचार संहिता के मामले में नप गए हैं. MP/MLA कोर्ट ने बंशी सिंह को 3 साल 11 महीने की जेल और 50 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई है. आइये जानते हैं क्या है पूरा मामला.
Bulandshahr News: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक अहम नाम, पूर्व विधायक बंशी सिंह पहाड़िया, को आचार संहिता और कोविड नियमों के उल्लंघन के आरोप में 3 साल 11 महीने की सजा सुनाई गई है. इसके साथ ही उन्हें 50 हजार रुपये का जुर्माना भी भरना होगा. यह फैसला बुलंदशहर जिले के अनूपशहर की एमपी/एमएलए विशेष कोर्ट ने सुनाया है. कोर्ट के आदेश के बाद, बंशी पहाड़िया को न्यायिक हिरासत में लेकर जेल भेज दिया गया है.
2022 विधानसभा चुनाव का मामला
2022 विधानसभा चुनाव से जुड़ा है, जब बंशी सिंह 2002 पहाड़िया समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) गठबंधन के तहत खुर्जा विधानसभा सीट से प्रत्याशी थे. उस समय, खुर्जा कोतवाली में उनके खिलाफ आचार संहिता और कोविड नियमों के उल्लंघन का मामला दर्ज हुआ था. बंशी सिंह पहाड़िया के साथ 450 अज्ञात व्यक्तियों पर भी एफआईआर दर्ज की गई थी. इन सभी पर चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करने और कोविड-19 के प्रोटोकॉल का पालन न करने का आरोप था.
2009 में भी आचार संहिता का उल्लंघन
यह पहली बार नहीं है जब बंशी सिंह पहाड़िया चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन करते पाए गए हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में भी उनके खिलाफ चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का मामला दर्ज हुआ था. उस समय, उन्होंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान बिना अनुमति के रैली निकाली थी और निर्धारित समय के बाद भी प्रचार जारी रखा था. इस घटना ने उन्हें विवादों में घेर लिया था और चुनाव आयोग ने सख्त रुख अपनाते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई की थी.
न्यायिक प्रक्रिया और सजा
2022 के विधानसभा चुनाव में हुए उल्लंघन के मामले में विशेष कोर्ट ने बंशी सिंह पहाड़िया को दोषी पाया और उन्हें सजा सुनाई है. कोर्ट ने कहा कि चुनाव आचार संहिता और कोविड नियमों का उल्लंघन गंभीर अपराध है, जो न केवल लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रभावित करता है बल्कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी खतरा उत्पन्न करता है.
सजा से पहाड़िया समर्थकों में निराशा
बंशी सिंह पहाड़िया की सजा को लेकर उनके समर्थकों में निराशा है, लेकिन न्यायपालिका ने अपने फैसले से यह स्पष्ट संदेश दिया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि इस तरह के मामलों में सख्त सजा जरूरी है, ताकि भविष्य में कोई भी व्यक्ति चुनावी नियमों और कानूनों का उल्लंघन करने की हिम्मत न कर सके.
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