प्रयागराज: बेटों और बेटियों के समान अधिकार को लेकर प्रयागराज हाईकोर्ट ने एक और बड़ा निर्णय लिया है. इस महत्वपूर्ण फैसले में कोर्ट ने कहा है कि बेटों की तरह बेटियां भी परिवार की ही सदस्य हैं. चाहे वे अविवाहित हों या शादीशुदा. हाईकोर्ट ने 'मृतक आश्रित सेवा नियमावली' में 'अविवाहित' शब्द को लिंग के भेदभाव करने वाला शब्द बताया है. इसीलिए कोर्ट ने इस शब्द को असंवैधानिक घोषित कर दिया है. याची मंजुल श्रीवास्तव की याचिका को स्वीकार करते हुए जस्टिस जेजे मुनीर ने यह आदेश दिया है.


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कोर्ट ने दिया बीएसए को 2 महीने का समय
गौरतलब है कि बीएसए प्रयागराज ने याची मंजुल श्रीवास्तव को विवाहित होने के आधार पर मृतक आश्रित के रूप में नियुक्ति देने से मना कर दिया था. इसके खिलाफ मंजुल ने कोर्ट में याचिका दर्ज की थी, जिसपर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने बीएसए प्रयागराज के इस आदेश को रद्द कर दिया है. कोर्ट ने याचिका स्वीकार करते हुए बीएसए को 2 महीने में निर्णय लेने के निर्देश दिए हैं. 


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परिवार के आर्थिक संकट को देखते हुए मांगी नियुक्ति
दरअसल, याची की मां प्राथमिक विद्यालय चाका में प्रिंसिपल थीं. कुछ समय पहले उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. मंजुल के पिता बेरोजगार हैं. परिवार आर्थिक संकटों से जूझ रहा है. इसे देखते हुए मंजुल ने आश्रित कोटे में नियुक्ति की मांग की थी.


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विवाहित बेटी को भी मिलेगा नियुक्ति का अधिकार
याचिका पर एडवोकेट घनश्याम मौर्य ने मंजुल श्रीवास्तव की तरफ से बात रखी. घनश्याम मौर्य ने बताया कि विमला श्रीवास्तव केस में कोर्ट ने नियमावली में 'अविवाहित' शब्द को असंवैधानिक करार दिया है. साथ ही, इस शब्द को रद्द करते हुए बीएसए के आदेश को भी रद्द कर दिया है. अबसे विवाहित पुत्री को भी आश्रित कोटे में नियुक्ति का अधिकार है.


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