मोहम्मद गुफरान/प्रयागराज: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने शुक्रवार को प्रयागराज समेत अन्य​ जिलों में गंगा नदी किनारे रेती में दफनाए गए शवों के अंतिम सरकार की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया. हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि यदि किसी परिवार में मृत्यु होती है, तो क्या शव का अंतिम संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी है? 


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मुख्य न्यायाधीश संजय यादव व न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की बेंच में सुनवाई
मुख्य न्यायाधीश संजय यादव और न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता एडवोकेट प्रणवेश से पूछा कि इसमें उनका व्यक्तिगत योगदान क्या रहा है. क्या उन्होंने खुद कब्र खोदकर शवों का अंतिम संस्कार किया है? चीफ जस्टिस ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि हम इस याचिका को अनुमति नहीं देंगे. इसके लिए आपको कुछ व्यक्तिगत योगदान दिखाना होगा, अन्यथा हम भारी जुर्माना लगा सकते हैं.


याची ने गंगा किनारे दफनाए गए शवों का दाह संस्कार कराने की मांग की थी
वकील प्रणवेश ने अपनी याचिका में मांग की थी कि इलाहाबाद हाई कोर्ट उत्तर प्रदेश सरकार को धार्मिक संस्कारों के अनुसार गंगा नदी के किनारे रेती में दफनाए गए शवों का अंतिम संस्कार करने और आगे से नदी किनारे शवों को दफनाने से रोकने के लिए निर्देशित करे. उन्होंने अपनी याचिका में तर्क दिया था कि धार्मिक संस्कारों के अनुसार गंगा नदी के किनारे दफनाए गए शवों का दाह संस्कार करना राज्य की जिम्मेदारी थी.


किसी के घर में मृत्यु होती है तो अंतिम संस्कार राज्य की जिम्मेदारी नहीं है
इसके जवाब में हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता से पूछा कि राज्य को ऐसा क्यों करना चाहिए? अगर किसी परिवार में मृत्यु होती है, तो क्या शव के अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी राज्य की होती है? चीफ जस्टिस ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि हम इस याचिका में की गई मांग को अमल में लाने के आदेश नहीं दे सकते. 


याचिकाकर्ता को प्रचलित प्रथाओं व संस्कारों की जानकारी नहीं: हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि यह जनहित याचिका नहीं बल्कि प्रचारहित याचिका है. वकील प्रणवेश की याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि आपने अंतिम संस्कार और उसके संबंध में बिना कोई शोध किए याचिका दाखिल की है. आपको गंगा के किनारे रहने वालों की प्रचलित प्रथा और संस्कारों, रीतिरिवाज की जानकारी नहीं है. 


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