प्रयागराज/मुहम्मद गुफरान: इटावा शहर के पोस्टमार्टम हाउस में तीन साल से रखे महिला के कंकाल के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट बेहद गभीर है. तीन वर्षों से रखे ककाल का अंतिम संसकार नहीं होने पर हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार और स्थानीय पुलिस अधिकारियों से पूछा है कि अभी तक इसका अंतिम संस्कार क्यों नहीं हुआ? कोर्ट ने कंकाल का नमूना लेते हुए विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने के निर्देश दिए है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर को होना है. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दरअसल एक समाचार पत्र में छपी खबर पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति अजय भनोट की खंडपीठ ने सरकार और स्थानीय पुलिस अधिकारियों से पूछा है कि आमतौर पर शव गृहों में रखे गए शवों के अंतिम संस्कार की क्या प्रथा है? अगर इतना विलंब हुआ है तो इसकी वजह क्या है. किस कारण निश्चित समय में अंतिम संसकार नहीं हुआ. कोर्ट ने यह भी पूछा कि पोस्टमार्टम हाउस में अंतिम संसकार की प्रथा क्या है.  कोर्ट ने मामले की विवेचना की स्थिति और शव संरक्षित करने की पूरी टाइम लाइन बताने का निर्देश दिया है. साथ ही संबंधित केस डायरी और डीएनए जांच को भेजे गए सेंपल रिपोर्ट की भी जानकारी मांगी है.


दरअसल कोर्ट में एक परिवार ने रीता नाम के युवती के कंकाल होने का दावा किया है. परिवार के मुताबिक अभी तक डीएनए रिपोर्ट से कोई निष्कर्ष नहीं निकला है,


संविधान मृतकों का संरक्षक


कोर्ट ने कहा संविधान मृतकों का संरक्षक है अदालतें उनके अधिकारों की प्रहरी हैं, कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा मृतकों के अधिकार जीवित से कम नहीं हैं. मृतकों को कानून द्वारा त्यागा नहीं जाता और वे कभी भी संवैधानिक अधिकार से वंचित नहीं होते है.  मामले में कोर्ट ने हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के महासचिव नितिन शर्मा को न्याय मित्र भी नियुक्त किया है. चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवारकर और अजय भनोट की डिविजन बेंच ने की मामले में सुनवाई.


यह भी पढ़े-  UP PET Exam 2023: यूपी के 35 जिलों में पीईटी की परीक्षा आज से, बैठेंगे 20 लाख अभ्यर्थी, AI और CCTV से सॉल्वर गैंग पर नजर