अयोध्या राम मंदिर के गर्भगृह की बनावट में मिली खामियां, आचार्य सत्येंद्र दास ने उठाए गंभीर सवाल
Ayodhya Ram Mandir : मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का कहना है कि रोजाना रामलला को सुबह जगाया जाता है. इसके बाद उनकी मंगला आरती की जाती है. फिर बाद में रामलला को स्नान कराया जाता है.
Ayodhya Ram Mandir : अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण करने वाली संस्था पर तकनीकी गड़बड़ी करने के आरोप लगे हैं. पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने राम मंदिर के आर्किटेक्ट और निर्माण करने वाली संस्था को कठघरे में खड़ा किया है. पुजारी सत्येंद्र दास ने आरोप लगाया है कि मंदिर के गर्भगृह को सही तरीके से नहीं बनाया गया है. इसके चलते उन्हें परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
यह है परंपरा
दरअसल, मंदिर के मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का कहना है कि रोजाना रामलला को सुबह जगाया जाता है. इसके बाद उनकी मंगला आरती की जाती है. फिर बाद में रामलला को स्नान कराया जाता है. इसके बाद रामलला को नया वस्त्र धारण कर श्रृंगार किया जाता है. इसके बाद रामलला को फूलों की माला और इत्र चंदन भी लगाए जाते हैं.
रामलला के स्नान के बाद जमा हो जाता है पानी
मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का कहना है कि भगवान रामलला को स्नान कराने के बाद पानी वहीं जमा हो जाता है. भगवान रामलला को स्नान कराने के बाद जल को थार में भरकर फेंकना पड़ता है. मुख्य पुजारी सत्येंद्र दास का कहना है कि गर्भगृह में पानी बाहर निकलने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. सिंहासन पर भी इस तरह की व्यवस्था है कि स्नान के बाद पानी सिंहासन में ही जमा हो जाता है. इसके बाद उसे सूखे कपड़े के माध्यम से भिगोकर पानी को बाहर निकलते हैं.
कपड़े से सुखाया जाता है पानी
सत्येंद्र दास का आरोप है कि मंदिर को अपने मन से बनाया गया है, जबकि अयोध्या में हजारों मंदिर है लेकिन राम मंदिर का गर्भगृह सही रूप से नहीं बना है. पानी गिरता है तो उसे कपड़े से सुखाया जाता है. इसके लिए पुजारी को परेशानी का सामना करना पड़ता है. उनका मानना है कि गर्भगृह में पुजारी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को प्रवेश की अनुमति नहीं होती है. इस कारण पानी की सफाई का कार्य भी पुजारी को ही करना पड़ता है. साथ ही गर्मी के निजात पाने के लिए लगाई गई एसी की व्यवस्था भी गड़बड़ है. उनका कहना है कि गर्भगृह को प्रतिदिन धोने की परंपरा है. लेकिन जल निकासी की व्यवस्था न होने से पुजारी सिर्फ झाड़ू पोक्षा ही लगाकर परंपरा का निर्वाह करते हैं.
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