Ram Mandir News : राम की नगरी अयोध्या रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए तैयार है. 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी. राम मंदिर के स्वप्न को साकार करने में कई ऐसे नायक हैं, जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर अपना जीवन समर्पित कर दिया. ऐसे ही अयोध्या के एक अहम किरदार हैं गोपाल सिंह विशारद. आजाद भारत में इसे लेकर पहला मुकदमा किया गया था 1950 में, जिसका अंत 2019 में हुआ. केस दायर करने वाले थे गोपाल सिंह विशारद. उनके बेटे राजेंद्र सिंह विशारद राम मंदिर भूमि पूजन कार्यक्रम में शामिल होंगे. लेकिन नई पीढ़ी को गोपाल सिंह विशारद के बारे में शायद ही पता हो. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

पहला मुकदमा दायर किया
आजादी के बाद पहला मुकदमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई. को सिविल जज, फ़ैज़ाबाद की कोर्ट में दायर किया था. वह उत्तर प्रदेश के तत्कालीन जिला गोंडा, वर्तमान जिला बलरामपुर के निवासी और हिंदू महासभा, गोंडा के जिलाध्यक्ष थे. गोपाल सिंह विशारद 14 जनवरी, 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका. पुलिस अन्य दर्शनार्थियों को भी रोक रही थी.


 यह भी पढ़ें : राजघराने की वो महिला, जिसने राम मंदिर आंदोलन को BJP का हथियार बना दिया, फायरब्रांड उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा को जोड़ा


गोपाल सिंह विशारद ने जिला अदालत से प्रार्थना की कि ''प्रतिवादीगणों के विरुद्ध स्थायी व सतत निषेधात्मक आदेश जारी किया जाए ताकि प्रतिवादी स्थान जन्मभूमि से भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को उस स्थान से जहां वह हैं, कभी न हटावें तथा उसके प्रवेशद्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग बंद न करें और पूजा-दर्शन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न डालें ''.


अदालत ने सभी प्रतिवादियों को दिया नोटिस


बताया जाता है कि इस पर अदालत ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस देने के आदेश दिए. 16 जनवरी, 1950 को ही गोपाल सिंह विशारद के पक्ष में अंतरिम आदेश जारी कर दिया. भक्तों के लिए पूजा-अर्चना चालू हो गई. सिविल जज ने ही 3 मार्च, 1951 को अपने अंतरिम आदेश की पुष्टि कर दी. इस मुकदमे में उन्होंने कहा कि 'जन्मभूमि' पर स्थापित भगवान राम और अन्य मूर्तियों को हटाया न जाए और उन्हें दर्शन और पूजा के लिए जाने से रोका न जाए.


इसके बाद मुस्लिम समाज के कुछ लोग इस आदेश के विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट गए. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मूथम व न्यायमूर्ति रघुवर दयाल की पीठ ने 26 अप्रैल, 1955 को अपने आदेश के द्वारा सिविल जज के आदेश को पुष्ट कर दिया. ढांचे के अंदर निर्बाध पूजा-अर्चना का अधिकार सुरक्षित हो गया.


झांसी से आया था विशारद का परिवार
विशारद का परिवार मूल रूप से झांसी का रहने वाला था. वो बाद में अयोध्या आकर बस गए थे. उन्होंने यहां बुंदेलखंड स्टोर के नाम से दुकान खोली थी और हिन्दू महासभा से भी जुड़े थे. 1968 में उनके बेटे राजेंद्र सिंह विशारद बैंक की नौकरी करने बलरामपुर गए और वहीं के होकर रह गए. 1986 में गोपाल सिंह विशारद का स्वर्गवास हो गया. इसके बाद केस की पैरवी उनके बेटे राजेंद्र सिंह करने लगे.