Ram Mandir News : रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम से पहले दिए गए निमंत्रण पत्र में आंदोलन से जुड़े 22 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई है. इनमें एक नाम राजमाता विजयराजे सिंधिया का है. आइए जानते हैं राजमाता सिंधिया को क्यों अयोध्या का अहम किरदार माना जाता है.
Trending Photos
अयोध्या : राम की नगरी अयोध्या (Ayodhya) में प्रभु श्रीराम का भव्य मंदिर बनकर तैयार हो गया है. सैकड़ों साल से करोड़ों हिंदुओं का स्वप्न साकार हो रहा है. 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi)रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करेंगे. अयोध्या में राम मंदिर बनने की इस यात्रा में अनेक किरदार हुए हैं. इनमें राजमाता विजयराजे सिंधिया (Vijayaraje Scindia) का नाम प्रमुख है. 12 अक्टूबर 1919 को राजमाता विजयाराजे सिंधिया का जन्म सागर के राणा परिवार में हुआ था.
ग्वालियर राजघराने से जुड़ी रहीं
विजयाराजे सिंधिया का विवाह 21 फरवरी 1941 में ग्वालियर के महाराजा जीवाजी राव सिंधिया से हुआ था. सिंधिया राजघराने की गिनती देश के समृद्ध और शक्तिशाली राजपरिवारों में होती थी. लेकिन अपने ममतामयी स्नेह से वह लोगों के बीच काफी लोकप्रिय रहीं. यहां तक की इकलौते बेटे माधवराव सिंधिया से राजनीतिक विचारधार को लेकर अनबन होने पर उन्होंने अपना ममत्व कार्यकर्ताओं पर जमकर लुटाया.
राममंदिर का प्रस्ताव लेकर आईं
1989 में भारतीय जनता पार्टी के पालमपुर में हुए राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अधिवेशन में भगवान श्री राम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के लिए प्रस्ताव लाने वाली राजमाता विजयाराजे सिंधिया ही थीं. छह दिसंबर 1992 की कारसेवा के दौरान भी अयोध्या में वह अहम भूमिका में रहीं. एक प्रमुख नेत्री की तरह आंदोलन का नेतृत्व किया. बताया जाता है कि अयोध्या के रामकथा कुंज के मंच से उन्होंने भी कारसेवकों को सम्बोधित किया था. यही वजह है कि नेताओं की तरह उन्हें भी बाबरी विध्वंस मामले का आरोपी बनाया गया था. यहां तक की श्री राम जन्मभूमि आंदोलन की बदौलत राष्ट्रीय राजनीति में सितारा बनकर चमकी साध्वी उमा भारती और ज्ञान, आध्यात्म व वात्सल्य की प्रतिमूर्ति दीदी माँ ऋतंभरा को सार्वजनिक जीवन में राजमाता ने ही सक्रिय किया.
यह भी पढ़ें : अयोध्या में 3 दिनों तक नो एंट्री, किले में तब्दील रामनगरी में सिर्फ पास वालों को ही प्रवेश
आपातकाल में जेल भी गईं
इंदिरा सरकार के आपात काल में वे जेल गईं. उसके बाद वह धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (RSS) और विश्व हिन्दू परिषद (VHP) से जुड़ती चली गईं. इसके बाद तो उन्होंने तन-मन-धन से श्री राम जन्मभूमि की मुक्ति के लिए हुए हर आन्दोलन में बड़ी भूमिका निभाई. आडवाणी जी की रथ-यात्रा में तो राजमाता की भूमिका वास्तव में एक सारथी की तरह थी.