राजीव श्रीवास्तव/ लखनऊ: यूं तो पिछले छह साल में जब से नरेंद्र मोदी BJP के नेता हैं तबसे ही विपक्ष का यह दावा है कि BJP अब बदल गयी है. विपक्ष का इशारा शायद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कि कार्यशैली को लेकर है. हालांकि इन दावों से इतर उत्तर प्रदेश BJP ने वाकई अमूलचूल बदलाव के तरफ जाने की कवायद शुरू कर दी है लेकिन क्या चुनावों में इन बदलावों के पार्टी को कुछ परिणाम मिलेंगे यह तो वक़्त ही बताएगा. फिलहाल यह पहली बार हुआ है कि BJP की जिलों की कार्यकारिणी में पिछड़े वर्ग, दलित और महिलाओं की भागीदारी 42% के ऊपर पंहुच गयी है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

जानकारों की माने तो ऐसा स्वरूप BJP का उत्तर प्रदेश में कभी भी नहीं रहा। शयद इसीलिए विपक्ष पहले BJP पर “ब्राह्मण और बनियो“ की पार्टी होने का इल्ज़ाम लगाता रहा है. पर अब शायद यह नयी BJP है जिसने विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर अभी से ही दलितों, महिलाओं और पिछड़े वर्ग को साधना शुरू कर दिया है. हालांकि विधानसभा चुनाव से पहले BJP को पंचायत के चुनाव के साथ साथ ग्रेजुएट और शिक्षक MLC के चुनाव भी लड़ने हैं.


पार्टी के इस नए स्वरूप के पीछे सूत्रों की माने तो उत्तर प्रदेश BJP के संगठन शिल्पी कहे जाने वाले महामंत्री संगठन सुनील बंसल की सोच है. सूत्र बताते हैं कि तत्कालीन उत्तर प्रदेश प्रभारी और वर्तमान में भारत के गृह मंत्री अमित शाह का यह मानना था कि बीजेपी को अगर उत्तर प्रदेश में अपना स्थान वापस लाना है तो OBC और दलित वोट-बैंक को अपने पाले में लिए बगैर यह संभव नहीं होगा.


पार्टी संगठन की बात करें तो 2014 में उत्तर प्रदेश BJP में महिला, OBC और दलितों की कुल भागीदारी महज 6% थी. शायद यही कारण था जिसने अमित शाह को ऐसे सोचने को मजबूर किया था. उनके बेहद करीबी माने जाने वाले उत्तर प्रदेश के सगठन मंत्री सुनील बंसल ने शाह की इस सोच को संगठन में उतारने की कोशिश तभी से शुरू कर दी.


फिर 2016 में उत्तर प्रदेश की राजनीति में केशव मौर्य का उदय BJP के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर हुआ। उसके बाद बनी ज़िले की कार्यकारिणी में भी पार्टी का फोकस शिफ्ट हुआ और दलितों, महिलाओं और OBC की भागीदारी बढ़ कर 29% तक पंहुची. इसके सुखद परिणाम भी देखने को मिले। जहां 2017 में पार्टी ने 300 से अधिक सीटों पर जीत दर्ज करके बहुमत की सरकार उत्तर प्रदेश में बनाई वहीं दूसरी ओर 2019 के लोक सभा चुनाव में भी पार्टी 64 सीटों पर विजयी होने पर सफल हुई.


वो भी तब जब समाजवादी पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी से अपनी 23 साल पुरानी अदावत खत्म कर के एक दूसरे से लोक सभा चुनाव में हाथ मिला कर बीजेपी से मिल कर मुकाबला किया तो वहीं 2017 में विधानसभा के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने काँग्रेस से हाथ मिला कर चुनाव लड़ा. परिणाम इसके बावजूद भी BJP के पक्ष में रहा। जानकारों की माने तो इसका सबसे बड़ा कारण OBC और दलितों के एक वर्ग का BJP के समर्थन में डटे रहना था. शायद यह परिणाम इस बात की तरफ भी इशारा करते हैं कि पार्टी की इस रणनीति ने पहली बार मायावती के 15 दशक से वफादार रहे दलित वोट में भी सेंधमारी की थी. हांलांकि BSP की मायावती अभी भी दलितों में जाटव समाज के वोट बैंक को अपने पास रोकने में सफल हैं. 


यूं तो आने वाले सभी चुनावों में BJP सरकार में हुए कामकाज भी कसौटी पर रहेंगे पर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अनुकूल सामाजिक समीकरण का ताना बाना बुनना ही आज भी सबसे अहम हिस्सा है. 


डॉ महेंद्र नाथ पांडेय के केंद्र में मंत्री बनने के बाद BJP ने एक बार फिर OBC वर्ग से स्वतंत्र देव सिंह को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है. उसके बाद ही पार्टी ने दलित और OBC के अलावा महिलाओं को भी साधने की कोशिश शुरू कर दी है. यहां महिलाओं का वर्गीकरण पार्टी ने जाति से अलग हटकर किया है. पार्टी का मानना है कि महिलाएं आमतौर पर जाति से हटकर राजनीति करती हैं. ऐसे में घर की महिलाओं को अगर पार्टी साध लेती है तो पूरे घर को साधना आसान हो जाता है. 


प्रदेश सह चुनाव प्रभारी त्रयम्बक त्रिपाठी बताते हैं कि बीजेपी ने इस बार तीन महिला अध्यक्ष भी नियुक्त किये है जिसमे कौशाम्बी से अनिता त्रिपाठी, मथुरा महानगर से मधु शर्मा और कानपुर दक्षिण से डॉ वीणा आर्या शामिल हैं। BJP के उपाध्यक्ष जेपीएस राठौर बताते हैं कि पार्टी के कुल 98 ज़िलों में दलित और OBC ज़िला अध्यक्षों की संख्या पहली बार 40 % के करीब है जो की नई BJP की कहानी बयां कर रही है.  


दूसरी ओर त्रिपाठी कहते हैं कि असल मे ज़िला कार्यकारिणी की संरचना कुछ इस प्रकार थी कि जिला अध्यक्षों को मिलाकर कुल 22 सदस्यीय कार्यकारिणी में कम से कम 50 % की भागीदारी महिलाओं, दलितों और OBC सदस्यों की हो। और यह इस बार हुआ भी है. शायद नई BJP आने वाले साल में समरसता की कहानी गढ़ने की ओर है.