लखनऊ: बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आगामी लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का ऐलान किया. इस मौके पर जब सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव से बसपा सुप्रीमो मायावती को प्रधानमंत्री बनवाने से जुड़ा सवाल पूछा गया तो उन्होंने बहुत सोच-समझकर इसका जवाब दिया.


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एक पत्रकार ने अखिलेश यादव से पूछा कि क्या आप मायावती को प्रधानमंत्री बनवाने में समर्थन करेंगे? इसका चतुराई भरा जवाब देते हुए पूर्व सीएम यादव ने कहा, आपको पता है कि मैं किसको सपोर्ट करूंगा. उत्तर प्रदेश ने हमेशा प्रधानमंत्री दिया है और हमें खुशी होगी कि यहीं से फिर एक प्रधानमंत्री बने.''


बसपा और सपा आगामी लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 38-38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेंगी. इन दोनों पार्टियों ने राज्य की दो सीटें छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी हैं जबकि अमेठी और रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ने का फैसला किया है.


बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने शनिवार को लखनऊ के एक होटल में आयोजित संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में यह घोषणा की.


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मायावती ने बसपा-सपा गठबंधन को ‘‘नई राजनीतिक क्रांति का आगाज’’ करार देते हुए कहा कि इस गठबंधन से ‘‘गुरू-चेला’’ (नरेंद्र मोदी और अमित शाह) की नींद उड़ जाएगी.


उन्होंने कहा, ‘‘नए वर्ष में यह एक प्रकार की नई राजनीतिक क्रांति की शुरुआत है. इस गठबंधन से समाज की बहुत उम्मीदें जग गई हैं. यह सिर्फ दो पार्टियों का मेल नहीं है बल्कि सर्वसमाज (दलित, पिछड़ा, मुस्लिम, आदिवासी, गरीबों, किसानों और नौजवानों) का मेल है. यह सामाजिक परिवर्तन का बड़ा आंदोलन बन सकता है.’’ यह पूछे जाने पर कि यह गठबंधन कितना लंबा चलेगा, इस पर मायावती ने कहा कि गठबंधन ‘‘स्थायी’’ है. यह सिर्फ लोकसभा चुनाव तक नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव में भी चलेगा और उसके बाद भी चलेगा.


मायावती ने बसपा और सपा के 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री अजित सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल का नाम तक नहीं लिया. उन्होंने सिर्फ इतना कहा कि दो सीटें अन्य दलों के लिए छोड़ी गई हैं.


बसपा प्रमुख ने यह जरूर कहा कि अमेठी और रायबरेली की सीटें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के लिए छोड़ी गई हैं, क्योंकि कहीं ऐसा न हो जाए कि भाजपा के लोग उन्हें (राहुल और सोनिया को) अमेठी और रायबरेली में ही उलझा दें.


मायावती ने कहा कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की जनता नोटबंदी-जीएसटी तथा भाजपा द्वारा बनाए गए ‘‘जहरीले माहौल’’ से परेशान है. बसपा और सपा ने 1993 में आपस में मिलकर सरकार बनाई थी और एक बार फिर भाजपा को सत्ता से बेदखल करने के लिए बसपा और सपा एक हुए हैं.


उन्होंने कहा कि लोकसभा और उत्तर प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनावों में भाजपा ने बेईमानी से सरकार बनाई. उन्होंने कहा कि भाजपा की गलत और जनविरोधी नीतियों से जनता नाराज है. उप-चुनावों में जनता ने उनके उम्मीदवारों को हराकर शुरुआत कर दी है.


मायावती ने कहा कि अगर भाजपा ने ईवीएम से कोई छेड़छाड़ नहीं की या राम मंदिर के नाम पर जनता की भावनाओं से खिलवाड़ नहीं किया तो बसपा-सपा गठबंधन भाजपा को इन लोकसभा चुनावों में केंद्र की सत्ता में आने से जरूर रोकेगा.


उन्होंने कहा, ‘‘नोटबंदी और जीएसटी के फैसले ने जनता और मेहनतकश वर्ग की कमर तोड़ दी. यही वजह है कि 1995 के गेस्ट हाउस कांड को भूलकर हम गठबंधन कर रहे हैं ताकि इस बार भाजपा एंड कंपनी के लोगों को किसी भी कीमत पर केंद्र की सत्ता में आने से रोका जा सके. जिस तरह हमने अभी तक के सभी लोकसभा और विधानसभा उप-चुनावों में भाजपा के अधिकांश उम्मीदवारों को हराया है, उसी तरह हमें उम्मीद है कि आम चुनाव में भी हम हराएंगे.’’ बसपा सुप्रीमो ने कांग्रेस को गठबंधन से बाहर रखने की वजह भी बताई. उन्होंने कहा, ‘‘आजादी के बाद काफी लंबी अवधि तक केंद्र और देश के ज्यादातर राज्यों में कांग्रेस ने एकछत्र राज किया, लेकिन जनता परेशान रही. गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार बढ़ा, जिसके खिलाफ कई दलों का गठन हुआ. कांग्रेस के साथ अतीत में गठबंधन का अनुभव भी अच्छा नहीं रहा है और वह अपना वोट ट्रांसफर नहीं करा पाती है. भाजपा या जातिवादी पार्टियों को चला जाता है. या फिर सोची समझी साजिश के तहत दूसरी ओर चला जाता है. कांग्रेस जैसी पार्टियों को हमसे पूरा लाभ मिल जाता है लेकिन हमारे जैसी पार्टियों को कोई लाभ नहीं मिलता है.’’ उन्होंने आगे कहा, ‘‘देश में रक्षा सौदों की खरीद में दोनों पार्टियों की सरकारों में जबरदस्त घोटाले हुए. कांग्रेस को बोफोर्स मामले में केंद्र की सरकार गंवानी पड़ी. बीजेपी को राफेल घोटाले को लेकर अपनी सरकार जरूर गंवानी पड़ेगी.’’


बीएसपी प्रमुख ने कहा, ‘‘वर्तमान में प्रदेश की बीजेपी सरकार अपने विरोधियों को कमजोर करने के लिए 1975 में लगी इमर्जेंसी से कम नहीं नजर आती. कांग्रेस राज में घोषित इमर्जेंसी थी और भाजपा के राज में अघोषित इमर्जेंसी है.’’ मायावती ने कहा कि जिस दिन दिल्ली में बसपा और सपा नेताओं की बैठक हुई, भाजपा ने इस गठबंधन को तोड़ने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव का नाम जानबूझकर खनन मामले से जोड़ा. उन्होंने कहा, 'भाजपा को मालूम होना चाहिए कि उनकी इस घिनौनी हरकत से सपा-बसपा गठबंधन को और मजबूती मिलेगी.' संयुक्त प्रेस कांफ्रेस में सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा, ‘‘भाजपा सरकार ने उत्तर प्रदेश को 'जाति प्रदेश' बना दिया है. भाजपा ने भगवानों को भी जाति में बांट दिया. इस गठबंधन से भाजपा घबरा गई है और वह तरह-तरह की साजिशें रच सकती है. पार्टी कार्यकर्ताओं से अपील है कि गठबंधन से घबराकर बीजेपी तरह-तरह से परेशान करने की साजिश कर सकती है, दंगा-फसाद का प्रयास भी कर सकती है लेकिन हमें संयम के साथ हर साजिश को नाकाम करना है. भाजपा के अहंकार का विनाश करने के लिए बसपा और सपा का मिलना बहुत जरूरी था.’’ अखिलेश ने कहा, ‘‘सपा कार्यकर्ता यह बात गांठ बांध लें कि मायावती जी का सम्मान मेरा सम्मान है, उनका अपमान मेरा अपमान है...मायावती का देशहित में लिए गए इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए धन्यवाद देता हूं. समय के साथ दोनों पार्टियों के संबंध और मजबूत होंगे. हमने गठबंधन पर उस दिन मुहर लगा दी थी जब राज्यसभा के लिए सपा-बसपा के संयुक्त उम्मीदवार भीमराव अंबेडकर को छल-कपट से हराया गया था. हम भाजपा का अहंकार तोड़ेंगे.’’ प्रधानमंत्री पद का दावेदार कौन होगा, इस सवाल को अखिलेश ने चतुराई से टालते हुए कहा, ‘‘उत्तर प्रदेश अक्सर देश को प्रधानमंत्री देता है, पीएम यूपी से ही हो तो अच्छा रहेगा.' इससे पहले, मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव की पार्टी का मजाक उड़ाते हुए कहा कि 'भाजपा का पैसा बेकार हो जाएगा, क्योंकि वह ही शिवपाल की पार्टी चला रही है.'