उत्तराखंड का वो पौराणिक पर्वत खतरे में, जहां है 33 करोड़ देवी-देवताओं का निवास
Varunavat mountain Landslide: उत्तराखंड का ऐतिहासिक पर्वत के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है. उसकी जद में हजारों की आबादी भी है, सैकड़ों मकान हैं, जो लगातार किसी बड़ी अनहोनी की आशंका में जी रहे हैं.
Varunavat mountain Landslide News: उत्तरकाशी का ऐतिहासिक वरुणावत पर्वत लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण खतरे में है. वरुणावत पर्वत क्षेत्र में 27 अगस्त 2024 को भारी भूस्खलन हुआ.इससे गोफियारा कॉलोनी समेत पूरी आबादी के इलाके में हाहाकार मच गया.बड़े पैमाने पर बड़े बड़े पत्थरों के खिसकने से गंगोत्री नेशनल हाईवे और गोफियारा में सैकड़ों दोपहिया और चौपहिया वाहनों के परखच्चे उड़ गए.
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय में वरुणावत पर्वत से हो रहे भूस्खलन की जांच के लिए सोमवार को सात सदस्यों की विशेषज्ञ टीम पहुंची. वरुणावत पर्वत पर जाकर 2 दिनों तक गहन तरीकों से भूस्खलन की जांच की गई. विशेषज्ञों की टीम जांच रिपोर्ट जिला प्रशासन को सौंपगी. आपदा प्रबंधन अधिकारी देवेंद्र पटवाल का कहना है कि टीम ने बताया है कि वरुणावत पर्वत से हो रहे भूस्खलन के लिए तुरंत कदम उठाए जाने जरूरी हैं. साथ ही लंबे समय की प्लानिंग भी जरूरी है. विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर आगे कार्यवाही होगी. बारिश होने पर वरुणावत पर्वत से भूस्खलन का खतरा ज्यादा है. इसलिए आसपास के लोगों को अलर्ट पर रहने को कहा गया है.
ये वही पौराणिक पर्वत है, जहां 33 करोड़ की देवी-देवताओं का वास माना जाता है. लेकिन आज उसका अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है. पर्वत से लगातार हो रहे भूस्खलन को रोकने के लिए कृत्रिम पहाड़ की परत लगाकर वरुणावत की ढलान को स्थिर किया जाएगा.
भूगर्भ वैज्ञानिकों का कहना है कि वरुणावत पर हज़ारों टन ऐसा मलबा है जो आसपास की आबादी के लिए खतरा है. वर्ष 2003 में हुए भारी भूस्खलन में अब तक हजारों लोग घर छोड़कर जा चुके हैं. 600 से भी अधिक घर टूट चुके हैं. करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो चुकी है. वरुणावत की पहाड़ी से गिर रहे छोटे बड़े पत्थरों से बड़ी अनहोनी की आहट महसूस हो रही है.
दरअसल, गंगोत्री-यमुनोत्री का द्वार माना जाने वाला उत्तरकाशी तश्तरी के प्लेट में पहाड़ों की तलहटी में बसा है.भागीरथी नदी इसके केंद्र में है.वरुणावत की घाटी में बड़ी आबादी खतरे की जद में है. शहर का एक बड़ा इलाका भूस्खलन में पहले ही तबाह हो चुका है.
भूगर्भ वैज्ञानिक और विशेषज्ञ चेतावनी दे चुके हैं कि पहाड़ की ढलान और ऊंची चोटियों को मज़बूत करके ही खतरा टाला जा सकता है.उत्तरकाशी में 1991 में भूकंप ने भी पर्वत को पूरा हिला दिया. उसमें दरारें आने के साथ बारिश से बड़े बड़े गड्ढों में पानी भर गया. इससे पहाड़ कई जगहों से धंसना शुरू हो गया. गंगा भागीरथी में 1978 में बाढ़ से भयानक विनाशलीला हुई थी.
वरुणावत की मजबूती का काम टिहरी पनबिजली निगम को सौंपा गया था.सीमेंट-चारकोल से पहाड़ पर परतें तैयार की जानीं थीं. वरुणावत पर्वत दो नदियों का उद्गम स्थल भी है. अस्सी गंगा और वरुणा नदी यहां से बहती है और भागीरथी में मिलती हैं. इसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है. वरुणावत पर्वत की चोटी पर बिमलेश्वर महादेव विराजमान हैं. यहां दुर्लभ औषधियों के पौधे भी हैं.
पिछले दो दशकों में वरुणावत पर्वत को बचाने के लिए करीब 100 करोड़ खर्च किए जा चुके हैं. लेकिन खतरा अभी भी टला नहीं है. सैकड़ों परिवारों को ताजा भूस्खलन के बाद शिफ्ट किया जा चुका है. काली कमली धर्मशाला उत्तरकाशी और दंडी आश्रम उत्तरकाशी में विस्थापितों के लिए व्यवस्था की गई है. बारिश के बाद पहाड़ को बचाने की नई कवायद शुरू की जा सकती है.