इलाहाबाद: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार को उत्तर प्रदेश सरकार और सीबीएससी को डीपीएस गाजियाबाद मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. अदालत ने ये आदेश उत्तर प्रदेश में स्कूलों का व्यवसायीकरण करने का आरोप लगाते हुए दायर एक याचिका पर दिया. मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की पीठ ने गाजियाबाद पैरेंट्स एसोसिएशन की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया. यह जनहित याचिका इस एसोसिएशन के सदस्य नीरज भटनागर के जरिए दायर की गई.


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तीन वर्षों में हर साल बढ़ाई फीस 
इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि डीपीएस वसुंधरा, गाजियाबाद ने पिछले तीन वर्षों में हर साल फीस बढ़ाई, जबकि सीबीएससी के नियम हर साल फीस बढ़ाने से रोकते हैं. याचिका में कहा गया कि जब भटनागर ने अनावश्यक रूप से फीस बढ़ाए जाने की शिकायत सीबीएससी से की तो उनकी बेटी को उस स्कूल से बाहर निकाल दिया गया. वह उस स्कूल में आठवीं कक्षा की विद्यार्थी थी. याचिकाकर्ता का यह भी आरोप है कि उस स्कूल को चला रहे ट्रस्ट ने फीस से हुई आय को अन्य ट्रस्टों को हस्तांतरित कर दिया, जो सीबीएससी के नियमों का उल्लंघन है.


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वसूल की गई राशि होनी चाहिए विद्यार्थियों को वापस
नियमानुसार फीस से आय का उपयोग केवल स्कूल के रखरखाव के लिए किया जा सकता है. याचिकाकर्ता ने अदालत से अनुरोध किया कि संबद्ध नियमों का उल्लंघन करने के लिए डीपीएस के खातों का अंकेक्षण कराया जाना चाहिए और विद्यार्थियों से वसूली गई अनाधिकृत फीस को कैपिटेशन फीस माना जाना चाहिए. साथ ही जुर्माने के तौर पर इसे उस स्कूल से वसूला जाना चाहिए. इस तरह से वसूल की गई राशि को ऐसे विद्यार्थियों को वापस किया जाना चाहिए, जो इस पर दावा करने के लिए आगे आते हैं.