Ganesh chaturthi 2021: उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में भी गणेश चतुर्थी (Ganesh chaturthi) की तैयारी शुरू हो गई है. यहां पर गणेश चतुर्थी के अवसर पर बाबा बर्फानी भक्त मण्डल पिछले कई वर्षों से "इको फ्रेंडली गणेश प्रतिमा" तैयार कराकर निशुल्क वितरण कर रहा है. जिनको तैयार करने में कारीगर छोटेलाल का पूरा परिवार जुटा हुआ है.


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50 साल से मूर्ति का काम कर रहे छोटेलाल 
अलीगढ़ के तुर्कमान गेट पर सभी तरह की मिट्टी की मूर्ति बनाने का काम करने वाले छोटेलाल ने जानकारी देते हुए बताया कि हम पिछले 50 साल से मूर्ति का काम अपने परिवार के साथ कर रहे हैं. हम गणेश चतुर्थी के मद्देनजर ईको फ्रेंडली गणेश तैयार कर रहे हैं. इसमें हम 4/5 तरह की दाल, जौ, गेंहू मिलाते हैं ताकि गणेश जी का गंगा में विसर्जन करते वक्त मिट्टी अलग हो जाय और अनाज मछलियों के लिए बतौर भोजन काम आए. फिलहाल इसके अच्छे आर्डर मिल रहे हैं. इस तरह से यहां कोई और इस तरह की मूर्ति तैयार नहीं करता है. गणेश चतुर्थी की वजह से इस वक्त अच्छी मांग है.


वहीं बाबा बर्फानी भक्त मण्डल के संरक्षक सुरेन्द्र शर्मा ने जानकारी देते हुए बताया कि पिछले 3 साल से हम गणेश चतुर्थी के अवसर पर जन जागृति लाने को ईको फ्रेंडली गणेश तैयार करवा कर हम इनका निशुल्क वितरण करवाते हैं.


अनाज मछलियां खा लेती हैं 
संस्था के संरक्षक सुरेश शर्मा का कहना है कि गणेश की मूर्ति कोई शोपीस या खिलौना नहीं है. हमारे सनातन धर्म के अनुसार मिट्टी की मूर्ति की पूजा की एक परंपरा है. इस परंपरा के अनुसार जब हमारे यहां औरतें मिट्टी की मूर्ति की पूजा करती हैं तो अनाज जरूर रखती हैं. उस अनाज को मूर्ति विसर्जन के वक्त नदी तालाबों में चढ़ाया जाता है. इससे नदी और तालाबों में जो जलचर होते हैं. वह उसे भोजन के रूप में खा लेते हैं और जिस नदी तालाब में जितने ज्यादा जलचर होंगे वह नदी और तालाब उतने ज्यादा ही जीवंत होंगे और उसमें उतनी ही ज्यादा ऑक्सीजन होगी.


नदियों को जीवांत करने के लिए हमारी यह सनातन परंपरा है. मिट्टी की मूर्तियों की पूजा करना उनका विसर्जन करना इसी परंपरा को हम आगे बढ़ाते हुए जन जागृति ला रहे हैं, ताकि लोग नदियों में पीओपी की मूर्ति ना विसर्जित करें. पीओपी की मूर्तियां नदियों में विसर्जित करने से नदियां प्रदूषित होती है क्योंकि पीओपी की मूर्तियों में केमिकल वाले रंग होते हैं.केमिकल वाले रंग से नदियों की सतह खराब हो जाती है जिससे मछलियां मर जाती हैं.


निःशुल्क बांटते हैं मूर्तियां 
बाबा बर्फानी भक्त मण्डल के संरक्षक सुरेन्द्र शर्मा ने बताया कि हमारी मूर्तियां इको फ्रेंडली हैं क्योंकि इसमें सातों ग्रहों के अनाज मिले हुए हैं और इन अनाज के खाने से मछलियां और जलचर जीवित रहते हैं. इन मूर्तियों में सात ग्रहों के हिसाब से दाल,चावल,गेंहू, जौ,ज्वार बाजरा आदि अनाज मिलवाते हैं. हमने 150 मूर्तियों से शुरुआत की थी और अब 350 मूर्ति तक पहुंच गए हैं. छोटी मूर्ति की कीमत हमको 50/60 में पड़ती है, जबकि बड़ी मूर्ति 100 से 125 में पड़ती है लेकिन हम इनको निःशुल्क बांटते हैं.


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