गोरखपुर : गोरखपुर एम्स के डॉक्टरों ने एक बड़ा और सफल ऑपरेशन करते हुए एक बच्चे के जबड़े का जटिल ऑपरेशन कर उसे नया जीवन दिया है. बच्ची 10 साल से कुछ भी सही ढंग से खा- पी नहीं पा रही थी. बच्ची के परिजन सहित सब के चेहरों पर मुस्कान डॉक्टरों के कारनामे की बानगी खुद-ब-खुद बयां कर रही है.

 

10 साल से नहीं खुला जबड़ा

एम्स के दंत रोग विभाग एवं पलमोनरी मेडिसिन विभाग के संयुक्त तत्वाधान में एक 12 साल की बच्ची का जबड़ा पिछले 10 सालों से नहीं खुल रहा था. मुंह ना खुल पाने की वजह से वह सिर्फ दाल और तरल पदार्थ पर ही जीवित थी. मंगलवार को डॉक्टरों ने उसका सफल ऑपरेशन करते हुए बच्ची को एक नया जीवन दिया है. ऑपरेशन के बाद बच्ची पूरी तरह से स्वस्थ है. अब उसका मुंह भी ठीक ढ़ंग से खुल पा रहा है. जिसकी वजह से वह खाना-पीने में सक्षम हो गई है. 

 

सबकी आखों में आसू

बच्ची के सफल ऑपरेशन के बाद परिजन बेहद खुश हैं और उनकी आंखों में खुशी के आंसू झलक रहे हैं. तो वहीं बच्ची भी अपने जीवन में एक नया अनुभव प्राप्त कर बेहद खुश नजर आ रही है.  बिहार के गोपालगंज के रहने वाले दिहाड़ी मजदूर डॉक्टरों की प्रशंसा करते हुए खुद को रोक नहीं पा रहे है और उसकी आंखों में बार-बार आंसू आ जा रहे हैं क्योंकि 10 सालों के  बाद उसकी बेटी को एक नया जीवन मिला है.

 

क्या कहा डॉक्टर्स ने

दंत रोग विभाग के सर्जन और मैक्सीफ्लोफेशियल डॉ. शैलेंद्र कुमार ने बताया कि कुछ दिन पहले जब किशोरी को ओपीडी में लाया गया था. तो जांच करने पर पता चला कि उसकी खोपड़ी की हड्डी निचले जबड़े की हड्डी से जुड़ी हुई है, इसकी वजह से खाने पीने की समस्या के साथ-साथ बीच-बीच में नींद के दौरान ही सांस रुक जाती थी. इसके बाद बाकि विभागों के संयोग से इस ऑपरेशन को करने का निर्णय लिया गया था. मंगलवार को 5 घंटे तक चलने वाले इस ऑपरेशन ने चेहरे की नसों को बचाते हुए हड्डी का टुकड़ा बाहर निकाला दिया.

 

हड्डी दोबारा खोपड़ी से ना जुड़े इसके लिए सर के अंदर से मांस के कुछ हिस्सों को भी काटकर जबड़े के जोड़ में डाला गया. इस प्रक्रिया को इंटरपोजिशनल ऑर्थो प्लास्टिक कहते हैं. मरीज का जबड़ा न खुलने की वजह से रोगियों को बेहोश करने में मुश्किल आती है. उन्होंने बताया कि इस ऑपरेशन में पलमोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. सुबोध कुमार और दंत रोग विभाग के डॉ. शिव श्रीनिवास के साथ बाकी के स्टाफ का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा था.

 

पिता है दिहाड़ी मजदूर

इस बारे में एम्स के कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर गोपाल कृष्ण पाल का कहना है कि बच्ची के पिता दिहाड़ी मजदूर है. उन्होने बताया कि वह बेटी के इलाज के लिए कई जगह गया था प्राइवेट अस्पताल में उसे इलाज के लिए 3 से साढ़े तीन लाख रुपए का खर्च बताया गया था. जिसे वहन कर पाने में वह सक्षम नहीं था. किसी के कहने पर वह अपनी बिटिया को एम्स गोरखपुर में ले कर आया था.

 

2000 हजार हु्आ ऑपरेश
यहां डॉक्टरों की टीम ने एक जटिल ऑपरेशन कर बच्ची को नया जीवनदान दिया है. जिसके लिए उसे बड़े शहर जाना होता और इलाज का खर्च भी बहुत आता. लेकिन यहां मात्र 2000 में यह ऑपरेशन हो गया. किशोरी अपने मुंह से भोजन कर पा रही है, इसकी मॉनिटरिंग मैं खुद भी कर रहा हूं.

 

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