Gorakhpur News: गोरक्षपीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में गोरखपुर केवल विकास के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि "ज्ञान नगरी" के रूप में भी अपनी पहचान बना चुका है. इस ज्ञान नगरी की आधारशिला 1932 में उनके दादागुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना कर रखी थी. शिक्षा के प्रसार और राष्ट्रीयता के उत्थान के इस अभियान को ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लगातार आगे बढ़ाया.  


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92 वर्षों की शिक्षा यात्रा: प्राथमिक से विश्वविद्यालय तक
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद ने प्राथमिक शिक्षा से लेकर निजी विश्वविद्यालय तक अपने कार्यक्षेत्र का विस्तार किया है. परिषद के शैक्षिक प्रकल्प न केवल गोरखपुर बल्कि पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बिहार और नेपाल की तराई तक के लाखों छात्रों के लिए ज्ञान का प्रकाशस्तंभ बने हुए हैं.


92 वर्षों से चल रही यह यात्रा
92 वर्षों की इस यात्रा ने गोरखपुर को शिक्षा के क्षेत्र में एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है, जिसे भविष्य में और अधिक विस्तारित करने का संकल्प गोरक्षपीठ और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मार्गदर्शन में जारी रहेगा.


शिक्षा का पुनर्जागरण: तीन पीढ़ियों का योगदान
गोरक्षपीठ के तीन पीढ़ियों के सतत प्रयासों का परिणाम है कि महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद आज एक वटवृक्ष बन चुका है. ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने इसे बीज रूप में स्थापित किया, जिसे उनके शिष्य ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ ने पोषित किया. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे आधुनिक शिक्षा के नए आयामों तक पहुंचाया.


गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में अहम भूमिका
महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद न केवल अपने संस्थानों के माध्यम से बल्कि क्षेत्र के अन्य शैक्षणिक संस्थानों के विकास में भी सहायक रहा है. गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना का श्रेय ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ को दिया जाता है. उनका दृष्टिकोण केवल शिक्षा प्रदान करना नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और जीवन मूल्यों के प्रति छात्रों को जागरूक करना भी था. 


वर्तमान में परिषद की उपलब्धियां
परिषद के शिक्षण संस्थान गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवीपाटन और वाराणसी में फैले हुए हैं. इसके माध्यम से हजारों छात्र हर साल गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. इसके अलावा, परिषद ने आयुष विश्वविद्यालय, एम्स, और अन्य तकनीकी व चिकित्सा शिक्षण संस्थानों के विकास में भी योगदान दिया है. 


ज्ञान के मंदिर के रूप में गोरखपुर की पहचान  
गोरखपुर, जिसे आज "ज्ञान नगरी" कहा जाता है, महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की शिक्षा यात्रा का प्रत्यक्ष प्रमाण है. यह परिषद गोरक्षपीठ के तीन पीढ़ियों के अथक प्रयासों का परिणाम है, जिसने न केवल शिक्षा का विस्तार किया बल्कि समाज में स्वावलंबन और मूल्यपरकता का भी संदेश दिया. 


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