जोश से फहराएं तिरंगा, बस, कुछ बातों का ध्यान रखेंः हमेशा ऊंचाई पर ही फहराएं, सूर्यास्त में जरूर उतार लें
जिस राष्ट्रीय ध्वज `तिरंगे` को हम सैल्यूट करते हैं, जिसके सम्मान की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, उससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातें भारत के हर नागरिक को जाननी चाहिए.
किसी भी राष्ट्र का गौरव होता है उसका राष्ट्रीय ध्वज, जिसके लिए उस देश के नागरिक अपना सब कुछ कुर्बान करने को तैयार होते हैं. जिस राष्ट्रीय ध्वज 'तिरंगे' को हम सैल्यूट करते हैं, जिसके सम्मान की रक्षा में अपनी जान की बाजी लगा देते हैं, चलिए उससे जुड़ी कुछ ऐसी बातें हम आपको बताते हैं कि जो भारत के हर नागरिक को जाननी चाहिए -
पिंगाली वेंकैया ने डिजाइन किया तिरंगा
अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में आजादी के दीवानों ने अपनी परिस्थिति और क्षमता के मुताबिक भरपूर योगदान दिया. ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पिंगाली वेंकैया थे. उन्होंने ही तिंरगे का डिजाइन तैयार किया था. आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम के एक गांव में पिंगाली में जन्मे पिंगाली वेंकैया ने 5 वर्षों तक तकरीबन 30 देशों के राष्ट्रीय ध्वज के बारे में गहराई से रिसर्च करने के बाद 1921 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सम्मेलन में राष्ट्रीय ध्वज के बारे में पहली बार अपनी संकल्पना को पेश किया. उस ध्वज में दो रंग थे- लाल और हरा. दोनों रंग देश के दो समुदायों हिंदू और मुस्लिम का प्रतिनिधित्व करते थे. बाकी समूहों के प्रतिनिधित्व के लिए महात्मा गांधी ने इसमें सफेद पट्टी को शामिल किया और सुझाव दिया कि राष्ट्र की प्रगति के सूचक के रूप में चरखे को भी इसमें जगह मिलनी चाहिए.
संशोधन के साथ स्वीकार किया गया डिजाइन
उसके अगले एक दशक के बाद 1931 में तिरंगे को कुछ संशोधनों के साथ राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाने का प्रस्ताव पारित हुआ. इसमें मुख्य संशोधन के तहत लाल रंग की जगह केसरिया ने ले ली. उसके बाद 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में इसे अंगीकार किया. बाद में इसमें मामूली संशोधनों के तहत रंग और उनके अनुपात को बरकरार रखते हुए चरखे की जगह केंद्र में सम्राट अशोक के धर्मचक्र को शामिल किया गया.
तिरंगा फहराने के भी हैं अपने नियम-कानून
तिरंगा फहराते वक्त ये ध्यान रखना जरूरी है कि उसे एक सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए, जहां से वो स्पष्ट रूप से दिखाई दे. इसीलिए हमेशा तिरंगे को ऊंचाई पर फहराया जाता है.
झंडा हाथ से काते और बुने गए ऊनी, सूती, सिल्क या खादी से बना होना चाहिए। झंडे का आकार आयताकार होना चाहिए. इसकी लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 का होना चाहिए.
सरकारी भवन पर तिरंगा रविवार और छुट्टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है.
तिरंगे को फहराते समय स्फूर्ति और उत्साह होना चाहिए और उतारते वक्त सम्मान और आदर.
तिरंगा सभा में फहराते वक्त इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मंच पर उपस्थित लोगों के दाहिनी ओर तिरंगा हो.
तिरंगा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाता है.
कभी भी फटा या मैला तिरंगा नहीं फहराया जाता है. जब तिरंगा फट जाए या मैला हो जाए तो उसका उपयोग नहीं किया जाता.
राष्ट्रीय शोक के अवसर पर तिरंगे को आधा झुका दिया जाता है.
किसी दूसरे झंडे या पताका को कभी भी राष्ट्रीय तिरंगे से ऊंचा या ऊपर नहीं लगाया जाता, न ही कभी इसे तिरंगे के बराबर रखा जाता है.
कुछ लिखा या छपा हुआ तिरंगा कभी फहराया नहीं जाता है.
तिरंगे के किसी भाग को जलाने, नुकसान पहुंचाने के अलावा मौखिक या शाब्दिक तौर पर इसका अपमान करने पर तीन साल तक की जेल या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं.
तिरंगे का व्यावसायिक इस्तेमाल गलत है. अगर कोई शख्स तिरंगे को किसी के आगे झुका देता हो, उसका वस्त्र बना देता हो, मूर्ति में लपेट देता हो या फिर किसी मृत व्यक्ति (शहीद आर्म्ड फोर्सेज के जवानों के अलावा) के शव पर डालता हो, तो इसे तिरंगे का अपमान माना जाता है.
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