Kajli Mahotsav: चंदेलों और चौहानों में 842 साल पुराने भयानक युद्ध का गवाह है कजली मेला, उमड़ता है बुंदेलखंड
Mahoba News: उत्तर प्रदेश के महोबा में हर साल होने वाले कजली मेला का इतिहास 842 साल पुराना है. यह मेला आल्हा और ऊदल की वीरता और पराक्रम का बखान करने वाला ... पढ़िए पूरी खबर ...
Kajli News: उत्तर प्रदेश के महोबा में हर साल होने वाले कजली मेला का इतिहास 842 साल पुराना है. इस साल भी यह मेला हर बार की तरह ही रक्षा बंधन के तीन दिन बाद शुरू होने वाला है. मेले की खास बात यह है कि इसमें 800 साल पुराने आल्हा और ऊदल की वीरता का बखान होता है. महोबा में होने वाले इस मेले में छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना और सागर समेत आस पास के सभी इलाकों से लोग आते हैं.
पृथ्वीराज चौहान से जुड़ा है इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार सन् 1182 में राजा परमाल की बेटी चंद्रावल अपनी 1400 सहेलियों के साथ भुजरी के विसर्जन के लिए कीरतसागर जा रही थीं. लेकिन तभी पृथ्वीराज चौहान के सेनापति चामुंडा राय ने उनपर हमला बोल दिया था. हमले के पीछे का कारण पृथ्वीराज चौहान की अपने बेटे की शादी चंद्रावल से करवाने की इच्छा थी. दिल्ली सम्राट पृथ्वीराज चौहान ने यह हमला ऐसे समय में किया था, जब आल्हा और ऊदल को कई आरोपों के चलते राजा परमाल के राज्य से निकाल दिया गया था.
रक्षाबंधन का था दिन
राज्य से निकाला जाने के बाद आल्हा और ऊदल दोनों अपने दोस्त मलखान के पास कन्नौज में अपनी जीवन यापन कर रहे थे. ऐसे में जब रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी चंद्रावल और उनकी सहेलियों ने खुद को पृथ्वीराज चौहान की सेना से घिरा देख महारानी मल्हाना सेना से युद्ध करने के लिए मैदान में कूद पडीं. इस दौरान भयानक युद्ध हुआ और इसमें राजा परमाल के पुत्र राजकुमार अभई को वीरगति की प्राप्ति हुई.
साधु के भेष में आए
राजकुमार अभई के मारे जाने के बाद जैसे ही पृथ्वीराज चौहान की सेना राजकुमारी को अपने साथ ले जाने के लिए आगे बढ़ी. तभी आल्हा और ऊदल साधु के भेष में आए वहां आ गए. दोनों के साथ उनका दोस्त मलखान भी था. उसके बाद कीरतसागर के मैदान पर चंदेल और चौहान वंशजों की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ. युद्ध इतना भयंकर था कि कीरतसागर मैदान की सारी भूमि खून से लाल हो गई थी. राजकुमार अभई के साथ युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के दो पुत्रों को भी अपने प्राण गंवाने पडे थे.
नहीं हो सका था भुजरी का विसर्जन
रक्षाबंधन के दिन हुए इस युद्ध के कारण ना ही राजकुमारी चंद्रावल भुजरी का विसर्जन कर सकीं और ना ही अपने भाइयों राखी बांध सकीं. इसी के कारण आज भी यहां पर एक दिन बाद भुजरिया विसर्जन और रक्षाबंधन मनाने की परंपरा है. हालांकि आपको बता दें कि आल्हा और ऊदल राजा परमाल के सेनापति दसराज के पुत्र थे.
यह भी पढ़ें - 95 फीट लंबी नागिन तो 180 फीट लंबा नाग, यूपी में यहां है नाग-नागिन का सबसे बड़ा मंदिर
यह भी पढ़ें - UP के इस जिले को 1200 साल से भगवान कल्कि के अवतार का है इंतजार, जानें पूरा इतिहास