कौन हैं नसीम सोलंकी? सियासत का ककहरा भी नहीं पढ़ा और सपा ने सीसामऊ सीट से बनाया उम्मीदवार
Sisamau byelection SP candidate: समाजवादी पार्टी ने सीसामऊ विधानसभा सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए प्रत्याशी का ऐलान कर दिया है. पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को सपा ने उम्मीदवार बनाया है.
Sisamau byelection SP candidate: समाजवादी पार्टी ने यूपी की उपचुनाव वाली 10 में से 6 सीटों पर उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है. इसमें कानपुर की सीसामऊ सीट भी शामिल है. सपा ने यहां से नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाया है. वह सीसामऊ से पूर्व विधायक इरफान सोलंकी की पत्नी हैं. इरफान सोलंकी की विधायकी रद्द होने के बाद इस सीट पर उपचुनाव हो रहा है. इसे सपा की पारंपरिक सीट माना जाता है.
सोलंकी की पत्नी पर दांव क्यों?
सीसामऊ सीट से इरफान सोलंकी की पत्नी नसीम सोलंकी को उम्मीदवार बनाए जाने को सपा की रणनीति के दौर पर देखा जा रहा है. सोलंकी की पत्नी को टिकट देने की पहली वजह सीट पर मुस्लिम वोटरों की निर्णायक भूमिका है. दूसरा यहां सोलंकी परिवार का दबदबा माना जाता है. तीसरा फैक्टर इरफान सोलंकी के जेल जाने और विधायकी रद्द होने से सहानुभूति माना जा रहा है. चुनाव में सपा को इसका फायदा मिल सकता है.
कौन हैं इरफान की पत्नी नसीम सोलंकी?
नसीम सोलंकी ने अब तक राजनीति में कदम नहीं रखा था, किसी राजनीतिक कार्यक्रम में भी नहीं दिखाई दीं. लेकिन पति इरफान सोलंकी के जेल जाने के बाद वह घर और बाहर दोनों जगह मोर्चा संभाल रही हैं. इससे पहले अखिलेश यादव से मुलाकात के दौरान सपा प्रमुख ने उनको चुनाव लड़ने का संकेत दिया था, जिस पर उन्होंने हामी भरी थी.
सीसामऊ में मुस्लिम फैक्टर
सीसामऊ विधानसभा में मुस्लिम वोटर हार-जीत में सबसे अहम माने जाते हैं. सपा के इरफान सोलंकी की पत्नी पर दांव लगाने की इसे बड़ी वजह माना जा रहा है. इस विधानसभा में अनुमानित जातीय वोटरों के आंकड़े देखें तो कुल वोटर 2 लाख 80 हजार हैं. जिसमें सबसे ज्यादा 80 हजार मुस्लिम, 55 हजार ब्राह्मण, 35 हजार दलित, 20 हजार कायस्थ हैं. अन्य का आंकड़ा करीब 35 हजार है.
बीजेपी की राह आसान नहीं
बीते दो विधानसभा चुनाव में यहां सपा के इरफान सोलंकी जीतते रहे हैं. 2012 के पूर्व यह सीट आरक्षित थी लेकिन नए परिसीमन के बाद सीसामऊ को सामान्य सीट कर दिया गया. सीसामऊ सीट बीजेपी के लिए आसान नहीं रही है. आखिरी बार पार्टी को यहां 1996 में जीत मिली थी. करीब 28 साल हो चुके हैं तब से पार्टी ने यहां जीत की स्वाद नहीं चखा है.
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