राघवेंद्र सिंह/बस्ती: खेती-बाड़ी को घाटे का सौदा मानकर आज के युवा जहां रोजगार की तलाश में बड़े शहरों की तरफ रुख कर रहे हैं. वहीं, दो युवा किसानों ने खस (सुगंधित तेल) की खेती कर सफलता की नयी इबारत लिखी है. दोनों ने निजी कंपनी में इंजीनियरिंग की जॉब छोड़ कर गांव में खेती करने का फैसला किया. जो अपनी मेहनत के बल पर युवा किसानों के लिए आइकन बने हुए हैं.


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गांव के लोगों को भी दे रहे रोजगार
इन्हें अल्ट्रा इंटरनेशनल आइकोनिक किसान के रूप में सीसीएसआर व सी मैप लखनऊ द्वारा आइकोनिक प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी किया गया है. खस की खेती कर सुगन्धित तेल के उत्पादन में भारत में पहला मुकाम हासिल किया है. ये देश के सबसे बड़े खस की खेती के किसान हैं. सबसे बड़े तेल उत्पादक में प्रथम स्थान हासिल कर मल्टी नेशनल कंपनियों को सुगन्धित तेल सप्लाई करते हैं. साथ ही गांव में 5 सौ लोगों को 6 महीने रोजगार देते हैं. 


प्रति वर्ष डेढ़ करोड़ से 2 करोड़ का है टर्न ओवर
बस्ती जिले से जिला मुख्यालय से 24 किमी दूरी पर कलवारी थाना छेत्र के डिंगरा पुर गांव के ये युवा किसानों मेहनत के बल पर देश के सबसे बड़े ख़स तेल के निर्यातक बन गए हैं. जो सालाना करीब डेढ़ करोड़ से दो करोड़ रुपये का टर्न ओवर करते हैं. आज के युवा को मोटी आय की नौकरी कर परिवार सहित सेटल होने की चाहत सभी युवाओं की होती है लेकिन अमरेंद्र प्रताप सिंह व प्रेम प्रकाश सिंह ने उच्च डिग्री हासिल करने के बाद भी खेती को अपना व्यवसाय बना.


14 से लेकर 15 हजार रुपये प्रति लीटर है कीमत
अमरेंद्र प्रताप सिंह ने इंजीनियरिंग की जॉब छोड़कर खेती को अपनाया, पहले ये खस की खेती शुरू करने के लिए सी मैप लखनऊ में 6 दिवसीय ट्रेनिंग लेकर तीन एकड़ खेत में ख़स की खेती शुरू किया. इसमें अच्छी आय होने पर ये अपने अगल-बगल के किसानों से लीज पर खेत लेकर 150 एकड़ खेत मे ख़स की खेती करने लगे. आसवन विधी से तेल उत्पादन कर मल्टीनेशनल कॉम्पनी, व डाबर, बैद्यनाथ के कंपनी तेल की सप्लाई करते. कुछ कंपनी इनके घर से ही तेल खरीद लेती है. 14 हजार से लेकर 15 हजार रुपये प्रति लीटर के हिसाब से इसकी कीमत है. कोविड 19 के पहले इस तेल की कीमत 25 से तीस हजार रुपये लीटर बिक जाता था लेकिन अब 14 हजार से 15 हजार रुपये बिक रहा है. 


कम लागत में ज्यादा मुनाफा
खस की खेती किसानों के वरदान के रूप में है. इसकी जड़ें से तेल निकाल कर जड़ें भी बिक जाती हैं. जिसका प्रयोग कूलर के जाली के रूप में करते है ऊपरी हिस्सा ईंधन व छप्पर छाने में काम आता है. इससे ही लेबर का खर्च निकल जाता है. इसके लिए खेतों की कोई ज्यादा लागत व तैयारी नहीं करनी पड़ती है. 9 महीने से 12 महीने में पक कर तैयार हो जाता है. उसके बाद फसल की कटाई अक्टूबर से लेकर फरवरी महीने तक की जाती है.


परफ्यूम, सेंट, दवा आदि बनाने में होता है इस्तेमाल
आसवन विधि से तेल निकल लिया जाता है इसके तेल निकालने की यूनिट 1 लाख 60 रुपये में आता है. ये खुद अपने मशीनों से तेल निकलते हैं. आस-पास के किसान से भी जड़ें खरीद लेती हैं. इसमें लागत कम मुनाफा ज्यादा है. एक एकड़ से करीब 10 लीटर तेल उत्पादन होता है. 14 हजार से 15 हजार रुपये प्रति लीटर रेट है. 4 सौ से 500 लोगों को 6 महीने का रोजगार देते हैं. इस तेल की अंतररास्ट्रीय मार्केट में काफी डिमांड रहती है.इसके तेल से , परफ्यूम, सेंट, दवा, ठण्ड तेल बनाने के लिए किया जाता है. कोरोना में थोड़ प्रभावित हुआ है, लेकिन फिर भी फायदे मंद है. 


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