Mahakumbh 2025: प्रयागराज में महाकुंभ 2025 की तैयारियों का शंखनाद होते ही आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार पूरे मेला क्षेत्र में महसूस होने लगा है. इस पावन अवसर पर अखाड़ों की धर्म ध्वजा स्थापना एक विशेष परंपरा है, जो न केवल अखाड़ों की पहचान का प्रतीक है, बल्कि उनकी आस्था, परंपरा, और गौरव की भी अभिव्यक्ति है. आज जूना अखाड़े की धर्म ध्वजा विधिवत वैदिक मंत्रोच्चार के साथ त्रिवेणी मार्ग पर फहराई जाएगी. 


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52 हाथ लंबा धर्म ध्वजा होगा स्थापित 
जूना अखाड़ा, जो भारत के प्रमुख और प्राचीन अखाड़ों में से एक है, अपनी 52 हाथ लंबी धर्म ध्वजा को स्थापित करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. यह ध्वजा लकड़ी के एक विशाल स्तंभ पर फहराई जाती है, जो अखाड़े की आन, बान और शान का प्रतीक है. जूना अखाड़े की धर्म ध्वजा की स्थापना के साथ ही रमता पंच के संत शिविर में प्रवास करेंगे और मेले के समाप्ति तक यहीं से सभी निर्णय लिए जाएंगे.


नागा साधुओं की उपस्थिति से बढ़ी रौनक  
धर्म ध्वजा स्थापना के साथ ही नागा साधुओं की विशेष गतिविधियां प्रारंभ हो जाती हैं. जूना अखाड़े के महंत हरिगिरि और अन्य संतों ने बताया कि इस धर्म ध्वजा के नीचे नए संन्यासियों को दीक्षा दी जाएगी. यह प्रक्रिया परंपरा और अनुशासन का पालन करते हुए संपन्न होती है, जो संत समुदाय के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है.  


निरंजनी और आनंद अखाड़ों ने भी लहराई अपनी धर्म ध्वजा  
इसी क्रम में, निरंजनी अखाड़े और उसके सहयोगी आनंद अखाड़े ने भी अपनी 52 फीट ऊंची धर्म ध्वजा स्थापित कर दी है. इस मौके पर कुंभ मेला अधिकारी दीपक रावत सहित अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी उपस्थित रहे. उन्होंने इसे कुंभ मेले की सफल शुरुआत का प्रतीक बताया. उनका कहना था कि यह ध्वजा साधु-संतों की आस्था और परंपरा का सम्मान है. 


कुंभ मेले की भव्यता  
कुंभ मेला न केवल आध्यात्मिक उत्सव है, बल्कि भारतीय संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी है. लाखों श्रद्धालु, साधु-संत और नागा साधु इस पावन अवसर पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के त्रिवेणी संगम में स्नान कर मोक्ष की कामना करते हैं. धर्म ध्वजा की स्थापना इस महाकुंभ की औपचारिक शुरुआत मानी जाती है, जो चारों ओर उल्लास और पवित्रता का वातावरण बनाती है.


धर्म ध्वजा: परंपरा और गौरव का प्रतीक  
धर्म ध्वजा न केवल अखाड़ों की पहचान है, बल्कि उनके गौरव और प्रतिष्ठा का भी प्रतीक है. यह उनके अनुशासन, परंपराओं और आध्यात्मिक विरासत का परिचायक है. मेले के दौरान, यह ध्वजा साधु-संतों की छावनियों और उनके केंद्र बिंदु को दर्शाती है. महाकुंभ 2025 के इस पावन आयोजन के साथ ही प्रयागराज एक बार फिर विश्व के आध्यात्मिक मानचित्र पर चमकने को तैयार है. धर्म ध्वजा की स्थापना के साथ संतों और श्रद्धालुओं का यह मिलन महाकुंभ की दिव्यता और पवित्रता को और भी बढ़ा देगा.


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