Mahakumbh 2025: हिंदू संतों के 13 अखाड़े हैं, जिनमें शैव सन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े, उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं. इन अखाड़ों की स्थापना शंकराचार्य ने 8वीं सदी में की थी. मेला मकर संक्रांति (14 जनवरी) से शुरू होगा, जो पहला शाही स्नान है और इसे बेहद शुभ माना जाता है. 


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अखाड़ों की तैयारी शुरू
प्रयागराज महाकुंभ में प्रवेश के लिए अखाड़ों ने तैयारी शुरू कर दी हैं. अखाड़ों में सबसे पुराने जूना अखाड़े ने महाकुंभ के लिए प्रस्थान कर दिया है. जूना अखाड़े में शामिल साधु संत तीन नंबर को मेला क्षेत्र में पहुंचेंगे. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े ने महाकुंभ 2025 में नगर प्रवेश और पेशवाई का कार्यक्रम तय कर दिया है. अखाड़े के महामंडलेश्वर, नागा संन्यासी, महंत, साधु और संत यम द्वितीया के दिन कुंभ मेला क्षेत्र में प्रवेश करेंगी. जूना अखाड़े के शीर्ष पदाधिकारियों ने महाकुंभ मेले में नगर प्रवेश, धर्म ध्वजा पूजन, नगा संन्यासियों के शिविर के लिए भूमि आवंटन और शिविर में प्रवेश की तिथियों को तय किया है. अखाड़े के नगा संन्यासी, मठाधीश, महामंडलेश्वर तीन नवंबर को रमता पंच की अगुवाई में वहां पहुंचेंगे. बैंड-बाजा, पालकी और जुलूस के साथ वो नगर सीमा में प्रवेश करेंगे. 23 नवंबर को कुंभ मेला छावनी में काल भैरव अष्टमी के दिन भूमि पूजन करके धर्म ध्वजा फहराई जागी. 14 दिसंबर को जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि के नेतृत्व में पेशवाई निकालेगा. 13 जनवरी को पहले शाही स्नान से पहले पूजा के बाद शोभायात्रा निकाली जाएगी.


कुंभ मेला हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसे दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है. यह मेला हर 12 साल में चार प्रमुख स्थानों—हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद), नासिक और उज्जैन—में आयोजित होता है. यहां पर विभिन्न अखाड़ों के साधु-संत अपने अनुयायियों को आशीर्वाद देते हैं और धार्मिक चर्चा करते हैं. कुंभ मेला संतों, साधुओं और नागा बाबाओं के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है. कुंभ मेला आस्था, धार्मिकता, समाजिकता और भारतीय संस्कृति का अद्वितीय संगम है, जो सदियों से लोगों को आकर्षित करता रहा है.


महाकुंभ 2025 की तिथियां
- 3 नवंबर: नगर प्रवेश
- 23 नवंबर: धर्म ध्वजा पूजन
- 14 दिसंबर: पेशवाई
- 13 जनवरी: पहले शाही स्नान से पहले पूजा के बाद शोभायात्रा


अखाड़ों की परंपरा
अखाड़ों की परंपरा भारतीय साधु-संन्यासियों के धार्मिक संगठन से जुड़ी है, जिसकी स्थापना 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने की थी. इसका उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा, प्रचार और साधुओं के बीच अनुशासन बनाए रखना है. अखाड़ों को तीन मुख्य संप्रदायों में बांटा गया है: शैव, वैष्णव और उदासीन. नागा साधु इन अखाड़ों से जुड़े योद्धा साधु होते हैं. कुंभ मेले में अखाड़ों का विशेष महत्त्व होता है, जहां वे शाही स्नान के लिए प्रमुखता से भाग लेते हैं. अखाड़े साधुओं को धार्मिक, योग और शस्त्र कला की शिक्षा देते हैं. 


हिंदू संतों के 13 अखाड़े
माना जाता है कि पहले के समय में 4 प्रमुख अखाड़े थे. शंकराचार्य ने 8वीं सदी में इन अखाड़ों की स्थापना की थी. लेकिन समय के साथ इनकी शाखाएं बढ़ गई और अखाड़ों की संख्या 13 हो गई. वर्तमान में हिंदू संतों के 13 अखाड़े हैं, जिनमें शैव सन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े, बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े, उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े हैं. 


अखाड़ों के प्रकार
- शैव अखाड़े - भगवान शिव की भक्ति करते हैं
- वैष्णव अखाड़े - भगवान विष्णु की भक्ति करते हैं
- उदासीन अखाड़े - पंचतत्व (धरती, अग्नि, वायु, जल और आकाश) की उपासना करते हैं


शैव सन्यासी संप्रदाय के 7 अखाड़े
- श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी- दारागंज प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंच अटल अखाड़ा- चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी- दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
- श्री तपोनिधि आनन्द अखाड़ा पंचायती- त्रम्केश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
- श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा- बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंचदशनाम आह्वान अखाड़ा- दशस्मेव घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा- गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)


बैरागी वैष्णव संप्रदाय के 3 अखाड़े
- श्री दिगम्बर अनी अखाड़ा- शामलाजी खाकचौक मन्दिर, सांभर कांथा (गुजरात)
- श्री निर्वानी आनी अखाड़ा- हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा- धीर समीर मन्दिर बंसीवट, वृन्दावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)


उदासीन संप्रदाय के 3 अखाड़े
- श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा- कृष्णनगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
- श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)
- श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा- कनखल, हरिद्वार (उत्तराखण्ड)


जूना अखाड़ा का महत्व
जूना अखाड़ा भारत का सबसे प्राचीन और प्रमुख शैव अखाड़ा है, जिसकी स्थापना आदिगुरु शंकराचार्य ने की थी. इसका मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म की रक्षा और प्रचार करना है. यह अखाड़ा नागा साधुओं के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जो तपस्या, भस्म धारण और कुंभ मेले के शाही स्नान के लिए प्रसिद्ध हैं. जूना अखाड़ा साधुओं को शास्त्रों, योग और अस्त्र-शस्त्र का प्रशिक्षण भी देता है, और धार्मिक आयोजनों में प्रमुख भूमिका निभाता है. शैव सन्यासी संप्रदाय में श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा सबसे बड़ा माना जाता है इसकी स्थापना सन् 1145 में बतायी जाती है जूना अखाड़े का मुख्यालय वाराणसी में और आश्रम हरिद्वार के मायामंदिर में है.


महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़ा
श्री पंचदशनाम जूना अखाड़े ने महाकुंभ 2025 में नगर प्रवेश, पेशवाई की तिथियां तय कर दी हैं अखाड़े के महामंडलेश्वर, नागा सन्यासी, महंत, साधु सन्यासी 3 नवंबर को यम द्वितीया के दिन कुंभ मेला क्षेत्र में प्रवेश करेंगे.


महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े की भव्य यात्रा
महाकुंभ 2025 में जूना अखाड़े की भव्य यात्रा होगी, जिसमें बैंड-बाजा, पालकियों और जुलूस के साथ नगर प्रवेश करेंगे अखाड़े के नागा सन्यासी, मठाधीश, महामंडलेश्वर तीन नवंबर को रमता पंच की अगुवाई में नगर प्रवेश करेंगे.


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