Mahakumbh 2025: अनोखा अखाड़ा, जिसमें नागा साधुओं के प्रवेश की मनाही, हरिद्वार महाकुंभ से जुड़ा इतिहास
Shri Panchayati Bada Udaseen Akhada: यूपी महाकुंभ के लिए बिलकुल तैयार है. महाकुंभ हो और अखाड़े न हो ऐसा हो नहीं सकता. यानी जहां कुंभ वहां अखाड़े. महाकुंभ की शुरुआत अखाड़ों के स्नान के साथ ही होती है. अखाड़ों की सीरीज में हम बात करते हैं श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के बारे में..आइए जानते हैं अखाड़े के बारे में...
History Shri Panchayati Bada Udaseen Akhada: यूपी के प्रयागराज में 13 जनवरी से लगने जा रहे महाकुंभ में साधु-संतों के 13 अखाड़े भी लाखों साधुओं के साथ शामिल होने जा रहे हैं. किसी भी महाकुंभ में अखाड़ों की अहम भागीदारी होती है. इन अखाड़ों में शैव और वैष्णव मत के मानने वाले दोनों हैं. अखाड़ों की सीरीज में आज हम आपको श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा के बारे में बताने जा रहे हैं. इस अखाड़े का प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है.पंचायती अखाड़े में नागा साधु नहीं होते हैं.
अखाड़े की स्थापना कब हुई
इस अखाड़े का प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है. श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के बारे में जानने से पहले उदासीन का अर्थ समझिए. उदासीन का अर्थ ब्रह्मा में आसीन यानी समाधिस्थ से होता है.धार्मिक विद्वानों के अनुसार, इस अखाड़े को 1825 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्थापित किया गया था. इस अखाड़े के संस्थापक निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज माने जाते हैं. वहीं इस अखाड़े के पथ प्रदर्शक उदासीन आर्चाय गुरू नानक देव के पुत्र श्री चंददेव थे.
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अखाड़े के इष्ट देव कौन?
ये अखाड़ा अपना इष्ट देव श्री श्री 1008 चंद्र देव जी भगवान और ब्रह्मा जी के चार पुत्रों को मानता है. ये अखाड़ा सनातन धर्म और सिख पंथ दोनों की ही परंपराओं पालन करता है. अखाड़े की देशभर में 1600 शाखाएं हैं. इस अखाड़े में चार पंगत होते हैं. इन चार पंगतों के चार महंत होते हैं, जिसमें से एक श्रीमंहत के पद पर होते हैं. श्रीमंहत ही सारे अखाड़े की संचालन व्यवस्था को देखते हैं.ये अखाड़ा बड़ा ही महत्वपूर्ण है. पंचायती अखाड़े में नागा साधु नहीं होते हैं. अखाड़े की धर्मध्वजा में एक तरफ जहां हनुमान जी की तस्वीर होती है, वहीं चक्र भी विशेष महत्वपूर्ण है.
प्रयागराज में मुख्य आश्रम
इस अखाड़े का प्रमुख आश्रम प्रयागराज में है. धार्मिक विद्वानों के अनुसार, इस अखाड़े को 1825 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन हरिद्वार में हर की पौड़ी पर स्थापित किया गया था. इस अखाड़े के संस्थापक निर्वाण बाबा प्रीतम दास महाराज माने जाते हैं. वहीं इस अखाड़े के पथ प्रदर्शक उदासीन आर्चाय गुरू नानक देव के पुत्र श्री चंददेव थे.
कुंभ में होता है विद्वानों का समागम
सभी संत महामंडलेश्वर, भक्तगण और विद्वानों का यहां समागम होता है. इसलिए इस जगह का बहुत महत्व है. यहां मकर और कुंभ राशि लग्न में स्नान करने का विशेष महत्व होता है. 14 जनवरी का स्नान का बहुत बड़ा महत्व है जिसमें बहुत लोग हिस्सा लेते हैं. यहां पर स्नान करने से मनुष्य को एक नई ऊर्जा की प्राप्ति होती है.
कुंभ शब्द का मतलब
कुंभ के शब्द का मतलब कलश होता है यानी कुंभ गागर में सागर है. सनातन धर्म में कलश की स्थापना होती है जिसे कुंभ भी कहा जाता है. यह 12 साल में होता है तो महाकुंभ कहा जाता है और 6 साल में जब यही मुहूर्त आता है तो हम उसे अर्धकुंभ कहते हैं.
14 जनवरी को प्रमुख स्नान
सभी अखाड़ों का प्रमुख स्नान 14 जनवरी, मकर संक्रांति, मौनी अमावस्या, बसंत पंचमी को होता है.
क्यों होता है प्रयागराज में महाकुंभ
महाकुंभ प्रयागराज की धरती पर होने का क्या महत्व है? इस पर बात करते हुए मंहत दुर्गा दास ने कहा, "इसका बहुत महत्व है क्योंकि ब्रह्माजी ने यहां पर यज्ञ किया था. यह दशाश्वमेध यज्ञ त्रिवेणी की पुण्य स्थली पर किया गया था. इसके अलावा यहां मां गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है. इसलिए यहां स्नान का महत्व है. इसके अलावा ज्ञान के रूप में अमृतज्ञान भी यहां निरंतर प्रवाहित रहता है. इस जगह पर अमृत की कुछ बूंदे गिरी थी, जिसका लाभ यहां प्राप्त होता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. ZEE UPUK इसकी पुष्टि नहीं करता है.
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