Maha Kumbh 2025: महाकुंभ के दौरान विभिन्न अखाड़ों का जुलूस और उनका शाही स्नान काफी महत्वपूर्ण होता है. ये अखाड़े बाहर भले ही फक्कड़ लगते हैं लेकिन अंदर से इनकी दुनिया बहुत ही अनुशासित और मूल सिद्धांतों से बंधी होती है. सनातन धर्म के रक्षक कहे जाने वाले ये अखाड़े सदियों से कुछ खास अनुशासन और सिद्धांतों का पालन करते आ रहे हैं. 


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अखाड़ों में विभिन्न पदों की व्यवस्था
अखाड़ों में अनुशासन को पालन और कोई सिद्धांतों से ना भटके इसके लिए विभिन्न पदों की भी व्यवस्था होती है. ऐसे ही दो पद हैं जिलेदार और थानापति, जिनकी भूमिक हर अखाड़े में बहुत ही महत्वपूर्ण होती है. सेवा समर्पण के भाव के साथ वैरागी मन से त्यागी जीवन जीना ही इनका स्वभाव होता है. इनमें किसी भी परिस्थिति में हर मुसीबत का समाधान चुटकियों में निकाल देने की क्षमता होती है. सही मायनों में ये किसी भी अखाड़े की असली रीढ़ होते हैं. 


आइये विस्तार से बताते हैं अखाड़ों में इनका चुनाव कैसे होता है और कार्यभार व कर्तव्य क्या- क्या होते है. 
 
थानापति और जिलेदार का काम
थानापति अपने अखाड़े के मठ, मंदिर और आश्रमों की देखरेख करते हैं. तो वहीं जिलेदार के पास अखाड़े की सारी जमानी का लेखा जोखा होता है. वो अखाड़े की जमीन और खेती से जुड़ी जिम्मेदारी निभाते हैं. खेती में कौन-सी फसल की जाएगी इसका निर्णय भी जिलेदार करते हैं. 


अखाड़ों की आय के स्रोत
अखाड़ों की आय का माध्यम मंदिरों में आने वाला चढ़ावा, अखाड़ों की खेती की जमीन और उनके मकानों से आने वाला किराया होता है. जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हिमाचल और बिहार आदि कई प्रदेशों में दर्जन भर से ज्यादा अखाड़ों के मठ मंदिर, बाजार, और सैकड़ों बीघे खेत हैं. इनकी संपदा और मठ मंदिर... प्रयागराज और हरिद्वार से लेकर गया आदि तक फैले हैं. इसी संपत्ति और मंदिरों की देखरेख के लिए अखाड़े के संतों को अलग-अलग पद दिये जाते हैं. 


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पद के लिए योग्यता और चुनाव प्रक्रिया
-थानापति या जिलेदार का पद पाने के लिए संत का अखाड़े से कम से कम 10 वर्ष जुड़े रहने अनिवार्य है. 
-दोनों ही पदों के लिए अखाड़ों के सभापति समस्त मढ़ियों के संतों की परीक्षा लेते हैं. 
-जांच की जाती है कि संबंधित संत ने किसी प्रकार की अनुशासनहीनता या गबन आदि तो नहीं किया है?
- क्या वे अखाड़े के नियम और सिद्धांतों को पूरी तरह से पालन करते हैं?
-कहीं उनका संबंध आपराधिक प्रवृति के लोगों के साथ तो नहीं है?
-जो संत कानून के जानकार होते हैं उन्हें ही थानापति बनाया जाता है हालांकि किसी भी अखाड़े का थानापति एलएलबी की पढ़ाई करने वाला संत नहीं है.
-ये सारी अहर्ताएं पूरी करने वाले संत को जिलेदार या थानापति का पद दिये जाने से पहले शपथ दिलाई जाती है और फिर जिम्मेदारी सौंपी जाती है. 
-अखाड़े के सभापति उन्हें पद देने की घोषणा करते हैं और फिर सभी सचिव इसका समर्थन करते हैं. 
- अखाड़े हर जिले में अपने थानापति और जिलेदार नियुक्त करते हैं, इसमें मंढ़ियों के प्रतिनिधित्व का विशेष ध्यान रखा जाता है. जैसे एक गिरी, दूसरा पुरी, तीसरा भारती और चौथा वन मढ़ी होता है. अखाड़ों में मढ़ियों के बीच तालमेल अनिवार्य है. 


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