लखनऊ: राज्यपाल ने बीजेपी के कुंवर मानवेंद्र सिंह को प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया है. राज्यपाल ने राजभवन में बुलाकर उनका का शपथ ग्रहण कराया. परिषद के मौजूदा सभापति रमेश यादव का कार्यकाल शनिवार को समाप्त हो गया था. उनके स्थान पर सभापति की नियुक्ति न होने पर सपा ने राजभवन का दरवाजा खटखटाया था. अनुभवी व वरिष्ठ मानवेंद्र सिंह सदन के संचालन में अपनी कुशलता साबित भी कर चुके हैं. उनके प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होने पर सपा ने इसे बेईमानी बताया है. 


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कौन हैं कुंवर मानवेंद्र सिंह?
झांसी के रहने वाले  हैं. पार्टी के बहुत पुराने नेता हैं. कुंवर मानवेंद्र सिंह को बुंदेलखंड में बीजेपी की जड़ कह सकते हैं. 1980 में झांसी के जिला अध्यक्ष बने. 1985 में बीजेपी के विधायक बन गए. भाजपा युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं. दो टर्म एमलएसी रहे हैं. विधान परिषद के कार्यवाहक सभापति के पद पर भी रहे हैं. यूपी में बीजेपी के वनवास के दौरान 20 साल मानवेंद्र सिंह ने भी वनवास काटा. बुंदेलखंड विकास बोर्ड के चेयरमैन हैं. यह कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा वाला पद है. ये पद हमेशा सीएम के पास रहा है, लेकिन स्पेशल पावर के तहत योगी आदित्यनाथ ने इन्हें कमान सौंपी थी. योगी की गुड लिस्ट में हैं. प्रोटेम स्पीकर बनते ही कुंवर मानवेंद्र सिंह ने सपा एमएलसी अहमद हसन को शपथ दिलाई.


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सपा ने बताया बेईमानी
हालांकि बीजेपी का प्रोटेम स्पीकर नियुक्त होते सपा ने रिएक्शन दिया है. समाजवादी पार्टी प्रवक्ता सुनील साजन ने कहा कि इन लोगों ने प्रोटेम स्पीकर इसलिए नियुक्त करवा लिया क्योंकि ये चुनाव नहीं कराना चाहते हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि नियमों को ताक में रखकर बीजेपी ने अपना प्रोटेम स्पीकर नियुक्त करवा लिया. इससे साफ होता है कि बीजेपी चुनाव नहीं कराना चाहती है, क्योंकि विधान परिषद में सपा का बहुमत है. उन्होंने राजभवन को ही बेईमान बता दिया. सपा प्रवक्ता ने कहा कि अगर सभी संसदीय परंपराओं की धज्जियां उड़ाएंगे तो फिर बचेगा क्या?


क्या होता है प्रोटेम स्पीकर का काम?
आमतौर पर प्रोटेम स्पीकर का काम नए सदस्यों को शपथ दिलाना और स्पीकर (विधानसभा अध्यक्ष ) का चुनाव कराना होता हैं. जब प्रोटेम स्पीकर के जरिए फ्लोर टेस्ट कराने की बात कही गई है तो उसका रोल काफी महत्वपूर्ण हो जाता हैं. आमतौर पर सबसे सीनियर मोस्ट विधायक यानी जो सबसे ज्यादा बार चुनाव जीतकर आया हो, उसे प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है लेकिन राज्यपाल इसे माने ये जरूरी नहीं है.


 


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