Explainer: तीन राज्य, एक हायड्रो पावर प्रोजेक्ट, क्यों हरियाणा-हिमाचल और पंजाब में चल रही जंग?
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Explainer: तीन राज्य, एक हायड्रो पावर प्रोजेक्ट, क्यों हरियाणा-हिमाचल और पंजाब में चल रही जंग?

Punjab Reorganisation Act: पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा राज्य की सरकारों के बीच मंडी स्थित शानन जलविद्युत परियोजना को लेकर लड़ाई चल रही है. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के अनुसार परियोजना का मौजूदा कानूनी नियंत्रण पास होने के कारण पंजाब सरकार ने उसके आसपास निषेधाज्ञा लागू कर दी है. क्योंकि इसकी 99 साल पुरानी लीज मार्च में खत्म हो गई है.

Explainer: तीन राज्य, एक हायड्रो पावर प्रोजेक्ट, क्यों हरियाणा-हिमाचल और पंजाब में चल रही जंग?

Shanan Hydel Power Project Mandi: इन दिनों देश के तीन राज्य एक परियोजना को लेकर आपस में कानूनी तौर पर भिड़े हुए हैं. पंजाब, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा मंडी में ब्रिटिश काल की शानन जलविद्युत परियोजना पर नियंत्रण पाने के लिए लड़ रहे हैं. हिमाचल प्रदेश और पंजाब के बीच "फायदेमंद" शानन जलविद्युत परियोजना को लेकर सत्ता संघर्ष छिड़ गया है. इस पर पिछले 100 वर्षों से पंजाब का नियंत्रण है. 

पक्षकार बनने के लिए सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा ने क्यों दी याचिका 

इस बीच, पड़ोसी राज्य हरियाणा ने इस मामले में पक्षकार बनने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर विवाद को नया आयाम दे दिया है. हरियाणा भी 1966 से पहले हिमाचल प्रदेश की तरह ही अविभाजित पंजाब का हिस्सा था. इसलिए हरियाणा सरकार ने 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन पेश कर तर्क दिया कि ब्यास की एक सहायक नदी उहल नदी पर स्थित शानन जलविद्युत परियोजना भाखड़ा बांध को भी पानी देती है.

दोनों राज्यों के लिए क्यों अहम है शानन जलविद्युत परियोजना?

मार्च 2024 में 99 साल की लीज समाप्त होने के साथ, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सुखू ने खराब रखरखाव और उपेक्षित मरम्मत कार्य का हवाला देते हुए कहा कि पंजाब इस परियोजना पर दावा नहीं कर सकता. आइए समझते हैं कि ये जलविद्युत परियोजना दोनों राज्यों के लिए क्यों महत्वपूर्ण है, उनकी दलीलें क्या हैं, हरियाणा ने विवाद में हस्तक्षेप क्यों किया और केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया क्या है?

क्या है शानन जलविद्युत परियोजना?

साल 1925 में मंडी के राजा राजा जोगिंदर बहादुर और ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि तथा पंजाब के मुख्य अभियंता कर्नल बीसी बैटी के बीच एक पट्टा समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे. मंडी के जोगिंदरनगर में स्थित यह परियोजना 1925 में 99 वर्षों के लिए पंजाब को पट्टे पर दी गई थी, लेकिन मार्च 2024 में इसकी अवधि समाप्त हो गई. स्वतंत्रता से पहले, यह परियोजना अविभाजित पंजाब, लाहौर और दिल्ली को बिजली की आपूर्ति करती थी. विभाजन के बाद, लाहौर को सप्लाई की जाने वाली बिजली बंद कर दी गई और अमृतसर के वेरका गांव में ट्रांसमिशन लाइन समाप्त कर दी गई.

उहल नदी से पानी के बदले हिमाचल को 500 किलोवाट मुफ्त बिजली

उहल नदी पर स्थापित शानन पावर हाउस की क्षमता 1932 में शुरू में 48 मेगावाट थी. बाद में, पंजाब विद्युत बोर्ड ने 1982 में उत्पादन क्षमता को बढ़ाकर 60 मेगावाट कर दिया. आखिरकार, पंजाब की बढ़ती बिजली की मांग को पूरा करने के लिए बिजली उत्पादन को बढ़ाकर 110 मेगावाट कर दिया गया. मौजूदा पट्टे की शर्तों के तहत, यह परियोजना हिमाचल प्रदेश को 500 किलोवाट मुफ्त बिजली भी प्रदान करती है, क्योंकि यह राज्य में स्थित उहल नदी से पानी खींचती है.

पंजाब को परियोजना का नियंत्रण क्यों दिया गया?

देश 1947 में जब स्वतंत्र हुआ, तो हिमाचल प्रदेश पंजाब का हिस्सा था. हालांकि, वह 1 अप्रैल, 1948 को अलग हो गया, लेकिन 1971 में इसे राज्य का दर्जा दिया गया. पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत शानन पावर हाउस पंजाब को आवंटित किया गया था, क्योंकि उस समय हिमाचल प्रदेश एक केंद्र शासित प्रदेश था. 1 मई, 1967 को सिंचाई और बिजली मंत्रालय द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई, जिसने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के तहत पंजाब को परियोजना पर कानूनी नियंत्रण प्रदान किया.

पंजाब ने क्यों सुप्रीम कोर्ट से की निषेधाज्ञा की मांग?

पंजाब ने 20 सितंबर को हिमाचल प्रदेश को शानन परियोजना के कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की. पंजाब सिविल सूट में दावा किया गया है कि इस परियोजना का प्रबंधन पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड द्वारा किया जाता है. इसे 1967 की अधिसूचना के तहत कानूनी रूप से पंजाब को आवंटित किया गया था.

हिमाचल प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा? 

मुकदमे के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार ने पंजाब सरकार की याचिका की स्थिरता पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. हिमाचल प्रदेश ने तर्क दिया कि मामले की बुनियाद संविधान-पूर्व समझौते पर आधारित है. संविधान के अनुच्छेद 131 के अनुसार यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है. अनुच्छेद 131 के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों, एक तरफ भारत सरकार और कुछ राज्य और दूसरी तरफ एक या अधिक राज्य, दो या अधिक राज्यों से जुड़े विवादों को संभालने का विशेष अधिकार है.

हालांकि, संविधान अंतरराज्यीय नदी जल विवादों पर सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को रोकता है. हिमाचल प्रदेश सरकार ने ब्रिटिश सरकार और मंडी के राजा के बीच 1925 के समझौते पर भी प्रकाश डाला है. उसने कहा है कि मंडी राज्य कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं था.

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सुप्रीम कोर्ट पहुंची हरियाणा सरकार ने क्या-क्या कहा? 

हरियाणा सरकार ने 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने आवेदन में तर्क दिया कि शानन परियोजना ब्यास की सहायक नदी पर स्थित है. चूंकि हरियाणा की भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड में हिस्सेदारी है, इसलिए तर्क के अनुसार जलविद्युत परियोजना पर उसका वैध दावा है. हरियाणा सरकार ने अविभाजित पंजाब के हिस्से के रूप में ऐतिहासिक संबंध पर जोर देते हुए पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 का भी हवाला दिया.

हिमाचल प्रदेश के महाधिवक्ता अनूप कुमार रतन ने कहा कि राज्य 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए निर्धारित मामले में हरियाणा के आवेदन का विरोध करेगा. इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखू ने शानन परियोजना को सुरक्षित करने के लिए केंद्र सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की है.

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मामले में केंद्र सरकार का क्या है रुख, मंत्री ने क्या कहा?

केंद्रीय ऊर्जा एवं आवास मंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कहा है कि वह 110 मेगावाट की शानन जलविद्युत परियोजना को हिमाचल प्रदेश को वापस सौंपने के मुद्दे पर कानून के अनुसार निष्पक्ष रुख अपनाएंगे. भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) में हिमाचल की 7.19 प्रतिशथ हिस्सेदारी की मांग पर निर्णय लेने के लिए सभी साझेदार राज्यों के साथ बैठक बुलाई जाएगी. खट्टर ने आगे कहा, "इस मुद्दे पर हिमाचल और पंजाब के बीच असहमति है, लेकिन जहां तक ​​केंद्र सरकार का सवाल है, हमें सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करना होगा. इसके लिए पंजाब ने संपर्क किया है." 

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