UP Lok Sabha Election: UP Lok Sabha Election: लोकसभा का चुनाव उत्तर प्रदेश में रोमांच लेकर आता है लेकिन इस समय विपक्ष के नाम पर प्रदेश में दो चेहरे दिख रहे हैं यानी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी जिनके लिए चुनाव में रास्ते इतने भी सरल नहीं हैं. यूपी में पहले तीन चरण के 26 सीटों पर होने वाले चुनाव से अखिलेश राहुल गांधी के रणनीतिक कौशल का लिटमस टेस्ट हो जाएगा. आइए जानें कि दोनों ने प्रत्याशियों को चुनने से लेकर जातीय समीकरण बैठाने तक जो बिसात बैठाए हैं उसमें कहीं खुद दोनों ही न फंस जाएं. आइए जाने कि यूपी सरकार में काबिज बीजेपी और बीएसपी प्रमुख मायावती अखिलेश और राहुल के लिए कितनी बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं. 


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26 सीटों पर सपा और कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी 
पहले चरण की 8 सीटों में से दो पर सपा ने मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा किया है और कांग्रेस ने एक मुस्लिम प्रत्याशी उतारा है. दूसरे चरण की बात करें तो 8 सीटों में से सपा ने शून्य मुस्लिम प्रत्याशी उतारे. कांग्रेस ने एक मुस्लिम प्रत्याशी पर भरोसा किया है. तीसरे चरण में सपा की ओर से केवल एक मुस्लिम प्रत्याशी को मौका दिया गया है. इन चरणों की 26 सीटों में से सपा कांग्रेस की ओर से केवल पांच मुस्लिम प्रत्याशी पर विश्वास जताया गया है. गठबंधन ने यहां पर इस रणनीति से कम मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं ताकि गैर मुसलिम वोटरों को साधा जा सके. इससे ये भी पता चलता है कि गठबंधन मुस्लिम वोटरों को पहले से ही अपनी तरफ होना ही मान रहे हैं लेकिन कहीं उनकी ये सोच उन पर ही भारी न पड़ जाए. क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि हिंदू वोट जातियों के हिसाब बंटे ही न और रोष व विरोध में मुस्लिम वोट भी छिटक जाए.


पीडीए हो या जातिगत जनगणना जैसे मुद्दे
प्रत्याशी चयन हो या फिर जातीय समीकरणों का जाल बुनने का काम हो अखिलेश-राहुल ने इस पर सतर्कता बरतने की पूरी कोशश की है. खाकर पश्चिमी यूपी में सपा कांग्रेस ने ज्यादा जोर लगाने की कोशिश की है. इस क्षेत्र में रालोद का साथ छोड़ने की क्षति पूर्ति के लिए इंडिया गठबंधन सावधानी से प्रचार कार्य में लगा है. विवादित मुद्दों से बचना इन कोशिशों में से एक है. पीडीए हो या जातिगत जनगणना जैसे मुद्दों पर इन पर राहुल अखिलेश का जोर है. 


मुस्लिम बाहुल्य मुस्लिम सीट और जातीय समीकरण 
मुरादाबाद लोकसभा सीट जोकि मुस्लिम बाहुल्य सीट है और जहां पर मुस्लिम सांसद दस बार हुए हैं लेकिन सपा ने इस बार मौजूदा सांसद एसटी हसन का टिकट कटकर एक वैश्य समुदाय की रुचि वीरा को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा है. जोकि बड़ा रिस्क है. बागपत जोकि जाट बाहुल्य सीट है इस पर ब्राह्मण चेहरे को टिकट दिया गया है. भले ही गठबंधन को लगे कि साम्प्रदायिक आधार पर इस क्षेत्र के वोटों को बंटने से रोकने का प्रयास किया जाए पर रामपुर लोकसभा सीट पर सपा प्रत्याशी मौलाना मोहिबुल्लाह नदवी को खुद पार्टी के ही एक गुट द्वारा विरोध झेलना पड़ रहा है. इन बेरुखी का सपा को बुरे परिणाम भी झेलने पड़ सकते हैं.  


गैर जाटव व गैर यादव और ओबीसी से जुड़ी रणनीति 
सपा कांग्रेस ने तीन चरण के 26 सीटों पर ओबीसी को 10 सीट से उतारा है, दलित चेहरे को पांच सीट पर, मुस्लिम को पांच सीट पर उतारा है और 6 सीट पर सवर्णों पर भरोसा किया है. सपा कोटे की बात करें तो इनमें से अपनी 18 सीटों में अखिलेश ने केवल तीन यादव प्रत्याशी को ही चुना है. बाकी के प्रत्याशी कुर्मी, सैनी, शाक्य और मौर्य को दिए हैं. 


पिछली बार के मुकाबले
अब पिछले लोकसभा चुनाव का हाल भी जान लें ताकि रणनीति में फेरबदल समझा जा सके, तो पिछली बार सपा-बसपा और रालोद गठबंधन में थे जिसने सात मुस्लिमों को बीजेपी के विरुद्ध टिकट दिया था. तब दलितों व सवर्ण प्रत्याशी की होड़ इस बार से कम थी. सपा का इस बार कांग्रेस से गठबंधन है और सामने चुनौती के लिए बीजेपी और अकेले लड़ रही बीएसपी है. रालोद बीजेपी के साथ है.  दलित वर्ग में जाटव की अपेक्षा पासी, बाल्मीकि जैसी जातियों को इंडिया गठबंधन ने अधिक मौके दिए हैं. 


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मुस्लिम वोटों के लिए बीएसपी से मिल रही है चुनौती
बीएसपी ने इन तीन चरण के 26 सीट पर 8 मुस्लिम प्रत्याशी को मौका दिया है जिससे मुस्लिम वोटों पर अच्छी खासी बढ़त की उम्मीद बन जाती है. सहारनपुर, रामपुर हो या मुरादाबाद, पीलीभीत जैसी सीटें हो मुस्लिम प्रत्याशी को बीएसपी ने टिकट दिया है. दूसरी ओर बीएसपी के इस कदम से उसके और इंडिया गठबंधन के बीच मुस्लिम वोटर तितरबितर भी हो सकते हैं. सहारनपुर, रामपुर से लेकर अमरोहा, संभल में तो विशेष कर ऐसी ही स्थिति बनने के आसार हैं. गठबंधन ने इन सीटों पर मुस्लिम प्रत्याशियों को भरोसे में लिया है.