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Bihar Politics Updates: बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बीजेपी-जदयू की नई गठबंधन सरकार ने शपथ ले ली है. लेकिन अपनी राजनीतिक साख को पूरी तरह भुना चुके 72 साल के नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के बाद अपना पद छोड़ सकते हैं. उन्हें केंद्र में कोई बड़ा पद दिया जा सकता है. यूपी में जिस तरह मायावती की सियासी तिलिस्म टूटने के साथ सपा, बीजेपी उनके दलित वोट में लगातार सेंध लगा रही है. वही आने वाले वक्त में बिहार में दिख सकता है. नीतीश के बाद बिहार विधानसभा में 78 सीटों वाली बीजेपी का मुख्यमंत्री बन सकता है. ऐसे में महादलित नेता और डॉ. प्रेम कुमार को सीएम की कमान सौंपी जा सकती है. नीतीश की तरह वो भी अति पिछड़ा ईबीसी समुदाय से आते हैं.


अपने विधानसभा क्षेत्र में हमेशा लहराया जीत का परचम
डॉ. प्रेम कुमार ने अपने विधानसभा क्षेत्र गया से हमेशा जीत का परचम लहराया है. यहां तक की 2015 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ से इन्हें CM पद का दावेदार माना जा रहा था. डॉ. प्रेम कुमार जिन्होंने अभी तक एक भी बार पाराजय का मुंह नहीं देखा है. सीधे शब्दों में कहें तो जीत का पर्याय डॉ. प्रेम कुमार बन चुके है.  1990 के विधान सभा चुनावों में वो पहली बार चुनकर बिहार विधान सभा पहुंचे डॉ. प्रेम कुमार मगध विश्वविद्यालय से इतिहास में पीएचडी डिग्रीधारी हैं. 


यहां शुरू हुआ था सफर 
65 वर्षीय प्रेम कुमार सौम्य स्वभाव के मिलनसार नेताओं में शुमार रहे हैं. फरियादियों के लिए वो हमेशा उपलब्ध रहे हैं. फिलहाल नीतीश सरकार में वो कृषि एवं पशुपालन मंत्री हैं. प्रेम कुमार ने अभी तक हुए 8 बार विधानसभा चुनावों में जीत हासिल कर चुके है. इसनों हराने के लिए विपक्ष हमेशा नए- नए पैतरें अपनाते रहा है. कई इनके खिलाफ बड़े- बड़े चेहरों को मैदान में उतारा है. 30 साल से लगातार यानी 1990 से प्रेम कुमार यहां से जीतते रहे हैं. सौम्य स्वभाव के प्रेम कुमार की जनता पर विशेष पकड़ है. 1980 में प्रेम कुमार भाजपा की सदस्यता ली और तब से इसी पार्टी के होकर रह गए. डा. प्रेम कुमार की राजनैतिक सफर की शुरूआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्य के रूप में हुई थी.  


मुख्यमंत्री पद का दावेदार
2015 के विधान सभा चुनाव में इन्हें भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था क्योंकि बीजेपी पिछले 25 सालों से राज्य की सत्ता, जो पिछड़े वर्ग (लालू-राबड़ी-नीतीश) के हाथों में रही, उसे अब अति पिछड़े वर्ग को सौंपने की योजना पर काम कर रही थी. तब नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू बीजेपी से अलग होकर लालू के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी. लेकिन इस बार फिर से बीजेपी और जेडीयू एनडीए गठबंधन के तहत चुनाव लड़ रही है.


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