लखनऊ: राजनीति में पलड़ा कब किसके पक्ष में चला जाए ये कह पाना बहुत मुश्किल है लेकिन जब कुछ अप्रत्याशित होता है तो इतिहास बनता है और बार बार उसकी गाथा गाई जाती है. ऐसा ही कुछ हुआ 1992-93 में. साल 1992 था और राम मंदिर का आंदोलन देशभर में अपने चरम पर था, इतने पर भी उत्तर प्रदेश के दो सियासी धुरंधर ने कुछ ऐसा गठजोड़ किया कि बीजेपी के अच्छे-खासे विजय रथ को रुकने पर मजबूर कर दिया. बाबरी विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में साल 1993 में विधानसभा चुनाव हुआ जिसमें दोनों दिग्गज के लिए नारे लगाए जाने लगे.  ये दो दिग्गज कोई और नहीं बल्कि एक तो यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे और दूसरे थे दिग्गज दलित नेता व बहुजन समाज पार्टी (Bahuyjan Samaj Party) के संस्थापक कांशी राम (Kanshi Ram), इन दोनों ने मिलकर इतिहास ही रच दिया. 


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मायावती अपने दम पर यूपी की मुख्यमंत्री बनी
आज भले ही कांशी राम की बनाई पार्टी की दुर्गति हो गई है लेकिन पार्टी ने यूपी की सेत्ता का कमान 4 बार अपने हाथों में ली है जिसमें से एक बार तो पूर्ण बहुमत में रही. 2007 में 206 सीटें बसपा जीती थी और मायावती अपने दम पर यूपी की मुख्यमंत्री बनी थी. 


मुलायम और कांशीराम के लिए नारे
खैर बात 1992 की करते हैं जब राम मंदिर का आंदोलन देशभर में अपने चरम पर था और बीजेपी के विजय रथ को मुलायम सिंह यादव और कांशी राम ने रोक दिया और इन नारों ने उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति के सभी समीकरणों पर असर भी डाला.  इन दोनों के लिए यूपी में नारे गूंजने लगे थे.
नारा था-  'मिले मुलायम कांशीराम, हवा में उड़ गए जयश्री राम' 
'बाकी राम झूठे राम, असली राम कांशीराम'. 


मायावती ने समर्थन खींच लिया
1993 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह की समाजावदी पार्टी एक नवेली पार्टी की पहचान रखती थी और 109 सीटें जीत गई और बसपा को उस साल 67 सीटों पर जीत मिली. वहीं बीजेपी को 33.3 फीसदी वोट से संतुष्ट होना पड़ा. इतनी सीटों के गठजोड़ होने पर मुलायम सिंह पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम पर बैठे. फिर 1995 में मुलायम सरकार से मायावती ने अपना समर्थन खींच लिया और बनी बनाई सरकार गिर गई.


लोकसभा में भागिदारी 
साल 2001 में कांशी राम ने मायावती को बसपा की पूरी जिम्मेदारी दे दी. नारा लगने लगा- 'जिसकी जितनी तैयारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी'
ध्यान देने वाली बात है कि 13वीं लोकसभा में बीएसपी के 14 सांसद थे व 14वीं में 17. 15वीं लोकसभा में कुल 21 हो गए फिर 16वीं लोकसभा में बसपा का शुन्य सांसद रहा और फिलहाल 10 सांसद लोकसभा में बसपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.


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